जय भारती
हिमगिरि का पहने जो ताज है
जय भारती, जय- जय भारती
मिलकर उतारेंगे आरती
जय भारती,जय- जय भारती
वेदों के
गूँजें
यहाँ मंत्र हैं
रामायण-
गीता- से ग्रंथ हैं
ऋषियों ने दिये गूढ़मंत्र हैं
यहीं हैं
अपाला और गार्गी
जय भारती, जय- जय भारती
बंसी बजाई यहाँ श्याम ने
मर्यादा सिखलाई राम ने
पावन किया चारों धाम ने
प्रयाग-धार
भव से उतारती
जय भारती, जय-जय भारती
चरणों को सागर पखारता
दिग्दिगंत
ओम ही उचारता
स्वर्ग
से है इसकी समानता
ऋतुएँ भी रूप आ निखारतीं
जय भारती, जय-जय भारती
नदियों का माँ जैसा मान है
अतिथि यहाँ देवता समान है
वीरों ने वार दिये प्राण हैं
जब-जब
वसुंधरा पुकारती
जय भारती, जय- जय भारती।
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