1-आँसू छंद : डॉ ज्योत्स्ना
शर्मा
1
जब यादें संग
तुम्हारी
मैं हँसती ,मुसकाती हूँ
तुम दे जाते हो
पीड़ा
मैं उसको भी गाती
हूँ ।
2
सुख-दुख समभाव मुझे
सब
गम ख़ुशियों का
डेरा है
अब लेश न मुझमें
मेरा
जो शेष बचा तेरा है
।
3
ये कड़ी धूप छाया
दे
कंकड़ -कलियाँ राहों में
इतने निष्ठुर मत
होना
संगीत सुनो आहों
में ।
4
मिलना तो मुझको वो
ही
जो क़िस्मत का लेखा
है
सीपी या रजकण आगे
बूँदों ने कब देखा
है ।
5
मैं गिरती हूँ उठती
हूँ
लहरों के संग नदी
सी
बस मूक न सह पाऊँगी
इस बीती त्रस्त सदी
सी ।
6
पूजन-वंदन कब चाहा
हाँ ! मर्यादा रहने
दो
मत रोको पथ मेरा भी
अविरत ,अविरल बहने दो
7
इतना चाहा पूरा हो
हर सुंदर स्वप्न
तुम्हारा
ओ प्रेम पथिक यूँ
तुमपर
सर्वस्व लुटा मन
हारा ।
8
निर्मम दुनिया जीने
का
आधार तुम्हीं से
मेरा
मन के सच्चे मोती
हो
शृंगार तुम्हीं से
मेरा ।
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2-दोहे-आभा
सिंह
1
नदिया दुबली हो रही, जल जैसे आभास।
नेह सरसता खो रही,उचट रहा विश्वास ॥
2
गरमी चैन बुहारती,धूप बनी मुँहजोर ।
हलक सुखाए बेरहम,लू-लपटें झकझोर
3
गरमी का कर्फ़्यू लगा,सूनी गलियाँ ,बाट।
सुबह दुपहर घूम रही,ले आँधी की हाट ॥
4
गरमी की थीं छुट्टियाँ,ख़ूब मनाई साथ ।
गाने गप्पें
हुड़दंग,और ताश के हाथ ॥
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