फिर फिर याद आती वो
गाँव  की होली 
कमला निखुर्पा 
फगुनाई सी भोर नवेली 
अलसाई सी दुपहरिया ।
साँझ सलोनी सुरमई -सी 
होली के रंग  रँगी रतियाँ  । 
सखियाँ के संग हँसी-ठिठोली 
भुला नहीं पाती वो होली। 
चुपके से पीछे से आकर 
भर-भर हाथ गुलाल लगाती।
सिंदूरी टीका माथे पर 
हँसी अबीरी बिखरा जाती। 
हठीली ननद भाभी अलबेली  भुला नही पाती वो होली।
जलता अलाव खुले आँगन में 
साँझ ढले सब मिलजुल गाते
होली के गीतों के धुन में 
मथुरा-गोकुल की सैर कराते।
घुंघुरू सी बजती गाँव की
बोली ।
भुला नहीं पाती वो होली । 
ढोलक चंग ढप की थाप पे 
ताल बेताल नाचे हुरियार 
इंद्रधनुषी परिधान हुए हैं 
मुखड़े पे रंगों की बहार । 
झूमे हुरियारों की टोली 
भुला नहीं पाती वो होली ।
साड़ी पहन घूँघट में आए।
स्वांग बने काका शर्माए। 
रंगों की बौछार में भीगे
ठुमका लगा कमर मटकाए।
देती ताली काकी भोली 
भुला नहीं पाती वो होली । 
जाने जहाँ खोई वो होली । 
बहुत याद आती वो होली । 
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