डॉ. सुरंगमा यादव
शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण!
दीप को अपना सब कुछ मान
दीप निशा का साथी बनता
तम से घिरा तनिक ना डरता
तूफ़ानों से आँख मिलाए
संग हवा के झूमे जाए
पर ना जाने प्रिय की पीर
प्रेम का कर न सका प्रतिदान
शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण!
दीप को अपना सब कुछ मान
प्रेम तुम्हारा अतिशय प्यारा
तन-मन तुमने मुझ पर वारा
प्रेम पाश में मैं बँध जाऊँ
फिर कैसे कर्त्तव्य निभाऊँ
तम की सीमा पर सुन प्यारे
प्रहरी सजग तू मुझको जान
शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण!
दीप को अपना सब कुछ मान
जब तक मुझमें ज्योति है ये
राह दिखाना ही बस ध्येय
जीवन पल-पल बीता जाता
पल में हँसता जी भर आता
मैं तो तब तक जलता जाऊँ
जब तक आ ना जाये विहान
शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण!
दीप को अपना सब कुछ मान।
-0-
बहुत सुन्दर रचना, हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना सुरंगमा जी... हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteडाॅ. सुरंगमा यादव जी की शलभ और दीप के अटूट संबंध की बहुत प्यारी कविता ।.हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteविभा रश्मि
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सुरँगमा जी। बधाई!
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है सुरंगमा जी | हार्दिक बधाई स्वीकारें | सविता अग्रवाल 'सवि'
ReplyDeleteअति सुन्दर। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता ...हार्दिक बधाई ।
ReplyDelete