पथ के साथी

Wednesday, September 15, 2010

हमारा वादा है


-मुमताज़ और टी एच खान

आप हमको मिले,
यह हमारा भाग्य था ।
आपने हमको अपनाया,
यह हमारा सौभाग्य था ।
आप वर्षों  बाद फिर मिले,
यह फिर हमारा सौभाग्य है ।
आपसे हमने भाई का स्नेह पाया,
यह आपकी  महानता और  हमारा सौभाग्य है ।
आपको हम जीवन भर खोने नहीं देंगे,
यह आपसे हमारा वादा है।
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5 comments:

  1. वाह! बहुत सुन्दर और सठिक लिखा है आपने! आखिर वादा करके उसे हमेशा निभाना चाहिए!

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  2. ्प्रिय बहिन मुमताज़ और भाई ख़ान साहब ! आप दोनों की शुभकामनाएँ मेरे साथ हैं । यह मेरी ताक़त है । आपका यह आत्मीय प्रेम मुझे आगे बढ़ाने में सदा सहायक रहा है आगे भी रहेगा । आपके पूरे परिवार का बहुत शुक्रग़ुज़ार हूँ । रामेश्वर काम्बोज

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  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

    अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्‍ता भारत-१, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

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  4. ऐसा आत्मीय प्रेम किसी -किसी को ही नसीब होता है...
    यह तो आप सबका ही सौभागय है.....
    अच्छाई को अच्छाई से भगवान मिला ही देता है...
    और वही है आपको एक साथ रखने वाला !!!

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  5. bahut payari panktiyan sneha se labalab..

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