पथ के साथी

Monday, February 3, 2025

1446

 

वासन्ती  पाहुन

शशि पाधा


वासन्ती  पाहुन लौट के  आया
डार देह की भरी-भरी
मंद-मंद पुरवा के झूले
नेह की गगरी झरी-झरी

 
उड़-उड़ जाए हरित ओढ़नी
जाने कितने पंख  लगे
रुनझुन गाए गीत पैंजनी
कंगना मन की बात कहे

 
ओझल हो न पल भर साजन
 
मुखड़ा देखूँ घड़ी-घड़ी।

कभी निहारूँ रूप आरसी
कभी मैं सूनी माँग भरूँ
चन्दन कोमल अंग  सँवारे
बिछुआ सोहे पाँव धरूँ

 
जूही- चम्पा वेणी बाँधूं
 
मोती माणक जड़ी-जड़ी

 
रुत  वासन्ती सज धज आई
देहरी आँगन धूप धुले
आम्र तरू पे गाये कोयल
सौरभ के नव द्वार खुले

     
ओस कणों में हँसती किरणें
     
हीरक कणियाँ लड़ी-लड़ी

महुआ टेसू गँध बिखेरें
आँख मूँद पहचान करूँ
कलश प्रीत का छल- छल छलके
अँजुरी भर रसपान करूँ

   
मौसम ने सतरंग बिखराये 
   
धरा वासंती लाल-हरी

-0-

7 comments:

  1. बसंती बयार की लय पर कुहूकता सुंदर गीत...वाह !!

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर गीत

    ReplyDelete
  3. ध्वन्यात्मकता युक्त बहुत सुंदर गीत।हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
    Replies
    1. रश्मि विभा त्रिपाठी03 February, 2025 13:28

      बहुत सुंदर गीत।
      हार्दिक बधाई दीदी 💐

      सादर

      Delete
  4. बहुत सुन्दर गीत...हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  5. बासंती छटा बिखेरती सुंदर भावों से सुसज्जित कविता ने मन मोह लिया शशि जी , हार्दिक बधाई । सविता अग्रवाल “सवि “

    ReplyDelete
  6. वसन्त का सुन्दर मनमोहक चित्रण. बधाई शशि जी.

    ReplyDelete