पथ के साथी

Tuesday, August 24, 2010

रक्षाबन्धन- [हाइकु]


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1-बहने हैं छाँव
         शीतलता  मन की
          ये जीवन की ।

2-बहनें आईं
खुशबू लहराई
राखी सजाई ।

3-राखी के धागे
मधुर रस -पागे
बहिनें बाँधें ।

4-गले से लगी
सालों बाद बहिन
नदी उमगी ।

5- बहिनें सभी
मेरी आँखों का नूर
पास या दूर ।

6-उठी थी पीर
बहिनों के मन में
मैं था अधीर ।

7-इस जग में
ये बहिनों का प्यार
है उपहार ।

8-राखी का बन्ध
 बहिनों से सम्बन्ध
  न  छूटे कभी ।

9-सरस मन
खुश घर -आँगन
आई बहिन ।

10-अश्रु-धार में
जो शिकायतें -गिले
धूल -से धुले ।

11-आज के दिन
बहिन है अधीर
 आया न बीर ।

12-खिले हैं मन
आज नेह का ऐसा
दौंगड़ा  पड़ा ।

13- छुआ जो शीश
भाई ने बहिन का
झरे आशीष ।

14-मन कुन्दन
कुसुमित  कानन
हर बहन ।
-0-

 [दौंगड़ा-बहुत तेज बारिश]

6 comments:

  1. बहनें
    चिडि़या घर आंगन की
    जाएं
    उड़ उड़ कर वापस आएं ।

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  2. रक्षाबंधन के पावन पर्व पर प्रस्तुत सभी हाइकु बहुत सुन्दर हैं| आपको भी रक्षाबंधन कि ढेरों शुभकामनाएं|


    रक्षाबंधन: कुण्डलिया

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  3. हाइकू का अपना अलग ही आनन्द है!
    --
    भाई-बहिन के पावन पर्व
    क्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  4. रक्षाबन्धन की शुभकामनाएं।
    रक्षाबन्धन
    मोह का संगम
    बंधा कच्ची डोरी
    तोड़े न टूटे
    बने जीवन की डंगोरी

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  5. सुंदर प्रस्तुति
    *** भारतीय एकता के लक्ष्य का साधन हिंदी भाषा का प्रचार है!

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  6. बहुत ही मोहक हाइकु लिखे हैं भाई जी ! कितना सुंदर मन है आपका ! हमें नाज़ है कि हमें भी आपका स्नेह मिल रहा है। भगवान आपको सदा स्वस्थ और सुखी रखे।

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