पथ के साथी

Saturday, December 3, 2022

1263-बिखरे पल

डॉ. शिप्रा मिश्रा

1


जिन राहों से चलते रहे तुम

हम चूम- चूम करते रहे सदा

क्या मालूम था हमें दिल से नहीं

बस इश्क़ की तालीम तूने की अदा

2

जुल्म हो और हम कसमसाएँ भी नहीं

ये जालिम अदा उन्हें बेपनाह भाती है

कतरा- कतरा हर भी हमें खुशहाल रखे

इतनी मुरौवत पता नहीं कहाँ से आती है

3

तुम्हारी बेखौफ मुस्कुराहट कुछ यूँ   मेरे कलेजे में उतरती है

मानो ताउम्र बेवजह बेपनाह जैसे मेरी ज़िन्दगी सँवरती है

4

ख्वाहिशों को मंजिल ना मिले

तो जीने का मज़ा क्या है

दरिया में भंवर में ही उलझे रहें

इस से बड़ी सज़ा क्या है

5

दर्द की राह पर चल पड़े थे हम

घाव रिसता रहा हम सँसते रहे

वक्त की आंधियों ने सब फना कर दिया

वो कहते रहे हम सुनते रहे

6

अब कोई मनाने वाला भी नहीं

मैंने तो उम्मीद छोड़ रखी है

आँसुओ!! सिमट जाओ अपने तहखाने में

बेवजह तुमने जंजीर तोड़ रखी है

7

रात भर रोते रहे याद में तेरी

तू कहाँ है कुछ इशारा तो कर

यूँ ही चल दिए मुस्कुराते!! 

अपने बिन मेरा गुजारा तो कर

8

जिन पत्थरों को तराशते- तराशते

मेरी हड्डियाँ अकड़ गईं 

अब वे पत्थर ही पूछने लगे

तेरी नजाकत कहाँ गई

9

क्या तेरी राह में सजदे नहीं किया मैंने

या मुफलिसी में हड्डियाँ नहीं गलाईं

कुछ तो रहम कर ऐ खुदा! 

किस बात की तू कर रहा भरपाई

 

10

तेरा एहसास मुझे ताकत देता है

तेरा आशीष मुझे बरकत देता है

घिर जाती हूँ कभी गर्दो- गुबार में

बाहर निकलने की मुझे ताकत देता है


6 comments:

  1. शिप्रा मिश्रा जी बेहद भावपूर्ण सृजन !हार्दिक बधाई स्वीकारें।

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  2. बहुत सुंदर सृजन।
    हार्दिक बधाई आदरणीया।

    सादर

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  3. मन को छूती हैं ये छोटी-छोटी कविताएँ, बधाई शिप्रा जी

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  4. सूंदर अभिव्यक्ति, आपको बधाई शिप्रा जी!

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  5. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

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  6. बहुत भावपूर्ण...बहुत बधाई शिप्रा जी।

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