पथ के साथी

Monday, May 2, 2016

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1-आँसू छंद : डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
जब यादें संग तुम्हारी
मैं हँसती ,मुसकाती हूँ
तुम दे जाते हो पीड़ा
मैं उसको भी गाती हूँ ।
2
सुख-दुख समभाव मुझे सब
गम ख़ुशियों का डेरा है
अब लेश न मुझमें मेरा
जो शेष बचा तेरा है ।
3
ये कड़ी धूप छाया दे
कंकड़ -कलियाँ राहों में
इतने निष्ठुर मत होना
संगीत सुनो आहों में ।
4
मिलना तो मुझको वो ही
जो क़िस्मत का लेखा है
सीपी या रजकण आगे
बूँदों ने कब देखा है ।
5
मैं गिरती हूँ उठती हूँ
लहरों के संग नदी सी
बस मूक न सह पाऊँगी
इस बीती त्रस्त सदी सी ।
6
पूजन-वंदन कब चाहा
हाँ ! मर्यादा रहने दो
मत रोको पथ मेरा भी
अविरत ,अविरल बहने दो
7
इतना चाहा पूरा हो
हर सुंदर स्वप्न तुम्हारा
ओ प्रेम पथिक यूँ तुमपर
सर्वस्व लुटा मन हारा ।
8
निर्मम दुनिया जीने का
आधार तुम्हीं से मेरा
मन के सच्चे मोती हो
शृंगार तुम्हीं से मेरा ।
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2-दोहे-आभा सिंह
1
नदिया दुबली हो रही, जल जैसे आभास।
नेह सरसता खो रही,उचट रहा विश्वास ॥
2
गरमी चैन बुहारती,धूप बनी मुँहजोर ।
हलक सुखा बेरहम,लू-लपटें झकझोर
 3
गरमी का कर्फ़्यू  लगा,सूनी गलियाँ ,बाट।
सुबह दुपहर घूम रही,ले आँधी की हाट ॥
4
गरमी की थीं छुट्टियाँ,ख़ूब मनाई साथ ।
गाने गप्पें हुड़दंग,और ताश के हाथ ॥

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