- रश्मि विभा त्रिपाठी
बिन माँ का बच्चा
अपनी माँ समान मौसी से
अब बात नहीं कर पाता
उस पर लग गया है
सख़्त पहरा
रोता है, कराहता है
जानना चाहता है
बाप, चाचा, दादी की बेरहमी का
राज गहरा
जब सुनता है
कि बाप को चाहिए हिस्सा
माँ की जायदाद में से
खुश होता है
अपने मन के मरुथल में
इच्छाओं के बीज बोता है
इच्छाएँ जो कभी फली- फूली नहीं
सोचता है-
पापा इतने भी बुरे नहीं
मौसी से बात करानी बंद की है
मेरे ही भले के लिए
फिर गिनने लगता है बच्चा
अपनी नन्ही उँगलियों पर कुछ
मुस्कराते हुए
बच्चा खरीदेगा
खिलौने
जिसके लिए बाप ने कभी
पैसे नहीं दिए
वो खरीदेगा अपने सपनों का कद
सपने— जो रह गए बौने
जिन्हें पालने- पोसने के लिए
बाप ने
उसे कभी नहीं दी
भरपूर नींद
वो खरीदेगा
घर का एक कोना
जो नई माँ के आने पर
उसे कभी नहीं मिला
स्थायी तौर पर
वो खरीदेगा सुराग
माँ की उन चीजों का
जो बाप ने बेकार समझकर फेंक दी थीं
जो माँ ने कभी
अपने हाथों से छुई थीं
जिनमें माँ का स्पर्श था
वो तलाशेगा उन चीजों में
अपनी माँ के होने का अहसास
वो खरीद सकेगा थपकियाँ
जो माँ की याद में हुड़कते हुए
बाप ने नहीं दीं कभी
उसे चुप कराने के लिए
वो खरीद सकेगा हर करवट पर
तखत के दूसरी ओर के
खाली पड़े रहे हिस्से में
पिता की जगह,
जहाँ बाप कभी नहीं लेटा
उसे उसकी माँ से
हमेशा से बिछड़ने के गम से
उबारने के लिए
वो खरीद सकेगा
रात होते ही
उसे बाहर अकेला पड़ा छोड़ गए
कमरे में जाते
बाप के बिस्तर पर
दूसरी माँ के और बाप के बीच बिछा वही बिछौना
जैसे उसकी माँ बिछाती रही
मरते दम तक
उसके लिए
वो खरीद सकेगा
अपना हर काम
अपने हाथों से करते हुए
हाथों में पड़े छालों के फूटने पर हुए दर्द की दवा
जो बाप ने कभी नहीं दी उसे
वो खरीद सकेगा अपनी बेगुनाही
जो सौतेली माँ ने अपनी हर गलती उस पर डाली थी
तब खुद को बेकसूर साबित करने को नहीं थी उसके पास
बच्चा खरीद सकेगा अपना हक
जो घर में मौजूद
उसकी माँ की हर चीज पर
सौतेली माँ ने जमा रखा है
सिवाय ममता को छोड़कर
खरीद सकेगा
अपना भी हिस्सा
माँ का सबकुछ
जो उसके हिस्से में आना था
अब दूसरी माँ के हिस्से में आ गया है
वो खरीद सकेगा
बाप नाम के आदमी के भीतर
रखने को एक बाप का दिल
जो उसने पति बनते ही
सुहागरात पर निकालकर रख दिया था
अपनी दूसरी दुल्हन के कदमों में
बच्चे से फेर लिया था मुँह
बच्चा घुटता रहा सदमों में
बच्चा खरीद सकेगा
थोड़ी शर्म भी बाप के लिए
जो माँ की बरसी से पहले
सेहरा सजाने पर उसे नहीं आई थी
वो खरीद सकेगा
अपनी माँ के लिए रत्ती भर इज्जत
जो उसे जीते जी
और मरने के बाद नहीं मिली कभी
बच्चा खरीदेगा
नानी के घर जाने के लिए
गर्मी की छुट्टियों के वही दिन
माँ के मरने के बाद
बाप आज तक कभी
ननिहाल की चौखट पर नहीं ले गया उसे
कि वह एक घण्टा भी बिताता
नाना- नानी का लाड़ पाता
बच्चा चाहता है
कि हिस्से में मिले
उन पैसों से बाप खरीदकर
ले
आएगा भगवान से उसके लिए
उससे एक बार मिलने को तरसते
अस्पताल के बेड पर लेटे
नाना के लिए
कुछ साँसें
जो उससे बिना मिले चले गए
ताकि वे फिर जी उठें
और वो उनसे मिल सके
बच्चा खरीद सकेगा
बूढ़ी नानी की बाहों में वही दम
फिर से झूला झुलाने को
कंत- कतैंया करने को
पाँव के जोड़ों की वही फुर्ती
पकड़म- पकड़ाई खेलने के लिए
बच्चा खरीद सकेगा
मौसी की आँखों की चमक
जो उससे मिलने के लिए रो- रोकर
गँवा दी है उसने
बच्चा खरीद सकेगा वो बचपन
जिसे बाप ने बीतने दिया
बगैर बेफ़िक्री, खेल, मौज- मस्ती के
हर वक्त के रोने के साथ
लेकिन सबसे पहले
खरीदना चाहता है बच्चा
थोड़ा– सा अमृत अपने लिए
माँ को जहर देकर मारने वाले
बाप की वजह से
फिलहाल तो बच्चा
खरीदना चाहता है आजादी
जो माँ के हत्यारे के साथ रहने के डर से
उसे आजाद कराएगी।
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