पथ के साथी

Friday, September 17, 2010

याद नहीं

याद नहीं
मुमताज़ -टी एच खान


ज़िन्दगी में  उतार-चढ़ाव आया , अब कुछ याद नहीं।
इस दुनिया ने हमें खूब रुलाया , अब कुछ याद नहीं।

अपनों ने हमें पराया बनाया , अब कुछ याद नहीं।
सारी -सारी रात हमें जगाया , अब कुछ याद नहीं।

पीड़ाओं को खूब गले लगाया , अब कुछ याद नहीं।
ज़िन्दगी में हमने धोखा  खाया, अब कुछ याद नहीं।

आपने जबसे हमारे जीवन में  , फैलाई   रोशनी
बीत गए  सब अँधेरे वो कैसे ,  अब  कुछ याद नहीं

Wednesday, September 15, 2010

हमारा वादा है


-मुमताज़ और टी एच खान

आप हमको मिले,
यह हमारा भाग्य था ।
आपने हमको अपनाया,
यह हमारा सौभाग्य था ।
आप वर्षों  बाद फिर मिले,
यह फिर हमारा सौभाग्य है ।
आपसे हमने भाई का स्नेह पाया,
यह आपकी  महानता और  हमारा सौभाग्य है ।
आपको हम जीवन भर खोने नहीं देंगे,
यह आपसे हमारा वादा है।
-0-

Saturday, September 11, 2010

ईद का ये दिन

ईद का ये दिन
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
सबके घर में खुशियाँ लाए , ईद का ये दिन 
प्यार-भरे बादल बरसाए , ईद का ये दिन ॥
घोल न पाए कोई नफ़रत , किसी के दिल में।

पाक़ीज़गी रोज़ बिखराए, ईद का ये दिन ॥

Monday, September 6, 2010

भारतीय नारी

नाम: डा. हरदीप कौर संधु
जन्म: बरनाल़ा (पंजाब)
सम्प्रति: पिछले छह-सात साल से सिडनी (आस्ट्रेलिया) में प्रवास ।
शिक्षा:पी.एच-डी.( बनस्पति विज्ञान)
कार्य : अध्यापन
रुचि:हिन्दी-पंजाबी दोनों भाषाओं का साहित्य पढ़ना, कविता-कहानी लेखन, पेंटिंग, शिल्प कला।


 डॉ हरदीप सन्धु

भारतीय नारी
निभाती है
ऊँची पदवियों से भी
ऊँचे रिश्ते
कभी बेटी ....
कभी माँ बनकर
या फिर किसी की पत्नी बनकर
फिर भी मर्द
ये सवाल क्यों पूछे -
कैसे बढ़ जाएगी
उम्र मेरी ?
तेरे रखे व्रतों से ?
अपनी रक्षा के लिए
अगर आज भी तु
म्हें
 बाँधना है धागा
इस इक्कीसवीं सदी में
तेरा जीने का क्या फ़ायदा ?
सुन लो....
 ओ भारतीय मर्दो
यूँ ही अकड़ना तुम छोड़ो
आज भी भारतीय नारी
करती है विश्वास
नहीं-नहीं....
अन्धा विश्वास
और करती है
प्यार बेशुमार
-
अपने पति
बे
टे या भाई से ।
जिस दिन टूट गया
यह विश्वास का धागा
व्रतों से टूटा
उस का नाता
कपड़ों की तरह
पति बदलेगी
फिर भारतीय औरत
जैसे आज है करती
इश्क़  पश्चिमी औरत
न कमज़ोर
न अबला-विचारी

मज़बूत इरादे रखती
आज भारत की नारी
धागे और व्रतों से
रिश्तों की गाँ
और मज़बूत वह करती
जो जल्दी से न
हीं  खुलती,
प्यार जताकर
प्यार निभाती
भारतीय समाज की
नींव मजबूत बनाती

दो औरत को
उसका प्राप्य स
म्मा
नहीं तो.....
रिश्तों में आई दरार
झेलने के लिए
 हो जाओ तैयार  !!
डॉ हरदीप कौर सन्धु

Sunday, September 5, 2010

HAPPY TEACHER'S DAY.




  
Respected Sir,
Thanks for your guidance and support. When I am in need, you always supported and enlightened me all through. You are a person who always helped me. It is difficult to say in words, how much you are being appreciated. I admire you each moment and just I want to say,"As a GURU, you are unexplainable in words." I thank you once more for everything you have done. Your kind attention touched my mind and heart in many ways. I will remember you in my whole life. Thank you for your caring, lots of other stuff and all the things you gave me. My thank is not enough. May GOD provide me your blessings for a long long.............time.
GURU DEVO BHAVA.
HAPPY TEACHER'S DAY.

 From Mumtaz                                                                                                                                     

Friday, September 3, 2010

भाई बहन का प्यार

भाई बहन के प्यार को आगे बढ़ाने का प्रयास किया शायद आपको पंसद आए ...

गंगा की धार
है बहनों का प्यार
बही बयार। रा०


अधूरा प्यार
शामिल न जिसमें
भाई दुलार। भा०


पावन मन
जैसे नील गगन
नहीं है छोर ।रा०


भाई बहन
चाँद और सितारे
झूमे गगन। भा०


शीतल छाँव
ये जहाँ धरे पाँव
मेरी बहन । रा०


थमी रूलाई
लो परदेस आया
मेरा भी भाई। भा०


भावना

Monday, August 30, 2010

बीवी बोली-

बीवी बोली- मैं मर गई तो दूसरी शादी कर लोगे ?



मैँ बोला-जो तुम मर गई तो मैँ पागल हो जाऊँगा


और पागल का क्या है भरोसा,वो कुछ भी कर सकता है .


-अमीर मुमकिन सहारनपुरी


(यह त्रिपदी हिन्दी -उर्दू के मशहूर कवि आदिल रशीद जी ने उपलब्ध कराई है)

Thursday, August 26, 2010

शीतल छाँव



भाई बहन का प्यार संसार की अमूल्य निधि है ।इस निधि का प्रतिदान सम्भव नहीं ।उस अनुभूत प्रेम के लिए शब्द  ढूँढ़े नहीं मिलते । डॉ भावना कुँअर ने अपने भाव इस प्रकार व्यक्त किए
   सुलझा देता 
   उलझनों के तार
    भाई का प्यार।
    -डा भावना  
 इन शब्दों को आगे बढ़ाने का जो  एक छोटा-सा प्रयास किया गया, वह इस प्रकार है-                          
गंगा की धार
है बहनों का प्यार

बही बयार।


पावन  मन

जैसे नील गगन

नहीं है छोर ।


शीतल छाँव

ये जहाँ धरे पाँव
मेरी बहन ।                                                                                                                                 

Tuesday, August 24, 2010

रक्षा -बंधन पर विशेष



कुछ पास कुछ दूर बहनें

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

दुनिया का ऊँचा प्यार बहनें
गरिमा- रूप  साकार बहनें
रेशमी धागों से  बँधा है
हैं सभी अटूट  तार बहनें ।
कुछ हैं पास ,कुछ दूर बहनें
सभी आँखों का नूर बहनें
हमको सभी की याद आती
जब याद आती ,है सताती ।
गहरे समन्दर ,पार हैं कुछ
वे बहुत कम ही इधर आती
आराम से हैं - वे बताती
 अपने सभी वे दुख छुपातीं ।
पर फोन पर आवाज़ सुनकर
मैं तो सभी कुछ जान जाता
गीले नयन मैं पोंछ उनके
मन ही मन  में यही मनाता-
सब दुख मुझे मिल जाएँ उनके
चेहरे खिल जाएँ उनके
न आँच  उनके पास आए
कोई पीर न उनको सताए ।
और  बहनें जो इस पार हैं
 वे दोनों घरों का प्यार हैं
बहुत काम सिर पर है  उनके
वे भी बहुत लाचार हैं ।
परदेस में बैठा है भाई
निहारता सूनी कलाई
घिरता नयनों में बचपन
फिर घुमड़ उठती है रुलाई ।
-0-

रक्षाबन्धन- [हाइकु]


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1-बहने हैं छाँव
         शीतलता  मन की
          ये जीवन की ।

2-बहनें आईं
खुशबू लहराई
राखी सजाई ।

3-राखी के धागे
मधुर रस -पागे
बहिनें बाँधें ।

4-गले से लगी
सालों बाद बहिन
नदी उमगी ।

5- बहिनें सभी
मेरी आँखों का नूर
पास या दूर ।

6-उठी थी पीर
बहिनों के मन में
मैं था अधीर ।

7-इस जग में
ये बहिनों का प्यार
है उपहार ।

8-राखी का बन्ध
 बहिनों से सम्बन्ध
  न  छूटे कभी ।

9-सरस मन
खुश घर -आँगन
आई बहिन ।

10-अश्रु-धार में
जो शिकायतें -गिले
धूल -से धुले ।

11-आज के दिन
बहिन है अधीर
 आया न बीर ।

12-खिले हैं मन
आज नेह का ऐसा
दौंगड़ा  पड़ा ।

13- छुआ जो शीश
भाई ने बहिन का
झरे आशीष ।

14-मन कुन्दन
कुसुमित  कानन
हर बहन ।
-0-

 [दौंगड़ा-बहुत तेज बारिश]

Wednesday, August 18, 2010

कविताएँ

रेखा मैत्र रेखा मैत्र का जन्म बनारस (उ.प्र.) में हुआ। प्राथमिक शिक्षा बनारस में होने के बाद आपने सागर विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया। तदनन्तर, मुम्बई विश्वविद्यालय से टीचर्स ट्रेनिंग में डिप्लोमा प्राप्त किया। इसके अलावा आपने केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा में प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण के विशेष कार्यक्रम में भाग लिया। कुछ समय तक मध्य प्रदेश में आयोजित अमरीकी पीस कोरके प्रशिक्षण कार्यक्रम में अमरीकी स्वयंसेवकों को आपने हिन्दी भाषा का प्रशिक्षण दिया। फिर ५-६ वर्षों तक राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के मुम्बई स्थित हिन्दी शिक्षण योजना के अन्तर्गत विभिन्न केन्दीय कार्यालयों/उपक्रमों/कम्पनियों के अधिकारियों और कर्मचारियों को हिन्दी भाषा का प्रशिक्षण दिया।
अमरीका में बसने के बाद आपने अमरीका स्थित गवर्नेस स्टेट यूनिवर्सिटीसे कुछ ट्रेनिंग कोर्स किए और कुछ समय तक वहाँ अध्ययन कार्य किया। फिर कुछ समय के लिए आप मलेशिया में रहीं और अमरीका में अंकुरित काव्य-लेखन यहाँ पल्लवित हुआ। आजकल आप फिर अमरीका में हैं और यहाँ भाषा के प्रचार-प्रसार से जुड़ी साहित्यिक संस्था उन्मेषके साथ आप सक्रिय रूप से जुड़ी हैं और काव्य लेखन में मशगूल हैं।


प्रकाशित कृतियाँ :
१ पलों की परछाइयाँ
२ मन की गली
३ उस पार
४ रिश्तों की पगडण्डियाँ
५ मुट्ठी भर धूप
६ बेशर्म के फूल
७ मोहब्बत के सिक्के
८ ढाई आखर
९ बेनाम रिश्ते
वेब - rekhamaitra.com
सम्पर्क :rekha.maitra@gmail.com
1-मुट्ठी भर धूप
मुट्ठी भर धूप की तलाश में
इस ठण्डे शहर में
मारी -मारी फिरी !
कहीं उसका निशाँ तक नहीं !
सब तरफ बर्फ और बर्फ !
सर्दी से ठिठुरती रही
तन से भी ,मन से भी !
तभी तुम थके -हारे
मेरे पास चले आये !
तुम्हारे कंधे पर मैंने
अपना हाथ रख दिया
तुमने बताया कि मेरे
हाथों में धूप सी उष्णता है
और ...........!
एक नन्हा सा सूरज
मेरे भीतर उग आया
तब से धूप की बाहर तलाश बंद !
-0-
2 -भेंट
प्यार के उपहार में
आँसू जो मिले मुझे
देखो उन्हें आँखों में
अंजन सा आँज लिया !
इनमे तो जीवन के
सारे रंग घुले हैं
जब तुम्हारे प्यार की
किरणे पड़ी इन पर
सारे इन्द्रधनुषी रंग
साथ झिलमिलाते हैं !
यूँ तो सहेजा है
बड़े जतन से इन्हें
फिर भी एक सोच सी
घिरती है आस -पास
कहीं न ढलक जाएँ
मेरे अनजाने में !
खाली एक बात मेरा
कहने का मन है
भेंट तुम्हें आँसू की
देनी थी मुझे जो
इनको सहेजने का
जतन तो सिखाना था ....!!!
3- खोज
वृक्ष की सशक्त शाखों से
बाहें दो याद आईं
फिर खयाल आया
प्यार पाना नहीं
देना है !
इतना सब जानते भी
कुछ -कुछ रह जाता है !
मैंने कहाँ जाना था
कि देने और पाने में
ये भी ज़रूरी है जानना
कि जो मैंने दिया है
क्या तुमने पाया है ?
उसी पूर्णता की तृप्ति
तुम्हारी आँखों में खोजती हूँ !
-0-

Sunday, August 15, 2010

आटे की चिड़िया (हाइकु)

- डॉ हरदीप संधु रामेश्वर काम्बोजहिमांशु
मुन्नी जो रोए
आटे की चिड़िया से
माँ पुचकारे !
चिड़िया मिली
मुनिया की बिखरी
दूधिया हँसी ।
उड़ती नहीं
आटे की चिरइया
ओ मेरी मैया !
अभी ये छोटी
उड़ेगी तब जब
खाएगी रोटी ।
रोटी ही लाओ
माँ इसको खिलाओ
उड़ेगी फुर्र !
रोटी खाकर जब
ये फुर्र से उड़ जाएगी
हाथ नहीं आएगी ।