पथ के साथी

Friday, July 31, 2020

1019-कविताएँ

 अनिता मंडा
1-

बहुत दिनों बाद फ़ोन लगाया था
फिर भी
"हाँ-हूँ" में कट  गया

एक गिलास पानी से निगले
गले में भर आ
रोके गए आँसुओं के गोले

बात क्या होती
वो तो घुल चुकी थी
आँसू, पानी, हवा के रसायन में।
 -0-
 2.

पंक्चर पहिये के दो रस्सियाँ बाँध
बच्चा झूल रहा है 
गुदगुदा रही है नीम की डाली

पीली पत्तियों का अंबार
खिलखिला रहा है पाँवों के तले
एक गतिरहित पहिये से
खुशियाँ गतिमान हैं इन दिनों।
 -0-
 3.

 कबाड़ में पड़ी टूटी साइकिल का पहिया
घर है इन दिनों
एक गोरैया के जोड़े का
 उड़ान -दर- उड़ान
तिनकों का खज़ाना जमा हो रहा है उस पर

कुछ दिनों से चोंच भर-भरकर ला रहा है जोड़ा
चार नई चोंचों का कलरव
नया संगीत दे रहा है

यह सच है
रुके हुए पहियों से
गतिमान है जीवन
विगत कुछ दिनों से
-0-


औरत का दुःख इतना घना था
तपते सूरज से तालाब सूख गए
दुःख ओस- सा बना रहा

उसने अपना दुःख गीतों में ढाला
हवाओं को सुनाया
लताओं को सुनाया
अकेली बैठी चिड़िया को सुनाया
बीच चौराहे गाँव को सुनाया
नदी, समुद्र, जंगल को सुनाए गीत

सारा आसमान गीतों से भर गया
औरत पर दुःख ही बरसा
उसके आँसू सूखे नहीं।

Wednesday, July 22, 2020

1018-आँसू मनमीत हैं


1-आँसू मनमीत हैं
डॉ.सुरंगमा यादव

दर्द की पनाह में
जिंदगी गुज़र ग
जिस तरफ़ बढ़े कदम
रोशनी सिहर ग

स्वप्न टूटने लगे
नैन भीगने लगे
प्रीत को पुकारते
चाँद रात ढल ग

कल कभी आगा
फ़ासला मिटागा
हश्र ये हुआ मगर
राह ही बदल ग

तेरी ये बेरुख़ी
मुझे रास आ ग
जीत की न कड़ी
हार आज बन ग

आँसू मन-मीत हैं
बनते ये गीत हैं
हम  न होंगे तो क्या
भोर न खिल गई।
-0-
2-मुझे जिसने छाँव दी उम्र भर
रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'
[पिता को समर्पित एक कविता, जो मैंने उस वक्त लिखी थी जब वे हॉस्पिटल के आई सी यू में अपनी ज़िंदगी की आखिरी साँसें गिन रहे थे]


मुझे जिसने छाँव दी उम्र भर

वो पेड़ खोखला हो चला है
यक़ीनन
मगर वक़्त की आँधी की मार से
तब बचके कहाँ जाऊँगी
मैं मों की धूप में
फिर छाँव की आस लिये
कहाँ जाऊँगी
जड़ें माना कमज़ोर हो चली हैं
हारी थकी टहनियाँ झुकने लगी हैं
ये देख दुख का भार बढ़ रहा है
साँस मेरी रुकने लगी है
सोच रही हूँ कि
ये पेड़
जो हवा के एक झोंके से
कहीं गिर जागा
ताउम्र जिसके साये में रही
रूह ये सह न सकेगी तूफ़ा
मन थपेड़ों की मार से मर जागा
ज़िंदगी पूछ रही है
तुझसे या रब!
जब दुख का सूरज होगा सर पर
तब बिना उस शजर के
कैसे कटेगा सफ़र!
-0-

Wednesday, July 15, 2020

1017


1-रिहाई
प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'

आज, न जाने क्या बात है...
यूँ तो सब कुछ वही है
पर एक बेचैनी का एहसास है,
हर साल ही तो, आता है पतझड़
जाते हैं पत्ते, सरपट हवाएँ......
इस बार, फिर ऐसा क्या खास है?
कुछ होने को है!..... या शायद हो रहा है,
मेरी रूह को मानो, एक भीना सा आग़ाज़ है
आज न जाने क्यूँ , लयबद्ध सी हो रही हूँ मैं
कभी बेरहमी, तो कभी मुक्ति का आभास है...
बोरिया-बिस्तरा बाँध,
क्या पंछी, क्या गिलहरी
सभी दुबकने को तैयार हैं
हर तरफ, एक चला-चली का माहौल है.....।

मेरी इमारत में भी, कुछ खिड़कियाँ चर्रा रहीं हैं
ढीली सी साँकल, खुलने की हसरत जता रहीं हैं
भूली बिसरी यादों, वादों और शिकायतों के परिंदे
बरसों से कैद ,आस मुक्ति की लगाएँ बैठें हैं...
सोचती हूँ,
चित्र; प्रीति अग्रवाल
मैं भी अलविदा कह ही दूँ !
कब तक थामूँ, और क्यों थामूँ?
आज लौटा ही दूँ उन सबको
जो छटपटा रहें हैं मुझमें, रिहा होने को
आज कह ही दूँ हवाओं से -
लो! इन सब को भी उड़ा ले जाओ
संग अपने, दूर बहुत दूर.....
और, मैं भी आज उठूँ और खड़ी हो जाऊँ,
बेख़ौफ़, बिन मुखोटे, बेझिझक, बेपरवाह,
इन स्वाभिमानी, दरख़्तों की तरह !!!
-0-
2-मील का पत्थर
अर्चना राय

बेमतलब कट रही थी जिंदगी
 जिसका कोई मर्म न था

बेजान-सा था दिल
 कोई न स्पंदन था।
 तन्हा था मन
 कोई हमदम न था।
 मिलकर तुमसे.....
 लगा  लक्ष्य मिल  गया 
जीने का एक नया
 आयाम मिल गया 
साथ अपने हजारों
  सपने दे गया,
 इस बेमानी दुनिया में
 जीने के मायने दे गया 
सूने दिल को सरगम दे गया।
 तन्हा मन को गुलजार कर गया
 हाँ मैं भी हूँ, मेरा भी अस्तित्व है बाकी
 मेरे होने का एहसास भर गया
 मेरा लेखन 
 जीवन में मेरे.....
 मील का पत्थर बन गया।
-0-

3- आँखों में नमी
 मुकेश बेनिवाल
  
आँखों में नमी लेकर
मुस्कुराते तो बहुत हो
कुछ नहीं है कहकर
छुपाते तो बहुत हो
झरोखों से झाँक ही लेते हैं
ये कमबख़्त अश्क
पलकों के पर्दे
गिराते तो बहुत हो
-0-


Sunday, July 12, 2020

1016-काश उसने मुझे समझा होता !


कनिका चतुर्वेदी

काश उसने मुझे समझा होता
ज्यादा नहीं थोड़ा समझा होता
सब कुछ जानक अनजान रहा वो,
काश उसने मुझे समझा होता !

मेरे दिल की उलझन को उसने समझा होता
अगर नहीं समझ रहा है
तो उसने मुझसे पूछा होता
काश उसने मुझे समझा होता !

काश उसने मुझे समझा होता
थोड़ा अपना बताता, थोड़ा मेरी सुनता,
इस रिश्ते को सुन्दर बनाता
काश उसने मुझे समझा होता !

माना की समय नहीं है उसके पास
पर मेरी बाते सुनने को
उसके पास समय होता
काश उसने मुझे समझा होता !

अगर मैं कुछ बोलती उसको
तो मेरी बातों पर ध्यान देता
कोशि करता मुझे समझने की
काश उसने मुझे समझा होता !

जब बाते इतनी बिगड़ गई, 
लगा जैसे सब बदल जागा
तो अपना समय निकाल कर
उसने मुझे समझाया होता
काश उसने मुझे समझा होता !

अगर सच में चाहता वो
ये सब कुछ होने ही न देता
और एक बार प्यार से मुझसे बोलता
कि  आई लाइक यू
काश उसने मुझे समझा होता !

करने लगा हूँ मैं तुमसे प्यार
अब कभी भी न करना दूर जाने की बात
डरता हूँ मैं तुम्हे खोने से
काश उसने मुझे समझाया होता
काश उसने मुझे समझा होता !

एक बार कोशिश तो करता
अपना मुझको मानता अगर
मुझसे बात को करता सही
चाहे समय नहीं उसके पास
पर समय निकलता तो सही
मुझ पर अपना हक रखता
अपना बनाने की कोशिश करता तो सही
काश उसने मुझे समझा होता !

जब सब बिखरने जा रहा
तभी उसने बात की तो होती
बोलता मुझसे न करो ऐसा
मुझसे अलग न हो तुम
अगर ऐसा करना ही था मुझे
तो साथ तुम्हारा मैं क्यों चुनता
काश उसने मुझे समझा होता !

एक बार कॉल लगाता तो सही
एक बार बात करता तो सही
अगर चाहता था वो मुझको
एक कोशिश रोकने की करता तो सही
काश उसने मुझे समझा होता !

फिर चाहे कैसे भी निकले
अपना समय निकालता तो सही
थोड़ी अपनी बोलताथोड़ी मेरी सुनता तो सही 
एक बार और कोशिश करता तो सही

अगर  मुझे वो चाहता है, 
काश वो मुझे समझा होता !
काश वो मुझे समझा होता !!
-0-
शिक्षा: एम कॉम,बी एड(अन्तिम वर्ष)
सम्पर्क:74, चौबे जी का बाग़, फ़िरोज़ाबाद(उ प्र)-283203

Friday, July 10, 2020

1015


1-शहर सयाने
डॉ. सुरंगमा यादव

शहर हो ग हैं बड़े ही सयाने
मिलेंगे ना तुमको यहाँ पर ठिकाने
फटी हैं बिवाई, पड़े कितने छाले
सिकुड़ती हैं आँतें, मिले ना निवाले
है लंबा सफर,ना गाड़ी ना घोड़ा
कहाँ जाएँ अपना जीवन बचाने
श्रमिक जो ना होंगे, तो कैसे चलेंगी
तुम्हारी मिलें, कारखाने,  खदानें
तुम्हारे लिए खून इनका है पानी
भरे इनके दम पर तुम्हारे खजाने
न्होंने बना नर्म रेशम के कपड़े
मगर इनके तन को मिलते ना लत्ते
सैकड़ों जोड़ी जूता जिन्होंने बना
रहे पाँव नंगे  बीते   माने
ये   बच्चे,   ये बूढ़े और नारियाँ
उठाते  हैं   कितनी दुश्वारियाँ
समय आज कैसा कठिन आ गया
छिनी रोजी रोटी खोए  ठिकाने।
-0-
2-आग कैसी लगी 
रमेशराज
जल गयी सभ्यता, आज पशुता हँसे।
दोष जिनमें नहीं
गर्दनों को कसे, आज फंदा हँसे।
नागफनियाँ सुखी 
नीम-पीपल दुःखी, पेड़ बौना हँसे।
सत्य के घर बसा
आज मातम घना, पाप-कुनबा हँसे।
बाप की मृत्यु पर
बेटियाँ रो रहीं, किन्तु बेटा हँसे।
-0-
3- जीवन व्यथा
सविता अग्रवाल 'सवि' कैनेडा  

मंदिर में ऊँचे घंटे- सी
दूर है मंज़िल पास नहीं
उछल- उककर पहुँच ना पाऊँ
पाँव हैं छोटे, पहुँच ना पाऊँ
भटक रही हूँ दिशाहीन- सी
कौन दिशा को मैं अपनाऊँ
संबंधों की गठरी थामे
खोल-खोलकर गिनती जाऊँ
किससे नाता पक्का जोड़ूँ ?
किस नाते को मैं सरकाऊँ
शशोपंज में पड़ी हुई हूँ
किससे सच्ची प्रीत लगाऊँ ?
ठोकर खाऊँ और गिर जाऊँ
उठकर पूरी सँभल ना पाऊँ
कैसी व्यथा भरी जीवन में
किसको जाकर मैं बतलाऊँ ?
    -0-

Monday, July 6, 2020

1014-बनजारा जब लौटा घर को


बनजारा जब लौटा घर को
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

बनजारा जब लौटा घर को
         बन्द उसे सब द्वारा  मिले ।
बदले-बदले से उसको सब
         जीवन के किरदार मिले ।
नींद अधूरी हिस्से आई
सबको बाँटे थे सपने
गैर किसी को कब माना था
माना था सबको अपने ।
इन अपनों से बनजारे को
         घाव बहुत हर बार मिले ।
भोर हुआ तो बाँट दुआएँ
चल देता है बनजारा
रात हुई तो फिर बस्ती में
रुक लेता है बनजारा ।
लादी तक देकर बदले में
         सिर्फ़ दर्द -धिक्कार मिले।
आँधी, पानी, तूफ़ानों में
कब बनजारा टिकता है
मन बावरा कभी ना जाने-
छल-प्रपंच भी बिकता है ।
ठोकर ही इस पार मिली है
         ठोकर ही उस पार मिले
-0-[ शीघ्र प्रकाश्य संग्रह से]

Wednesday, July 1, 2020

1013

वक़्त बोल रहा है !!
सीमा सिंघल 'सदा'

सब की बोलती बंद है इन दिनों,
वक़्त बोल रहा है ..
भय घोल रहा है!!
बड़ी ही ख़ामोशी से
कोई बहस नहीं,
न ही कोई,
सुनवाई होती है
एक इशारा होता है
और पूरी क़ायनात उस पर
अमल करती है!!!

सब तैयार हैं कमर कसकर,
बादल, बिजली, बरखा के साथ
कुछ ऐसे विषाणु भी
जिनका इलाज़,
सिर्फ़ सतर्कता है
जाने किस घड़ी
करादे, वक़्त ये मुनादी.…
ढेर लगा दो लाशों के,
कोई बचना नहीं चाहि!!
2020 फिर लौटकर
नहीं आएगा,
जो बच गया उसे
ये सबक याद रहेगा,
ज़िंदगी की डोर
सिर्फ़ ऊपरवाले के हाथ में है!!!
तुम क्या चीज़ हो 
वह तोल रहा है
वक़्त बोल रहा है !!
-0-