[ आज कमला निखुर्पा की बड़ी बिटिया विनीता का जन्मदिन है । यह कविता विश्व की सब माँओं की है। आज से 13 वर्ष पूर्व केन्द्रीय विद्यालय के प्रवक्ताओं
के 21 दिवसीय प्रशिक्षण
-कार्यशाला में केन्द्रीय विद्यालय खमरिया जबलपुर में इस संवेदनशील कवयित्री
से मिलने का सौभाग्य मिला। पाँच-छह राज्यों के शिक्षकों की भीड़
में चुपचाप कार्य में तल्लीन , सभी को पीछे छोड़ते हुए। तब कमला
जी केन्द्रीय विद्यालय भीलवाड़ा में कार्यरत थीं।निर्मल मन का वह सूत्र आज तक मुझ जैसे
अक्खड़ और और रूखे -से व्यक्ति को कसकर बाँधे है। बेटी डॉ विनीता
के लिए हम सबकी कोटिश: शुभकामनाएँ !! ]
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तुम्हारी माँ
कमला निखुर्पा
आज ही के दिन
ऑपरेशन की नीम बेहोशी से
बाहर निकल
कमला निखुर्पा |
अपनी पलकों को खोलने की कोशिश कर रही थी
कि
कोई मेरे कानों में धीरे से बोला-
अपनी बिटिया को देखोगी?
एक नन्ही- सी परी
देखो इसके सर पे
कितने काले-काले बाल
सुनकर दर्द में भी मुस्करा दी थी मैं
काली-काली गोल आंखों को
मटकाती
हैरान- सी दुनिया को देखते हुए
हाथों की बंद मुट्ठी में
अनगिन जादू की छड़ियाँ
खुशियाँ छिपाए
आई मेरी गोद में
भरा-भरा सा मेरा आँचल
पूर्णता का एहसास
माँ बन जाने की गरिमा
छुई मुई- सी
नन्हीं जान की झलक दिखा
नर्स ले गई उसे अपने साथ
फिर कई दिनों तक जिन्दगी
लड़ती रही मौत से
जाने कितने ग्लूकोज
खून की बोतलों से
बूँद- बूँद
टपकती रही ज़िन्दगी
कभी होश में कभी नीम बेहोशी में
डूबती उतराती रही जिंदगी।
नर्सों की भागदौड़
कानाफूसी
डॉक्टरों की चिंता
बिना कहे सब कह जाती थी
पर तुमको छोड़
कैसे जा सकती थी मैं
मौत
से दिन-रात लड़ती
रही
साँसों की टूटती डोर को थामती रही।
पूरे पांच दिन और चार रातों के बाद
फिर से तुम्हें
बाहों
में उठाया
जीवन जीने का एक नया
प्यारा सा मकसद पाया।
तब से अब तक
जाने कितने दिवस बीते
कितनी रातें सपनीली
आज भी स्मृतियों में अंकित है
तुम्हारा अन्नप्राशन
ढेर सारी चीजों के बीच
पहली बार में तुमने उठाई थी कलम
हँसे थे हम।
आज भी याद है
पहली बार यूनिफ़ॉर्म
पहनाकर
तुमको स्कूल भेजना
तुम्हारा टाटा कहकर जाना
खिलौनों में तुमको सबसे ज्यादा पसंद
डॉक्टर सेट और बार्बी डॉल।
वैसे तुम खेलती थी
चींटियों के साथ
कॉकरोच का ऑपरेशन भी कर डालती थी
डरावने कीड़े को पकड़
अपनी
छोटी बहन को डराना
था तुम्हारा प्रिय शगल।
अपने सपनों के
महत्वाकांक्षाओं के बोझ को
तुम्हारे बस्ते में डाल
रोज देखते रहे
तुम्हे टाटा कहकर स्कूल जाते
खुश होते रहे।
डॉ विनीता |
फिर एक दिन वो भी आया
सफेद लैब कोट पहने
गले में स्थेटोस्कोप डाले
देखा तुमको
तुम जा रही थी डॉक्टरी
पढ़ने
उस दिन
तुम्हारे पापा तुम्हे देख रहे थे
और हाथ जोड़ कर धीरे धीरे कुछ कह
रहे थे
आभार प्रकट कर रहे होंगे ईश्वर का शायद ।
वर्षों बीते
अब नयन घट रीते
पर नहीं रीता
तुम्हारा प्यार ।
प्यारी बिटिया
बढ़ती रहो
कदम- दर -कदम।
सफल बनाओ जीवन
शिक्षा के साथ संस्कारों
के बीज बोना
शरीर की चिकित्सा के साथ
मन
के घाव भी भरना
संवेदना की बेल को
कभी मुरझाने ना देना।
भावना के स्रोत को
कभी सूखने ना देना।
सबसे गरीब
सबसे दुखी
सबसे पीड़ित को ही
अपनी प्राथमिकता बनाना
मानवता जो मर रही है धीरे-धीरे
उसे अपनी चिकित्सा से नवजीवन देना।
-(तुम्हारी
माँ)