डॉ०जया 'नर्गिस'
1-गुंजाइश
काश!दिन
होते
डेली
डायरी की तरह
बेशक
दर्ज होता जिसमें
हर पल
का ब्यौरा
सिलसिलेवार
लेकिन
किसी
ग़लत इबारत को काटने
या
फाड़कर फेंकने
की भी
रहती
गुंजाइश ।
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2-ख्वाहिश
दो
रोज़ तक
दी-रात
साहित्यिक
परिचर्चाओं में
भाग लेने
के बाद
मन
किया
न
करूँ आज
किसी
से कोई बात
खाऊँ केवल
सादी
दाल-भात
दूब
पर चलूँ
नंगे
पाँव
बच्चों
को खेलते देखूँ और
तितलियों
को फूलों पर मँडराते
लगाऊँ
बेबात ठहाके
कोई
भूला हुआ गीत गुनगुनाऊँ
शायद
जीवन
की सहजता का रस
इसी
तरह पा जाऊँ।
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3-मिस
काल
मोबाइल
पर
तुम्हे
कभी-कभार
मिस
काल देना
मानो
छू लेना हौले से तुम्हे
और छुप
जाना
ऐसी
जगह
जो
तुम्हे
पहले
से पता हो।
-0-
डॉ.जया
'नर्गिस'
इलेक्ट्रानिक
डिपार्टमेंट
एन आई
टी टी टी आर
श्यामला
हिल्स भोपाल-2
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2-सविता मिश्रा
मैंने
एक जलती हुई
अधजली
औरत को
बचा
लिया ।
अधजली
इसलिए
कि मैं
उसे
उसकी करनी की
सजा
देना चाहती थी ।
अब आप
ही बताइए
मैं
दयावान या निर्दयी ।
मैंने एक बच्चे को
दुर्घटना
से बचा लिया
क्योंकि
वह
अमीर
बाप का बेटा था
गरीब
के लिए तो मैंने
अपनी
जान की बाजी
कभी
नहीं लगाईं थी ।
अब आप
ही बताइए
मै
स्वार्थी हूँ या फरिश्ता ।
मैंने एक शक पर
पकड़े
निर्दोष आदमी को
ले-
देकर छोड़ दिया
ले
देकर इस लिए कि
वह
अपना वसूल था ।
अब आप
ही बताइए
मैं
ईमानदार हूँ या घूसखोर ।
मैंने अपने घर में
छुपे
हुए कातिल को
बचा
लिया
क्योंकि
मुझे लगा कि
उसने
क़त्ल नहीं किया है ।
अब आप
ही बताइए
मैंने
कर्त्तव्य-पालन किया
या
कानून का उल्लंघन ।
मैं अपने प्रिय नेता पर
लगे
आरोप
सहन
नहीं कर पाती
आरोप
लगाने वाले को
गिरा
हुआ व्यक्ति समझती हूँ
क्योंकि
मुझे लगता है कि
वह
ऐसा नहीं कर सकते ।
अब आप
ही बताइए
मैं
देशभक्त हूँ या देशद्रोही ।
मैंने बिना सोचे समझे
कुछ
पंक्ति को लिखकर
आपके
आगे पढ़ दिया
क्योंकि
मुझे लगता है कि
मैंने
अपनी भावनाओं को
इन
शब्दों में व्यक्त किया है
और
इसी को लोगो ने
कविता
का नाम दिया ।
अब आप
ही बताइए
मैं
कवियत्री हूँ या
समय
की बर्बादी ।
समय
की बर्बादी
आप ही
बताइए ।
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कोई ऐसा ख़ास परिचय नहीं हैं जो
बताया जाय अपने माता श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में
अकेली बिटिया हैं हम ...१७ अगस्त १९७१ में लखीमपुर खीरी में जन्म हुआ
...पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकते हुए इलाहाबाद
में अंत में निवास बना हमारा लगभग बीस साल। दस साल शादी से पहले दस साल शादी के बाद
..अब वर्तमान में आगरा पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी
बिभाग से सम्बद्ध है...हम साधारण गृहिणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते
है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है क्योकि वह विचार जब तक बोले लिखे ना दिमाक में उथलपुथल
मचाते रहते है बस कह लीजिए लिखना हमारा शौक है।
जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी
के बाद पति के कहने पर सारे ढूँढ़ कर एक डायरी में लिखे ।बीच में दस साल लगभग लिखना
छोड़ भी दिया; क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था ... .पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी।छपने पर लगा सच
में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये । दुबारा लेखनी पकड़ने का सबसे
बड़ा योगदान फ़ेसबुक का है। फिर कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम,करुणावती,युवा सुघोष,इण्डिया हेल्पलाइन,
मनमीत, ,रचनाकार और अवधि समाचार में छपा ।
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