डॉ. शिप्रा मिश्रा
1
जिन राहों से चलते रहे तुम
हम चूम- चूम करते रहे सज़दा
क्या मालूम था हमें दिल से नहीं
बस इश्क़ की तालीम तूने की अदा
2
जुल्म हो और हम कसमसाएँ भी नहीं
ये जालिम अदा उन्हें बेपनाह भाती है
कतरा- कतरा ज़हर भी हमें
खुशहाल रखे
इतनी मुरौवत पता नहीं कहाँ से आती है
3
तुम्हारी बेखौफ मुस्कुराहट कुछ यूँ
मेरे कलेजे में उतरती है
मानो ताउम्र बेवजह बेपनाह जैसे मेरी ज़िन्दगी सँवरती है
4
ख्वाहिशों को मंजिल ना मिले
तो जीने का मज़ा क्या है
दरिया में भंवर में ही उलझे रहें
इस से बड़ी सज़ा क्या है
5
दर्द की राह पर चल पड़े थे हम
घाव रिसता रहा हम सँसते रहे
वक्त की आंधियों ने सब फना कर दिया
वो कहते रहे हम सुनते रहे
6
अब कोई मनाने वाला भी नहीं
मैंने तो उम्मीद छोड़ रखी है
आँसुओ!! सिमट जाओ अपने तहखाने में
बेवजह तुमने जंजीर तोड़ रखी है
7
रात भर रोते रहे याद में तेरी
तू कहाँ है कुछ इशारा तो कर
यूँ ही चल दिए मुस्कुराते!!
अपने बिन मेरा गुजारा तो कर
8
जिन पत्थरों को तराशते- तराशते
मेरी हड्डियाँ अकड़ गईं
अब वे पत्थर ही पूछने लगे
तेरी नजाकत कहाँ गई
9
क्या तेरी राह में सजदे नहीं किया मैंने
या मुफलिसी में हड्डियाँ नहीं
गलाईं
कुछ तो रहम कर ऐ खुदा!
किस बात की तू कर रहा भरपाई
10
तेरा एहसास मुझे ताकत देता है
तेरा आशीष मुझे बरकत देता है
घिर जाती हूँ कभी गर्दो- गुबार
में
बाहर निकलने की मुझे ताकत देता है
शिप्रा मिश्रा जी बेहद भावपूर्ण सृजन !हार्दिक बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीया।
सादर
मन को छूती हैं ये छोटी-छोटी कविताएँ, बधाई शिप्रा जी
ReplyDeleteसूंदर अभिव्यक्ति, आपको बधाई शिप्रा जी!
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण...बहुत बधाई शिप्रा जी।
ReplyDelete