पथ के साथी

Thursday, June 4, 2015

अरे बाँस के झुरमुट



डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा

चिड़ियों की बस्ती है तुझमें
रचता मेरा घर,
अरे बाँस के झुरमुट आया
कितने गुन लेकर ।

झूम-झूम के तुझे खिलाए
पवन झकोरे खूब
संगी-साथी आम , नीम सब
और नन्ही -सी दूब
सबके संग हिल-मिलके गाता
गीत बड़े सुखकर !

बचपन की नर्मी है तुझमें
होता कभी कठोर,
जन्म झुलाए , मरण ले चले
तू मरघट की ओर
औरों के हित झुकता -मुड़ता
रहा कभी तनकर !

डलिया,कुर्सी ,मेज़ ,चटाई
रूप कई धरता
कान्हा के अधरों पर सजता
मधुर-मधुर बजता
बिन तेरे कच्ची है कुटिया
और पोला छप्पर !

अरे बाँस के झुरमुट आया
कितने गुन लेकर !
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(04-06-2015)
(चित्र : गूगल से साभार)