मुक्तक
डॉ.कविता भट्ट
1
सूखा खेत
बरसती बदली हूँ मैं
आसुरी
शक्तियों पर बिजली हूँ मैं ।
मुझे इस नीड़
से निकलने तो दो
ये मत पूछना
कि क्यों मचली हूँ मैं ॥
2
फूल -पाँखुरी भी हूँ , तितली
हूँ मैं
उमड़े तूफ़ानों
से निकली हूँ मैं ।
असीम
अम्बर में लहराने तो दो
ये कभी मत
कहना कि पगली हूँ मै॥
3
गिरी , हौसलों से सँभली हूँ मैं
तभी तो
यहाँ तक निकली हूँ मैं ।
शिखर पर पताका
फहराने दो
अभी तो
बस घर से चली हूँ मैं ॥
-0-
अच्छी रचना।
ReplyDeleteसंजय भारद्वाज
Bahut sundar rachna bahut bahut badhai...
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना...मेरी बधाई...|
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना कविता जी हार्दिक बधाई सखी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावों से सजे हैं दोनों मुक्तक ।बधाई ।
ReplyDeleteसुन्दर ,सकारात्मक सृजन ..हार्दिक बधाई कविता जी !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और प्रेरक भाव, बधाई कविता जी.
ReplyDeleteउम्दा रचना कविता जी... बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भाव लिए उम्दा हाइकु ।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई कविता जी
बहुत ही सुंदर भाव लिए उम्दा हाइकु ।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई कविता जी
सुंदर मुक्तक
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना है कविता जी...हार्दिक बधाई !
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