पथ के साथी

Friday, October 28, 2022

1255-करवाचौथ के बहाने..

 डॉ. सुरंगमा यादव

 

तुम न होतीं तो मेरे लिए


करवाचौथ व्रत रखता कौन

तुम न होतीं तो मेरे अँगना

चूड़ी- पायल खनकाता कौन

तुम न होतीं तो मेरे जीवन का

एकाकीपन भरता कौन

तुम न होतीं तो आलता लगाकर

मेरा आँरंग जाता कौन

तुम न होतीं तो घर के दर्पण पर

माथे की बिंदिया चिपकाता कौन

तुम न होतीं तो नित फरमाइश कर

मान- मनौव्वल करता कौन

तुम न होतीं तो बिखरे रिश्तों को

सीता और पिरोता कौन

तुम न होतीं तो जीवनभर

सुख- दु:ख में साथ निभाता कौन

तुम न होतीं तो व्याकुल मन की

बिन बोले पीड़ा पढ़ लेता कौन

मैं कहूँ भले ही न मुख से

तुम मेरे मन का हो  संबल

ये  हृदय जानता है मेरा

मुझको तुमसे है कितना बल

तुम से ही मान बढ़ा मेरा

तुमने परमेश्वर माना है

तुम अगर न होगी पास मेरे

घर क्या मन भी उजाड़ हो जाना है

तुमको खोने से डरता हूँ

व्रत भले नहीं मैं रख पाता

पर कुशल कामना करता हूँ

तुम जीवन रण में ढाल मेरी

निरंकुश मन का अंकुश हो

शब्दों में अधिक नहीं कह पाता हूँ

पर सच है तुम मेरा सब कुछ हो ।

-0-

Wednesday, October 26, 2022

1254

 इस दीवाली

 शशि पाधा

 

इस दीवाली दीप माल में 

आस की ज्योत जलाना मीता  


हर घर में उजियारा छाए
 

प्रेम की लौ बिखराना मीता 

 

दीपों की लड़ियों में हम- तुम 

धूप किरन को गूँथेंगे

झिलमिल तारों की लड़ियों को 

कंदीलों में बुन लेंगे

 

परहित जलती सूरज -ज्योति 

धरती पर ले आना मीता 

दीप वही जलाना मीता 

 

वैर-द्वेष की लाँघ दीवारें 

मिल-जुल पर्व मनाएँगे

हर देहरी रंगोली होगी 

मंगल- कलश सजाएँगे 

 

नीले अम्बर की बदली से 

नेह गगरी भर लाना मीता 

अँगना में बरसाना मीता 

 

चलो कहीं विश्वास जगाकर 

अधरों पे मुस्कान धरें 

चलो कहीं बाँटें फुलझड़ियाँ 

मिश्री मेवे थाल भरें 

 

आज किसी खाली झोली को 

खुशियों से भर जाना मीता 

ऐसा पर्व मनाना मीता 

-0-

 

Tuesday, October 25, 2022

1253-मैं अदृश्या.. सॉनेट

 अनिमा दास

 उज्ज्वल नक्षत्रों में लुप्त जीवन का एक अन्वेषण


करती रही मैं अर्धशतक आयु पर्यंत निरीक्षण

मंत्र ध्वनि-मंगल ध्वनि से गूँजता रहा.. शून्यमंडल

दिवा-निशि आत्म-क्रंदन स्तब्ध किया पुष्प दल।

 

"तमिस्र तमिस्र" कहा; किंतु नहीं लाया कभी प्रकाश

अपितु तमस की परिधि में समग्र स्वप्न हुए नाश

शून्य को घोर शून्य होते करता रहा वह प्रतीक्षा

किंतु कहा नहीं अमृत मुहूर्त की भी हो अन्वीक्षा।

 

आज का ज्योति पर्व..मुखर हुआ शताब्दी पश्चात्

रघुवीर का प्रत्यागमन..अथवा विश्वास का भूमिसात्

किंतु हुआ था पुरुष पुरुषोत्तम... वैदेही हुई थी रिक्त

किंतु ज्योतिर्मय है अयोध्या..अंतर्मन हुआ प्रेम-सिक्त।

 

न न... कोई प्रतिवाद अथवा नहीं है कोई परिवाद

मैं सदा रहूँगी अदृश्या किंतु मुझसे ही होगा शंखनाद।

-0-कटक, ओड़िशा 

 

Friday, October 14, 2022

1252--कवि के घर में चोर

 रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

 

घुस गए चोर कवि जी के घर में

सोते-सोते सुना रहे थे कविता

वे ऊँचे स्वर में ;

संयोजक उन्हें बार-बार  कुर्ता खींचकर

टोक रहे थे ,

हर कविता के बाद घण्टी बजाकर  भी

उन्हें रोक रहे थे।

कवि जी झल्लाए,

और गला फाड़ आवाज़ में चिल्लाए-

‘यह मेरा घर है, मैं बार -बार बता रहा हुँ

आखिरी बार  तुम्हें अब समझा रहा हूँ-

यहाँ पर तुम्हारी दाल हरगिज़ न गलेगी

और कहीं चलती होगी तुम्हारी चाल

यहाँ पर बिल्कुल न चलेगी।’

 यह चेतावनी सुनकर

सिर पर रखकर पैर, चोर वहाँ से भागे

भगदड़ सुनकर कवि जी गहरी नींद से जागे।

कविता के फ़ायदे कवि जी को जँच गए

कविता के कारण ही वे लुटने से बच गए।

-0-8-9-1985


Saturday, October 8, 2022

1251

 1-हिन्दी है पहचान हमारी

डॉµ सुरंगमा यादव

     हिन्दी है पहचान हमारी
      हिन्दी है हम सबकी प्यारी
      इसके स्वर-व्यंजन में लहके
      नाना भावों की फुलवारी
हिन्दी ने छेड़ी जब तान
स्वतंत्रता का उत्कट गान
गूँज उठा बस एक राग
अंग्रेजों छोड़ो हिन्दुस्तान
      मीठी -मधुर बोलियाँ प्यारी
      हिन्दी की सखियाँ हैं सारी
      सूर कबीर औ' तुलसीदास
      हिन्दी है इन पर बलिहारी
आजादी को देख सिहाई
हिन्दी हँसी और मुस्कायी
जाने कैसी नीति बनी पर
हिन्दी करती है भरपाई
    शिक्षा और न्याय की भाषा
      बन अंग्रेजी करे तमाशा
       हिन्दी के सर चढ़कर बोले
       मैं ही हूँ भविष्य की आशा
अपनों का भी हाल अजब है
अंग्रेजी की बड़ी तलब है
'हिंग्लिश' ही अब बोल रहे हैं
अंग्रेजी ही स्टेट्स अब है
     लिपि से भी अब तोड़ें नाते
      रोमन लिपि में हिन्दी लिखते
      ए-बी-सी को बड़ा समझकर
       क-ख-ग से नाक चढ़ाते
लेकिन हिन्दी बढ़ती जाती
हिन्दुस्तान का दिल कहलाती
हिन्दी को बिन सीखे-समझे
संस्कृति नहीं समझ है आती

-0-


2-खुशी/ पूनम सैनी

 

कहो कब है खुशियाँ मिली

मयखानों के द्वार

बहाने बहुत है बहने को,

बहकने को भी हज़ार

कोई डूबा बोतलों की आब में

कोई आँसुओं के सैलाब में

गम सदा रहा जलता मगर

दिल के कोमल चिराग में

ला लबों पर तू किसी के

महकी सी मुस्कान

छेड़ दे दिल तार पर तू

उल्लसित -सी तान

भरे नयन से बहता नीर

बाँटेगा बस केवल पीर

तेरे अधरों की मुस्कान

किन्हीं लबों की होगी शान

हृदय बरसते सावन को तू

बना बसंत का बाग खिला

बाँट सकोगे केवल उतना

जो भी खुद भीतर मिला

-0-

Friday, October 7, 2022

1251

 कृष्णा वर्मा

1

चेहरे से कहाँ लगता है

असल का अंदाज़ा 

लोग तो परतों में 

खुला करते हैं।

2

दुख की जड़ों में ही होती है

सुख की पौध

ज्यों-ज्यों दुख काटते जाओगे 

सुख उगता आएगा। 

3

उँगलियाँ निभा रही हैं

रिश्तों को आज

जाने क्यों मार गया है काठ

ज़ुबानों को।

4

पल में ले लेते हैं जान

मख़मली लहजे

रखना परहेज़ 

शीरी ज़ुबानों से।

5

बूढ़ी माँ को बच्चे

समझें सौदाई

बात समझ के कहते 

समझ नहीं आई। 

6

चुप्पी का करें सम्मान 

गुरु होती है यह 

आवाज़ों की। 

7

बेग़ैरत लोग अक्सर 

उसी को डुबोते हैं 

जिससे सीखा होता है 

उन्होंने तैरना। 

8

बात तो आचरण की होती है

वरना 

क़द में तो साया भी 

इंसान से बड़ा होता है।

9

बेफिक़्री की डोर बाँधकर 

उड़ा दो आसमान में

परेशानियों की पतंग   

कोई न कोई तो 

कर ही देगा 

बो काटा। 

10

आसान नहीं होता

घरों को बसाना

पता नहीं 

कितनी परीक्षाओं से

गुज़रे होते हैं

बसे हुए घर। 

11

जिस ख़ास के लिए 

आप ख़ास नहीं हैं

उसे आम कर दो 

जिस आम के लिए  

आप ख़ास हो

उसे ख़ास कर दो।

13

व्यस्तता ही भली

तनिक खाली बैठे नहीं कि

बीते को दोहराने लगती हैं

तनहाइयाँ।

14

अच्छे लोग उन उजालों से होते हैं 

जो फासले तो कम नहीं कर सकते

लेकिन 

मंज़िल को आसान बना देते हैं।

15

आँसुओं की ताकत  

बेरंग होते हुए भी 

कर देती है आँखों को लाल।  

-0-

Monday, October 3, 2022

1250-दूसरे द्बारे जा नहीं सकता

 रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

 

गुलाब के अधर खुलते हैं तो

तेरे हृदय के खिलने का आभास होता है

मलय पवन के संस्पर्श से

रन्ध्र मत्त होने पर

अगुआ तेरा हर श्वास होता है ।

मुझे अपने चरणों की

धूल बन जाने दे,

फूल बनकर राह में

अपनी बिछ जाने दे ।

 

मुझे सुख है या कि दु:ख

हर्ष है या विषाद

कुछ कह नहीं सकता

तेरे सृजन पर कोई उँगली उठाए

करे विवाद , बिना बात

मैं सह नहीं सकता ।

तेरी प्रत्येक भेंट की मैंने

प्राण से स्वीकार

सोच भी नहीं सकता कि

तुझमें है कोई विकार ।

 

आँसू हो या कोई गीत

सम्पत्ति हो या कोई विपत्ति

प्रियतम! तेरी किसी  भेंट को

कभी लौटा नहीं सकता

आकर तेरे पगतल में

किसी दूसरे द्वारे जा नहीं सकता ।

(रचनाकाल;27-4-74)

Saturday, October 1, 2022

1249

 भीकम सिंह 

मन

 

मन बेईमान 

एक सफर पर नही चलता 

ढूँढता, रास्ते नित नये   

 

पहलों से ऊबकर 

करने को कुछ नया 

देखे  , अखब़ार की तहें ।

 

भरा रहे वादों से 

एकत्र करके यादों के 

गड्ढों में, बहता रहे 

 

गुमनामी में जीता 

लेकिन अभिलाषा यही 

बस , नाम चलता रहे 

 

मन बेईमान 

भले हो खामोश 

मन मेंकिन्तु कहता रहे   

-0-

2-राधे

1

हँसना उतना ज्यादा पड़ता है, ज़ख्म जितना गहरा होता है

जिंदा है बस इसी आस में  कि हर शाम के बाद सवेरा होता है

 

नकाब उतार भी दे फिर भी, सच सामने नहीं आता जहाँ में

क्या अपना,पराया, हर चेहरे के पीछे एक चेहरा होता है

 

वो गलत होकर भी सही है, मगर हम सही होकर भी हैं गलत 

क्या पूछ रहे हो, कैसे, अरे यहाँ कसूर तो बस मेरा होता है

 

क्या दुश्मन, क्या दोस्त, क्या अपना, क्या पराया सभी हैं निर्दोष

क्या खूब लूटा है जमकर हमको, वक्त भी गजब लुटेरा होता है

-0-

2-

1

चेहरे पर खामोशी दिल में बवाल था

झूठा ही सही पर मेरा यार कमाल था

घंटों नहीं बिकी वफ़ा इश्क बाज़ार में

उधर बेवफाई में जबरदस्त उछाल था

3

देखना तो था मगर उससे ख्वाब कौन माँगे

सवाल बहुत हैं मगर उससे जवाब कौन माँगे

कहा सब ने पूछ लूँ क्यों छोड़ा बीच सफर में

मगर समंदर से दरिया का हिसाब कौन माँगे

-0-

4-वक्त और वो

 

ये बुरा वक्त भी तो वक्त ही है सुधर जाएगा

लौट आएगा वो भी, जाने दो, किधर जाएगा

जितना मर्जी घूम ले वो मंजिल दर मंजिल मगर

फकत बेचैन ही रहेगा हर दम जिधर जाएगा

सभी राह बंद होगी तो वापस लौट चल देगा

आ पास मेरे, बाहों में, मोती बिखर जाएगा

अगर मिल भी जाए मंजिल उसे बीच रास्ते में

तो फिर कौन- सा, बिना उसके, राधे मर जाएगा

-0-

3- विवशता/ पूनम सैनी

 

 

होती नहीं कुछ चीज़ें

बस में हमारे।

छूटती सी चली जाती है जैसे

हाथ से बालू,

नहीं बस में रोक लेना

वक्त को भी वैसे।

गहराते अंधेरे के साथ

घिरते से अनगिनत ख्याल,

पर ज़हन से निकाल पाना

नहीं बस में हमारे।

कुछ पनपते से जज़्बात,

कुछ रह- रह लौट आती यादें,

कभी एक चेहरे को याद कर

अनायास ही मुस्कुरा देना।

बेसबब सा कभी

भर आना आँखों का।

हृदय की गहराई में

उमड़ते तूफान के बीच

कौंधती बिजलियों को

काबू कर पाना।

उलझे मन से

खुद को सुलझाना।

मुश्किल है बहुत... क्योंकि

होती नहीं कुछ चीज़ें

बस में हमारे।

-0-

4-कपिल कुमार

1

डायनासोर प्रजाति की छिपकलियो!

तुमने लिखा है क्या

अपने पूर्वजों का इतिहास

या बस किया

उजाले के इर्द-गिर्द घूमने वाले

कीट-पतंगों का भक्षण,

 

वैज्ञानिक-शोध

दे रहे तर्क-वितर्क

कोई कह रहा है

धरती से उल्का पिंड के टकराने से विलुप्त हुए

किसी के सिद्धांत के सिर- पैर तक नहीं

 

दे रहे है सभी

भाँति-भाँति के सिद्धांत

ल-जुलूल सिद्धांत

जितने मुँह उतनी बातें

सभी लगे हुए है

अपने-अपने सिद्धांत को

सत्य और सटीक साबित करने में

 

किसी दिन अपने

संग्रहालयों, पुस्तकालयों में जाकर

उठा लाओ

वो सारी पांडुलिपियाँ

जो लिखी है प्रबुद्ध इतिहासकारों ने

और जलाकर राख कर दो

वो सारे फ़र्जी दस्तावेज

जो लिखे गए है

घिसे-पिटे इतिहासकारों द्वारा,

 

पटक दो इन प्रामाणिक पांडुलिपियों को

उस मेज पर

जिस पर रखे है झूठे तथ्य

और बन्द कर दो

सभी का मुँह।

2

मैं चाहता हूँ

अपने घास फूस के कच्चे घर को तोड़कर

आधुनिक शैली का भवन बनाना

मिट्टी की लिपी-पुती दीवारों पर पलस्तर चढ़ाना

फ़िर अचानक विचार आता है

 

मेरे इस घर के अंदर 

टाँड पर पड़ी जच्चा छिपकली का

जिसके सभी सगे- संबंधी जुटे है

कुआँ-पूजन की तैयारी में

आ रही है उसकी सहेलियाँ

उसको बधाई देने

 

मेरा घर तो सदियों पुराना है

लगभग दो सप्ताह पहले

इसके छप्पर में 

एक चिड़िया ने बनाया था

अपना नया घर

ब्याज पर पैसे लेकर 

या होम लोन लेकर

मैं नही चाहता

उसको उजाड़ना

 

दो बल्लियों के बीच खाली जगह में रोज मिलते है 

अजीब किस्म के दो कीट

जिनकी प्रजाति मैंने कभी जानने की कोशिश नहीं की

उनकी हरकतों से लगते है

प्रेमी-प्रेमिका

शायद उनको इससे सुरक्षित जगह कोई ना मिली हो

मैं नहीं चाहता

उनके वियोग का कारण बनना

 

रात को आले में जलती डिबिया के उजाले में

मैं देखता हूँ ऐसे ही असंख्य जीव

जो व्यस्त है भिन्न-भिन्न कार्यों में

छप्पर को अपनी दुनिया मानकर

मैं नही चाहता

उनको उद्विग्न करना

इसलिए मैं प्रतिदिन त्याग देता हूँ

घर तोड़ने का विचार।

-0-