भाई बहन का प्यार संसार की अमूल्य निधि है ।इस निधि का प्रतिदान सम्भव नहीं ।उस अनुभूत प्रेम के लिए शब्द ढूँढ़े नहीं मिलते । डॉ भावना कुँअर ने अपने भाव इस प्रकार व्यक्त किए
सुलझा देता
उलझनों के तार
भाई का प्यार।
-डा भावना
गंगा की धार
है बहनों का प्यार
बही बयार।
पावन मन
जैसे नील गगन
नहीं है छोर ।
शीतल छाँव
ये जहाँ धरे पाँव
रक्षाबंधन पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें! बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो दिल को छु गयी!
ReplyDeleteआपकी टिपण्णी और हौसला अफ़जाही के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! आपकी टिपण्णी मिलने से लिखने का उत्साह दुगना हो जाता है!
ReplyDeleteआदरणीय हिमाशु जी
ReplyDeleteप्रणाम !
एक धागा जाने किते रिश्ते बना देता है , बस निभाने वाला चाहिए ,
सादर !
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पावन मन...
ReplyDeleteजैसे नील गगन...
क्या शब्द चुनें हैं आप ने रामेश्रर जी,
पढ़कर मन को कितना सकून मिलता है वो यहाँ शब्दों में बाँधना कठिन है ।
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ReplyDeleteBhai bahan ke riste ko kitni khubsurti se aapne prastut kiya ha uska koi javab nahi..bahut2 badhai...
ReplyDeleteaage bhi badahana ha isko aajkal men..
ReplyDeleteअति सुन्दर....अभिव्यक्ति । समसामयिक जानकारी दे कर आपने बड़ा उपकार किया है।
ReplyDeleteसद्भावी -डंडा लखनवी