अब तुम याद नहीं
आते....
डॉ.पूर्वा शर्मा
जीवन में ऐसा मोड़ आ गया है
कि अब तुम याद नहीं आते,
आज भी भोर किरण धरा-मुख चूमती
है
पुरवाई हौले से छूकर तन को
सहलाती है
पर अब तुम याद नहीं आते,
पलाश पर बैठी कोयल मीठे गीत
सुनाती है
रंग-बिरंगे कुसुम क्यारियों को
सजाते हैं
पर अब तुम याद नहीं आते,
वर्षा की बूँदों से महकी
मिट्टी मन को महकाती है
चाँदनी में नहाई धरा खिलखिला
के दमकती है
पर अब तुम याद नहीं आते,
पर अब तुम याद नहीं आते, नहीं आते...
तुम ही बताओ तुम्हें याद कैसे
करूँ ?
तुम्हें भूलूँ, तभी तो याद करूँ
तुम्हें भूल ही नहीं पाती
क्योंकि
बसे हो मुझमें यूँ मुझसे
ज्यादा तुम कि
प्रत्येक श्वास-प्रश्वास में
तुम ही महकते
हरेक
धड़कन में तुम ही धड़कते
इन
नैनों में भी केवल तुम ही बसते
कण-कण
में बस तुम ही तुम समाते
प्रतिपल
सिर्फ तुम मेरे ही साथ रहते
बसे
हो मेरी आत्मा में कुछ इस तरह
कि
तुम्हें भुलाना अब असंभव है
तुम्हें
याद करूँ भी तो कैसे?
तुम्हें
भूल ही नहीं पाती
तो
याद भी नहीं कर पाती
इसलिए
अब मैं यही हूँ कहती
कि
अब तुम याद ही नहीं आते
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2-अनिता मंडा
1
हाँडी भीतर ऊँट
को, ढूँढ रहा संसार।
ऐसी ही गत प्रीत की, पतझड़ हुई बहार।।
ऐसी ही गत प्रीत की, पतझड़ हुई बहार।।
2
मुस्कानों का
आवरण, भीतर सौ-सौ घात।
होने लगे बसंत में, पीले पीले पात।।
होने लगे बसंत में, पीले पीले पात।।
2
मल्लाहों के पास
है, कश्ती बिन पतवार।
और दिखायें ख़्वाब वो, कर लो दरिया पार।।
और दिखायें ख़्वाब वो, कर लो दरिया पार।।
3
होठों पर हैं
चुप्पियाँ, भीतर कितना शोर।
सूरज ढूँढे खाइयाँ, आए कैसे भोर।।
सूरज ढूँढे खाइयाँ, आए कैसे भोर।।
4
परछाई है रात की, बुझी बुझी सी भोर।
उजियारे के भेष में, अँधियारे का चोर।।
उजियारे के भेष में, अँधियारे का चोर।।
5
जुगनू ढूँढे भोर
में, पतझड़ में भी फूल।
कुदरत के सब क़ायदे, लोग गए हैं भूल।।
कुदरत के सब क़ायदे, लोग गए हैं भूल।।
6
प्रतिलिपियाँ सब
नेह की , दीमक ने ली चाट।
पांडुलिपि धरे बैर की, बेच रहे हैं हाट।।
पांडुलिपि धरे बैर की, बेच रहे हैं हाट।।
7
सूनी घर की
ड्योढियाँ, चुप हैं मंगल गीत।
जाने किस पाताल में, शरणागत है प्रीत।।
जाने किस पाताल में, शरणागत है प्रीत।।
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