रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
आग द्वेष की जब-जब दहके
घर अपने ही जलते हैं ।
उनका बाल न बाँका होता
जो शोलों पर चलते हैं।
2
प्यार किया मैंने जग भर को
बदले में उपहार मिला ।
खुशबू मिली, चाँदनी मुझको
झोली भर-भर प्यार मिला ॥
जिसने नफ़रत रोज़ उगाई,
सींची थी विषबेल सदा ।
केवल काँटे हाथ लगे थे
पछतावा हर बार मिला ।।
3
सुख-दु:ख सारे भोगे मैंने
अब जो सुख मैं पाऊँगा ।
सच कहता हूँ –जाते-जाते
तुझको सब दे जाऊँगा ।
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