सीमा स्मृति
1-‘संघर्ष’
रोशनी से आवरित उस भीड में,
जिसकी चकाचौंध में मिचमिचाने लगी है आँखें,
धुँधलाने लगे है रास्ते,
खो गई है शक्ति,
पस्त हो गई है सारी धारणाणाएँ,
’संघर्ष’ सामर्थ्य और चेतना के संग
निकल पडा है जीवन
किसी नये सेतु के सहारे
उस पार
समकालीन जीवन -मंथन करने ।
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2-मुलाकात
इक रवायत नहीं
किसी उम्र का
महकता सुरूर भी नहीं
बदली हवाओं में
थमा सा कोई नशा भी नहीं ।
तुझ से मिलना
जिन्दगी में मिले छालों को,
अपने ही हाथों से मरहम लगाना -सा
दर्पण में अक्स की पहचान सा
रात के बाद दिन से मुलाकात -सा
यथार्थ के टुकडों को सँजोना -सा
अतीत में थमे एहसास सा लगता है मुझे ।
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