रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1-बहने हैं छाँव
         शीतलता  मन की
          ये जीवन की ।
2-बहनें आईं
खुशबू लहराई
राखी सजाई ।
3-राखी के धागे
मधुर रस -पागे
बहिनें बाँधें ।
4-गले से लगी
सालों बाद बहिन
नदी उमगी ।
5- बहिनें सभी 
मेरी आँखों का नूर
पास या दूर ।
6-उठी थी पीर
बहिनों के मन में
मैं था अधीर ।
7-इस जग में
ये बहिनों का प्यार
है उपहार ।
8-राखी का बन्ध
 बहिनों से सम्बन्ध
  न  छूटे कभी ।
9-सरस मन 
खुश घर -आँगन
आई बहिन ।
10-अश्रु-धार में
जो शिकायतें -गिले
धूल -से धुले ।
11-आज के दिन 
बहिन है अधीर
 आया न बीर ।
12-खिले हैं मन 
आज नेह का ऐसा
दौंगड़ा  पड़ा ।
13- छुआ जो शीश
भाई ने बहिन का
झरे आशीष ।
14-मन कुन्दन
कुसुमित  कानन
हर बहन ।
-0-
 [दौंगड़ा-बहुत तेज बारिश]
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
बहनें
ReplyDeleteचिडि़या घर आंगन की
जाएं
उड़ उड़ कर वापस आएं ।
रक्षाबंधन के पावन पर्व पर प्रस्तुत सभी हाइकु बहुत सुन्दर हैं| आपको भी रक्षाबंधन कि ढेरों शुभकामनाएं|
ReplyDeleteरक्षाबंधन: कुण्डलिया
हाइकू का अपना अलग ही आनन्द है!
ReplyDelete--
भाई-बहिन के पावन पर्व
क्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
रक्षाबन्धन की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteरक्षाबन्धन
मोह का संगम
बंधा कच्ची डोरी
तोड़े न टूटे
बने जीवन की डंगोरी
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDelete*** भारतीय एकता के लक्ष्य का साधन हिंदी भाषा का प्रचार है!
बहुत ही मोहक हाइकु लिखे हैं भाई जी ! कितना सुंदर मन है आपका ! हमें नाज़ है कि हमें भी आपका स्नेह मिल रहा है। भगवान आपको सदा स्वस्थ और सुखी रखे।
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