पथ के साथी

Friday, March 11, 2011

द्वार से लौटा याचक


रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

द्वार से  लौटे
याचक के दर्द को
कोई लिखता नहीं
सिन्धु-सा गहरा  भी हो
पर दिखता नहीं।
कौन जानेगा-
खाली झोली निहार
वह कितना रोया होगा !
आँसू छिपाने की कोशिश में
चेहरा कितना धोया होगा !
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4 फ़रवरी ,2011