पथ के साथी

Monday, June 3, 2013

गुलमोहर से रंग झरे

अनुपमा त्रिपाठी
 रात  ढली   और .... सुबह कुछ इस तरह  होने लगी ....!!
गुलमोहर  से रंग झरे.
सूरज ऐसा रोशन हुआ
कि मोम भी पिघलने लगी
आम्र की मंजरी पर बैठी कोयल
पिया की पतियाँ  लाई
कूक कूक राग वृन्दावनी  सारंग सुनाने लगी ...
भरी दोपहर याद पिया की
बिजनैया जो डुराने लगी
कूजती रही  कोयल
हूक जिया की पल पल जाने लगी
निरभ्र  आसमान में चहकते विहग
जैसे ज़िंदगी मुस्कुराने लगी ...!!
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बिजनैया -पंखा,डुराए -झुलाना