रामेश्वर
काम्बोज ‘हिमांशु’
बहुत
बोल चुके, अब न बोलो
अपने
मन की गाँठ न खोलो।
गाँठ
खोलकर अब तक तुमने
जितना
भी था, सभी गँवाया।
मेरे
यार ज़रा बतला दो
बदले
में तुमने क्या पाया ?
बहुत
तोल चुके, अब न तोलो
जिसको
अब तक तुमने तोला
उन
सबको पाया है पोला
वार
किया उसने ही छुपकर
जिसको
तुमने समझा भोला।
अब
सबके मन अमृत न घोलो
अमृत
घोला, जिनके मन में
उनका
मन विषबेल हो गया।
धोखा
देकर, खिल-खिल हँसना
उन
लोगों का खेल हो गया।
बहुत
बोल चुके, अब न बोलो
अपने
मन की गाँठ न खोलो।
"अब सबके मन अमृत न घोलो
ReplyDeleteअमृत घोला, जिनके मन में
उनका मन विषबेल हो गया।"
- बहुत सुन्दर!
हार्दिक बधाई और साझा करने के लिए आभार!
- डाॅ. कुँवर दिनेश
बहुत बोल चुके, अब न बोलो
ReplyDeleteअपने मन की गाँठ न खोलो
अभिव्यक्ति सुन्दर, बधाई भैया।
हम कितने भोले हैं कि सबको अपना समझकर सब कुछ कह देते हैं |फिर वही सांप बनकर हमको डस लेते हैं | इसीलिए तो अबसे स्वयं से बात करो |बहुत ही कटू सत्य से परिपूर्ण रचना है| ये कभी पुरानी हो ही नहीं सकती -श्याम हिंदी चेतना
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता,आपको बधाई भाई साहब, शायद ईश्वर भी यही चाहता था ,इसलिए उसने कान तो दो दिए परन्तु मुँह केवल एक!
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।कितना सच कहा। हार्दिक बधाई
ReplyDeleteसुंदर कविता , बोलने से ही मन की गाँठ खुलती है इसलिए भी तमाम समस्याओं में बातों की गुंजाइश को ज्यादा महत्व दिया जाता है ।
ReplyDeleteरमेश कुमार सोनी , बसना
सत्य परक बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ।बधाई भैया ।
ReplyDeleteसच कहा....
ReplyDeleteसुंदर सृजन
हार्दिक शुभकामनाएँ
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति... हार्दिक बधाई भाईसाहब।
ReplyDeleteभाई कम्बोज जी बहुत सुन्दर भाव हैं रचना के हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteमन के दर्द बयाँ करती सुंदर भावाभिव्यक्ति!
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीय भैया जी!
~सादर
अनिता ललित
बहुत तोल चुके, अब न तोलो
ReplyDeleteजिसको अब तक तुमने तोला
उन सबको पाया है पोला
वार किया उसने ही छुपकर
जिसको तुमने समझा भोला।
aesa hi hota hai bhaiya
bahut sunder kavita badhayi
rachana
अमृत घोला, जिनके मन में
ReplyDeleteउनका मन विषबेल हो गया।
धोखा देकर, खिल-खिल हँसना
उन लोगों का खेल हो गया।
बस ऐसे लोगों के कारण ही अच्छे इंसान का मन व्यथित होता है | बहुतों के दिल की बात इस कविता में कह दी आपने, मेरी हार्दिक बधाई