वासन्ती पाहुन
शशि पाधा
वासन्ती पाहुन लौट के आया
डार देह की भरी-भरी
मंद-मंद पुरवा के झूले
नेह की गगरी झरी-झरी
उड़-उड़ जाए हरित ओढ़नी
जाने कितने पंख लगे
रुनझुन गाए गीत पैंजनी
कंगना मन की बात कहे
ओझल हो न पल भर साजन
मुखड़ा देखूँ घड़ी-घड़ी।
कभी निहारूँ रूप आरसी
कभी मैं सूनी माँग भरूँ
चन्दन कोमल अंग सँवारे
बिछुआ सोहे पाँव धरूँ
जूही- चम्पा वेणी बाँधूं
मोती माणक जड़ी-जड़ी
रुत वासन्ती सज धज आई
देहरी आँगन धूप धुले
आम्र तरू पे गाये कोयल
सौरभ के नव द्वार खुले
ओस कणों में
हँसती किरणें
हीरक कणियाँ
लड़ी-लड़ी
महुआ टेसू गँध बिखेरें
आँख मूँद पहचान करूँ
कलश प्रीत का छल- छल छलके
अँजुरी भर रसपान करूँ
मौसम ने सतरंग बिखराये
धरा वासंती लाल-हरी
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बसंती बयार की लय पर कुहूकता सुंदर गीत...वाह !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत
ReplyDeleteध्वन्यात्मकता युक्त बहुत सुंदर गीत।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत।
Deleteहार्दिक बधाई दीदी 💐
सादर
बहुत सुन्दर गीत...हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबासंती छटा बिखेरती सुंदर भावों से सुसज्जित कविता ने मन मोह लिया शशि जी , हार्दिक बधाई । सविता अग्रवाल “सवि “
ReplyDeleteवसन्त का सुन्दर मनमोहक चित्रण. बधाई शशि जी.
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