1-एक
जोड़ी पैर
मंजूषा 'मन'
जीवन भर
देखे उसने
सिर्फ एक जोड़ी पैर
और सुनी
एक रौबदार आवाज-
"चलो"
और वो चलती रही
एक जोड़ी पैर के पीछे
करती भी क्या
बचपन से यही सीखा
सिर नीचे रखो
नज़र नीचे रखो
देख भी क्या पाती
नीची गर्दन से
नीची नज़र से
उसे तो दिखे
सिर्फ एक जोड़ी पैर
जो दिशा दिखाते रहे
और धीरे धीरे
वो औरत से
भेड़ में बदल गई
जब भी सुनती
"चलो"
तो बस चल देती
उन दो पैरो के पीछे
बस यही जानती है वो
ये एक जोड़ी पैर
और ये आवाज है
उस पुरुष के
जो मालिक है
मेरे जीवन का।
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2-रुदाली-मंजूषा 'मन'
मन के भीतर एक रुदाली
हर पल ही रोया करती है
मन की उर्वर धरती पर वो
आँसू ही बोया करती है।
खोया जो कब उसका दुख है
कुछ पाने की चाह नहीं है,
न कोई मंजिल है उसकी
कोई उसकी राह नहीं है।
जाने किन जन्मों की पीड़ा
जन्मों से ढोया करती है।
मन के भीतर एक रुदाली…
जीवन के सारे सुख इसने
पाये पाकर ही खोए है,
देखे जो भी इसकी किस्मत
तो अनजाने भी रोए हैं।
आँसू ही इसकी पूँजी हैं
उनको ही खोया करती है।
मन के भीतर एक रुदाली
हर पल ही रोया करती है।
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