संचालन - मानोशी चटर्जी, अम्बिका शर्मा ,कनिका वर्मा,संदीप कुमार त्यागी,प्रीति अग्रवाल,लता पांडे,
डॉ कुमार भारती,डॉ रेणुका शर्मा,पूनम चंद्रा ’मनु’, सविता अग्रवाल,इंदिरा वर्मा,अखिल भंडारी,आशा
बर्मन
मानोशी चटर्जी
संचालन - मानोशी चटर्जी, अम्बिका शर्मा ,कनिका वर्मा,संदीप कुमार त्यागी,प्रीति अग्रवाल,लता पांडे,
डॉ कुमार भारती,डॉ रेणुका शर्मा,पूनम चंद्रा ’मनु’, सविता अग्रवाल,इंदिरा वर्मा,अखिल भंडारी,आशा
बर्मन
मानोशी चटर्जी
1-शशि पुरवार
1
कुल्लड़ वाली चाय की, सोंधी-सोंधी गंध
और इलाइची साथ में, पीने का आनंद
2
बाँचे पाती प्रेम की, दिल में है तूफान
नेह निमंत्रण चाय का, महक रहे अरमान
3
गप्पों का बाज़ार है ,मित्र मंडली संग
चाय पकौड़े के बिना, फीके सारे रंग
4
मौसम सैलानी हुए , रोज़ बदलते गाँव
बस्ती बस्ती चाय की, टपरी वाली छाँव
5
घर- घर से उड़ने लगी, सुबह चाय की गंध
उठो सवेरे काम पर, जीने की सौगंध
6
चाहे महलों की सुबह, या गरीब की शाम
सबके घर हँसकर मिली, चाय नहीं बदनाम
7
थक कर सुस्ताते पथिक, या बैठे मजदूर
हलक उतारी चाय ही, तंद्रा करती दूर
8
कुहरे में लिपटी हुई छनकर आयी भोर
नुक्कड़ पर मचने लगा, गर्म चाय का शोर
-0-
2- चाहत
सविता अग्रवाल 'सवि' (कैनेडा)
भरोसा जो टूटा था
जोड़ रही वर्षों से....
बोलियाँ खामोश हैं
कितने ही अरसों से ...
दस्तक भी गुम है अब
बारिश के शोर में ....
अधूरे जो वादे थे
दब गए संदूकों में ...
नफरतें धो रही
प्रेम रस के साबुन से ...
चट्टानें जो तिड़क गयीं
भर ना पाई परिश्रम से ...
उड़ गई जो धूल बन
ला ना पाई उम्र वही ...
नीर- जो सूख गया
लौटा ना सकी सरोवर में ...
अक्षर जो मिट गए
लिख ना पाई फिर उन्हें ...
पुष्प जो मुरझा गए
खिल ना सके बगिया में ...
पत्ते जो उड़ गये
लगे ना दरख्तों पर ...
बर्फ़ जो पिघल गयी
जम ना सकी फिर कभी ...
अगम्य राहें बना ना पाई
सुगम सी डगर कभी ...
निरर्थक यूँ जीवन रहा
हुआ ना सार्थक कभी ....
फिर भी एक आस है
बढ़ने की चाह है ....
हौसले बुलंद हैं ...
चाहतें भी संग हैं ....
email: savita51@yahoo.com
--0-
कभी नज़र उठाकर नहीं
देख पाया
उसकी तरफ कोई भी
मझली की भी ठीक ही थी
नाक
बच्चे सारे उसी पर गए
बिटिया को सब परी
बताते थे
छोटी बहू की इतनी बड़ी
नाक
हर कोई ताना देकर कह
देता
चिराग़ लेकर ढूँढ़ी
होगी
इतनी बड़ी नाक वाली
क्या छुटका आसमान से
टपका था
कई दिनों तक दोस्तों
ने उसका मज़ाक़ उड़ाया
दुल्हन नहीं नाक आई
है
सुना था साल तक
छुटका चौबारे में ही
सोता था
घर का आँगन रसोई
दीवारें
यहाँ तक कि आसमान भी
गूँजता था नाक की
चर्चा से
अम्मा को जब गठिया
हुआ
घुटनों पर ग्वारपाठे
की ख़ूब मालिश की
छुटके की बड़ी नाक
वाली बहू ने
और बाऊजी को जब
अपाहिज कर दिया
मुएँ पक्षाघात ने
गीला-सूखा करने में
कभी
नाक-भौं नहीं सिकोड़ी
छोटे की बहू ने
ननदों को सदा
पहना-ओढ़ा भेजती है
छोटे की बहू
कब इतना समय बह गया
नदी की तरह
कि अब सास बनने वाली
है छोटी बहू
जोर-शोर से ढूँढ़ी जा
रही है लड़की
खाट में पड़ी अम्मा
कहती है
"सुवटे
की चोंच-सी" होना चाहिए
दुल्हन की नाक.
-0-
2-इन्द्रधनुष
प्रियंका गुप्ता
सुनो,
हवाओं में यूँ ही बेफिक्र टहलते कुछ शब्द
कुछ धीमे से बोल,
कभी तो किसी सुगंध की तरह
बस छू के निकल जाते हैं
सराबोर से करते,
तो कभी
किसी तितली की मानिंद
हथेली पर आ सुस्ताते हैं;
कुछ तितलियाँ मुट्ठियों में नहीं समाती
बस उड़ जाती हैं
और छोड़ जाती हैं
एक भीनी सुगंध
और लकीरों में कुछ रंग;
सुनो,
तुमने इंद्रधनुष उगते देखा है क्या ?
-0-ईमेल: priyanka.gupta.knpr@gmail.com
3- बैरी सुन लो भारत -नाद (आल्हा छन्द)
भारत
की
गरिमा प्यारी है , करे अमन से हर संवाद
।
बहुत
हुई
अब बातें सारी ,बैरी सुन लो
भारत- नाद ।
हर
दम
सीमा प्रहरी जागा, करो नहीं बैरी कुछ
भूल ।
तेरे छल को
माटी करने, रोम- रोम बन जाता शूल
।
विजय हमारी
सदा रही है, जीते लेकर
उर में
आग ।
क्रोध-अगन
इस दिल में जलती , वीरों का तो
हर दिन फाग ।
मंगल पाण्डे, झाँसी
-रानी, भगत, राज, सुखदेव शहीद ।
बैरी- चोला
लहू नहाया , तभी मनाई होली , ईद ।
मंत्र
तिलक गाँधी के
प्यारे, लालाजी की थी हुंकार
।
अंग्रेज़ों का
दंभ चूर कर, हिले सभी
फिर सागर- पार।
नहीं डरे
हैं नहीं डरेंगे, चाहे बैरी हो चालाक
।
चेत पड़ोसी 'चीनी भाई,' आतंकित है अब तक पाक़ ।
-0-