पथ के साथी

Wednesday, February 22, 2023

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 जलीय भाव मन के 

अनिमा दास

 


स्वार्थ की अग्नि में जल गया नभांचल

उर्वि हुई शुष्क.. मन-कूप हुआ मरुथल

पल्लवों का क्रंदन..पुष्पों का हृद-मंथन

केवल अश्रु में है आर्द्रता..जग वह्नि-वन।

 

आ! दे जा जल,भर दे आ,सर- सरिता 

सजीव के अधरों में खिल जाए स्मिता 

यह तपन...लोभ की यह असह्य क्रीड़ा

नित्य विष -सी घुल जाती असंख्य पीड़ा।

 

जिसे कहा जीवन.. उसे किया नाशित

जिसे कहा अमृत.. उसे किया दूषित 

रेमानव! क्या सृष्ट कर पाएगा सागर?

क्या तुझसे जन्म ले पाएगा एक अंबर ?

 

त्रास मेरा हो रहा...दिगंतर में घनीभूत

बन जल-धारा बरसेगी..व्यथा अनाहूत।

-0-कटक, ओड़िशा

10 comments:

  1. बेहतरीन साॅनेट, हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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    1. जी सादर धन्यवाद आदरणीय 🙏🌹

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  2. बहुत बढ़िया सृजन किया आपने , शुभकामनाएं
    सादर
    सुरभि डागर

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    1. जी सादर धन्यवाद आदरणीया 🙏🌹

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  3. सुंदर सृजन!

    ~सादर
    अनिता ललित

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    1. जी सादर धन्यवाद आदरणीया 🙏🌹

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  4. बहुत सुंदर!! बधाई अनिमा जी।

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    1. सादर धन्यवाद आदरणीया 🌹🙏

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  5. बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन।
    हार्दिक बधाई आदरणीया

    सादर

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