पथ के साथी

Sunday, May 10, 2015

पानी तो बहता है



श्याम त्रिपाठी (प्रमुख सम्पादक -हिन्दी चेतना)
1
पानी तो बहता है ,
उसका अपना है अधिकार
बिना जल के मछली तड़पे ।
माँ का दिन
केवल एक दिन ,
जो बुनती है अपने बच्चों के सपने ।
क्या है यह माँ?
ईश्वर का अवतार,
प्यार का सिन्धु ,
वात्सल्य की प्रतिमा ,
अमृत की सरिता ,
अवतारों का अवतार ।
इंसानियत की कसौटी ,
त्याग और बलिदान की परिभाषा,
धरा पर एक अनमोल रत्न ।
आँखों में अश्रु भरे
अपनी पीड़ा को छुपाए ,
रक्षा कवच पहने एक सिंहिनी ।
केवल पश्चिम में
उसके लिए एक एक दिन ,
जबकि उसका का हर पल
अपनी औलाद के सुख के लिए।
कैसा निर्मम यह संसार,
इतनी कंजूसी उस माँ के लिए ,
जिसका जीवन उसका परिवार ।
कैसे बदले यह नयी सोच ,
नया विचार ,
धिक्कार धिक्कार !!

2
जीवन की व्यथा
बन गयी एक कथा
संघर्षों का बोझ
अब कैसे उठा पाऊँ?
3
मार्ग अनेकों
कोई दुर्गम , कोई पथरीला
क्लांत पथिक
कौन उसे सीधी राह दिखाए ।
4
मित्र मिले बचपन में
एक साथ पढ़े और खेले,
बड़े हुए तो बिछुड़ गए
अब कैसे उनसे मिल पाएँ।
5
आयी वसंत ऋतु
विटप, तडाग, लतिकाएँ
कोयलिया आम्र-फुनगी पर बैठी
गीत सुनाए ।
6
प्रीतम गये परदेस
भूलि गए मोको ,
बदरवा गर्जत
उनकी बहुतै याद सताए ।
7
पानी और मछली का प्यार
कैसा है एकतरफा वलिदान,
पानी को नहीं होता कोई गम ,
चाहे कभी भी मछली तोड़ दे दम।
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