पथ के साथी

Monday, October 16, 2017

767

मुक्तक
डॉ.कविता भट्ट
1
सूखा खेत बरसती बदली हूँ मैं
आसुरी शक्तियों पर बिजली हूँ मैं ।
मुझे इस नीड़ से निकलने तो दो
ये मत पूछना कि क्यों मचली हूँ मैं ॥
2
फूल -पाँखुरी भी हूँ , तितली हूँ मैं
उमड़े तूफ़ानों से निकली हूँ मैं ।
असीम अम्बर में लहराने तो दो
ये कभी मत कहना कि पगली हूँ मै॥
3
गिरी , हौसलों से सँभली हूँ मैं
तभी तो यहाँ तक निकली हूँ मैं ।
शिखर पर पताका फहराने  दो
अभी तो बस घर से चली हूँ मैं ॥

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12 comments:

  1. अच्छी रचना।

    संजय भारद्वाज

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  2. Bahut sundar rachna bahut bahut badhai...

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  3. बहुत अच्छी रचना...मेरी बधाई...|

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  4. बहुत सुंदर रचना कविता जी हार्दिक बधाई सखी

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  5. बहुत सुन्दर भावों से सजे हैं दोनों मुक्तक ।बधाई ।

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  6. सुन्दर ,सकारात्मक सृजन ..हार्दिक बधाई कविता जी !

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  7. बहुत सुन्दर और प्रेरक भाव, बधाई कविता जी.

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  8. उम्दा रचना कविता जी... बहुत बधाई।

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  9. बहुत ही सुंदर भाव लिए उम्दा हाइकु ।
    हार्दिक बधाई कविता जी

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  10. बहुत ही सुंदर भाव लिए उम्दा हाइकु ।
    हार्दिक बधाई कविता जी

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  11. सुंदर मुक्तक

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  12. बहुत बढ़िया रचना है कविता जी...हार्दिक बधाई !

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