अनुपमा त्रिपाठी
रात ढली और .... सुबह कुछ इस तरह होने
लगी ....!!
सूरज ऐसा रोशन हुआ
कि मोम भी पिघलने लगी
आम्र की मंजरी पर बैठी कोयल
पिया की पतियाँ लाई
भरी दोपहर याद पिया की
बिजनैया जो डुराने लगी
हूक जिया की पल पल जाने लगी
निरभ्र आसमान में चहकते विहग
जैसे ज़िंदगी मुस्कुराने लगी ...!!
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बिजनैया -पंखा,डुराए -झुलाना