याद नहीं
मुमताज़ -टी एच खान
ज़िन्दगी में उतार-चढ़ाव आया , अब कुछ याद नहीं।
इस दुनिया ने हमें खूब रुलाया , अब कुछ याद नहीं।
अपनों ने हमें पराया बनाया , अब कुछ याद नहीं।
सारी -सारी रात हमें जगाया , अब कुछ याद नहीं।
पीड़ाओं को खूब गले लगाया , अब कुछ याद नहीं।
ज़िन्दगी में हमने धोखा खाया, अब कुछ याद नहीं।
आपने जबसे हमारे जीवन में , फैलाई रोशनी
बीत गए सब अँधेरे वो कैसे , अब कुछ याद नहीं