पथ के साथी
Sunday, November 25, 2012
Friday, November 23, 2012
Thursday, November 22, 2012
वह परिन्दा है
सुदर्शन रत्नाकर
खुली खिड़की से उड़ कर
वह अंदर आया
मैंने पकड़ कर सहलाया तो
वह सिमट गया ।
मेरी हथेली पर रखे दाने
चोंच भर खा गया ।
मेरी आँखों में उसने
प्यार का समन्दर देखा
और उड़ना भूल गया
मैं उसे फिर सहलाऊँगी
और
-दोनों
हाथों
से
उड़ाऊँगी
वह उड़ तो जाएगा
पर कल फिर आएगा
दाना खाएगा
उड़ना भूल जाएगा ।
वह रोज़ ऐसा करेगा
खुली खिड़की से आएगा
छुअन का एहसास करेगा
सिमटेगा
खाएगा ।
वह मेरे हाथों के स्पर्श को एहसासता है
वह मेरे प्यार की भाषा समझता है
वह परिन्दा है
वह सब जानता है
इन्सान नहीं
जो प्यार की गहराई को नहीं समझता
जो अपनों को भूल
अपने लिए जीता है
और
अवसर मिलते ही
उड़ जाता है
कभी लौट कर न आने के लिए
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Wednesday, November 14, 2012
प्यारी गौरैया
डॉ• ज्योत्स्ना शर्मा
ओ नन्हीं प्यारी
गौरैया
फुदक -फुदककर ता-ता -थैया
कितनी सुबह
-सुबह
जग जाती
तुम मीठे सुर
साज़ सजाती
बजे अलार्म भले
न मेरा
मुझे समय
से आन जगाती
तुम ना हो तो फिर पक्का है
कान खिंचें और
मारे मैया
छुट्टी के
दिन सोने देना
सुख सपनों में
खोने देना
देखो बात
न बढ़ने पाए
बहुत देर
मत होने देना
दाना- पानी दूँगी
तुमको
मान करूँगी सोन
चिरैया
ओ मेरी प्यारी
गौरैया
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Wednesday, November 7, 2012
सिर्फ़ बचा अपमान
दोहे
रामेश्वर
काम्बोज ‘हिमांशु’
1
महल बेहया हो गए , करते हैं परिहास । ।
2
दीमक फ़सलें चट करें ,घूम
-घूम घर द्वार ।
गाँव- नगर लूटे सभी, लूटे
सब बाज़ार । ।
3
इज़्ज़त लुटी गरीब की , लूट
लिया हर कौर ।
डाकू तो बदनाम थे , लूटे कोई और । ।
4
पोथी से डरकर छुपा , जेबों में कानून ।
जिसकी जेबें हों भरी ,
उसको चढ़े जुनून । ।
कर्ज़ चढ़ा हल तक बिका, बिके
खेत खलिहान ।
दो रोटी की भूख थी, सिर्फ़
बचा अपमान । ।
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Saturday, November 3, 2012
सुगन्ध छुपी, ( हाइकु)
रामेश्वर काम्बोज ’ हिमांशु’
1
क्षय -पीड़ित
हुआ नील गगन
साँसें उखड़ीं ।
2
तन झुलसा
घायल सीने का भी
छेद बढ़ा है ।
3
कड़ुवा धुँआ
लीलता रात-दिन
मधुर साँसें ।
4
सुरभि रोए
प्राण लूट ले रहीं
विषैली गैसें ।
5
वसुधा -तन
रोम- रोम उतरा
विष हत्यारा ।
6
सुगन्ध छुपी,
पहली वर्षा में जो
दुर्गन्ध उड़ी ।
7
दुर्गन्ध बने
घातक रसायन
माटी मिलके ।
8
गुलाब दुखी
बिछुड़ी है खुशबू
माटी हो गया ।
9
घास जो जली
धरा गोद में पली
गौरैया रोए ।
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