पथ के साथी

Thursday, January 6, 2022

1176-हिंदी साहित्य की विशिष्ट विभूति;कमलेश्वर

 

जन्मदिन पर विशेष

                     -डॉ. शिवजी श्रीवास्तव

कमलेश्वर हिंदी साहित्य की विशिष्ट विभूति हैं। पद्मभूषण से सम्मानित कमलेश्वर की प्रतिभा बहुआयामी थी। वे एक श्रेष्ठ कहानीकार के साथ ही श्रेष्ठ उपन्यासकार,लोचक,सम्पादक, फिल्मकार, संवाद लेखक एवं पटकथा लेखक थे। उनकी कथा-प्रतिभा का मूल्यांकन करते हुए साहित्य अकादमी के अध्यक्ष श्री गोपीचंद सारंग ने कहा था-"कमलेश्वर जैसा लेखक दोबारा पैदा नहीं होगा,वे अपने अंदाज के अकेले लेखक थे। प्रेमचंद युग के बाद कोई लेखक इतना नहीं पढ़ा गया जितने कि कमलेश्वर।"...निःसन्देह वे अपने समकालीनों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुए अपनी सहज सम्प्रेषणीय शैली के कारण वे पाठकों से सीधा संवाद करते प्रतीत होते हैं,उनके विषय भी जीवन के इतने निकट होते हैं कि हर पाठक को वह कहानी अपनी- सी प्रतीत होने लगती है। कमलेश्वर के लेखन के मूल में उनके जीवन अनुभव थे। उन्होंने दुःखों,अभावों और आम आदमी की पीड़ाओं को अत्यंत निकट से देखा था,वही अनुभव उनके कथा साहित्य में आकार लेते रहे।

6 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बानुमा शहर मैनपुरी के एक कायस्थ परिवार में जन्मे कमलेश्वर का बचपन अभावों में व्यतीत हुआबचपन मे ही पिता को खो चुके कमलेश्वर ने सारे संस्कार माँ से ही ग्रहण किए। अपनी प्रारम्भिक शिक्षा मैनपुरी में ग्रहण करने के बाद वे उच्च शिक्षा हेतु इलाहाबाद गए,वहाँ पढ़ाई के साथ ही उन्होंने 'जनक्रांति' अखबार में कार्य भी किया,यहीं से उनकी साहित्यिक यात्रा शुरू हुई। उनकी पहली प्रकाशित कहानी 'कामरेड' थी;  पर उन्हें जिस कहानी ने उन्हें चर्चित किया वह थी 'राजा निरबंसिया' 1957 में प्रकाशित दोहरे कथानक वाली इस लम्बी कहानी में उन्होंने दो युगों के नैतिक मूल्यों के द्वंद्व को बड़े ही कौशल के साथ चित्रित किया। मैनपुरी के परिवेश पर लिखी लिखी इस कहानी ने उन्हें स्थापित कथाकारों की श्रेणी में खड़ा कर दिया। उसके बाद कस्बे के परिवेश पर ही उन्होंने 'गर्मियों के दिन',नीली झील,'देवा की माँ,'मुर्दों की दुनिया' जैसी कई कहानियाँ लिखीं।आलोचकों ने इन्हें कस्बे की कहानियाँ कहा और कमलेश्ववर कस्बे के कहानीकार के रूप में प्रसिद्ध हो गए। कमलेश्वर एक ही पड़ाव पर नहीं रुके आगे चलकर उन्होंने शहरी मध्यवर्ग और उच्चवर्ग की जटिल संवेदनाओं पर भी कहानियाँ लिखीं। 'खोई हुई दिशाएँ','बयान','दिल्ली में एक मौत',चार महानगरों का तापमान'जैसी कई  इसी मानसिकता की कहानियाँ हैं।
  हिंदी कहानी के दो आंदोलनों के प्रवर्तकों में भी कमलेश्वर का योगदान अविस्मरणीय है। सन्1950 क़े बाद हिंदी कहानी का परम्परागत ढाँचा टूटना शुरू हो गया था और नए प्रकार की प्रवृत्तियाँ कहानी में आने लगी थीं इन्हीं प्रवृत्तियों को 'नई कहानी' नाम दिया गया। राजेन्द्र यादव,मोहन राकेश और कमलेश्वर इस आंदोलन के सूत्रधार माने गए। कमलेश्वर द्वारा एक और आंदोलन 'समांतर कहानी आंदोलन'का प्रवर्तन भी किया गया। सन 1971 के आसपास कमलेश्वर सारिका के सम्पादक थे,उसी के माध्यम से उन्होंने समांतर कहानी आंदोलन की शुरुआत की इसे आम आदमी के आसपास की कहानी का आंदोलन भी कहा गया। इस आंदोलन ने हाशिए पर पड़े आदमी की जिंदगी को कहानी के केंद्र में स्थापित किया।
  कमलेश्ववर एक प्रतिबद्ध कथाकार थे,उनकी प्रतिबद्धता आम आदमी की बेहतरी के लिए थी,वे प्रगतिशील मूल्यों के पक्षधर थे। उनकी यह प्रतिबद्धता उनके उपन्यासों में भी परिलक्षित होती है। उनका प्रथम उपन्यास 'एक सड़क, सत्तावन गलियाँ' मैनपुरी की पृष्ठभूमि पर हैबाद के उपन्यास मध्यवर्ग की समस्याओं पर केंद्रित हैं। उन्होंने बारह उपन्यास लिखे। उनका अंतिम उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' कथ्य और शिल्प दोनों ही दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। परम्परागत शिल्प को तोड़ता हुआ व्यापक कैनवास वाला यह उपन्यास कथ्य में भी अद्भुत है। विश्व की अनेक भाषाओं में इसके अनुवाद हुए 2003 में इसे 'साहित्य अकादमी' से सम्मानित किया गया।
एक फिल्मकार और पटकथाकार के रूप में भी वे सफल रहे। दूरदर्शन को भी उनका योगदान महत्त्वपूर्ण है। सन 1980 से 1982 तक वे भारतीय दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक रहे। यह वह कालखण्ड था जब दूरदर्शन को श्वेत श्याम से रंगीन किया जा रहा था, ये सारी परियोजना कमलेश्ववर जी के समय की ही थी।
  कमलेश्वर एक सफल पत्रकार भी रहे।'नई कहानियाँ' 'सारिका' ,'कथायात्रा','श्रीवर्षा' 'गंगा' इत्यादि अनेक साहित्यिक पत्रिकाओं के साथ ही दैनिक जागरण,दैनिक भास्कर  से भी वे जुड़े रहे।
उनकी साहित्यिक यात्रा को देखते हुए सन2005 में उन्हें भारत सरकार के पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। 27 जनवरी 2007 को कमलेश्वर ने इस संसार से विदा अवश्य ले ली ; पर अपनी कालजयी कृतियों के माध्यम से वे सदा हमारे साथ रहेंगे।


17 comments:

  1. कमलेश्वर जी अपने समय के अद्व्व्तीय कहानीकार थे |काश कि वे इतनी जल्दी हमारे बीच से न चले जाते |बहुत सुंदर लेख उनके व्यतित्व और कृतित्व का विश्लेष्ण है | २००७ में उन्हें मैंने देखा था | धन्यवाद उनकी स्मृति में यह लेख | श्याम त्रिपाठी हिदी चेतना

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    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय त्रिपाठी जी

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  2. हिंदी कथा-साहित्य के महत्वपूर्ण रचनाकार की स्मृति को नमन ,बेहतरीन लेख के लिए शिवजी श्रीवास्तव जी को हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद भीकम सिंह जी।

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  3. कमलेश्वर जी पर सारगर्भित एवं सुन्दर लेख के लिए धन्यवाद
    हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय

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    1. हार्दिक धन्यवाद डॉ. पूर्वा जी

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  4. सारगर्भित एवं सुंदर आलेख के लिए बधाई शिवजी श्रीवास्तव जी।

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    1. हार्दिक धन्यवाद डॉ. सुरंगमा जी

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  5. कमलेश्वर जी की याद ताज़ा करता अति सुंदर लेख। धन्यवाद आदरणीय शिवजी भैया!

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रीति जी

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  6. बहुत सुंदर सारगर्भित लेख। हार्दिक बधाई शिवजी श्रीवास्तव जी। उनके व्यक्तित्व के बहुत सारे पहलुओं क साथ एक यह भी था कि वह बहुत अच्छे इंसान भी थे। बहुत बार उनसे मिलने का अवसर मिला। उनके घर पर अंतिम जन्मदिन मनाने का अवसर भी मिला था। कालिया दम्पति , हिमांशु जोशी जी,बलराम जी के साथ दो लोग और भी थे। बहुत सुंदर सारगर्भित लेख। हार्दिक बधाई शिवजी श्रीवास्तव जी। कमलेश्वर जी के व्यक्तित्व के बहुत सारे पहलुओं क साथ एक यह भी था कि वह बहुत अच्छे इंसान भी थे। बहुत बार उनसे मिलने का अवसर मिला। उनके घर पर अंतिम जन्मदिन मनाने का अवसर भी मिला था। रविन्द्र कालिया, ममता कालिया जी , हिमांशु जोशी जी,बलराम जी के साथ दो लोग और भी थे।अब तो स्मृतियाँ ही शेष हैं।

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    1. जी,आप सही कह रही हैं वे इंसान के रूप में भी बहुत अच्छे थे,बहुत सहज व्यक्तित्त्व था उनका, मुझ पर विशेष स्नेह रहा।आलेख की सराहना हेतु आपको हार्दिक धन्यवाद।

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  7. कमलेश्वर जी पर यह सारगर्भित लेख है, जिससे उनका संक्षिप्त परिचय भी मिला. इनकी पुस्तक 'कितने पाकिस्तान' पढी हूँ. अद्भुत किताब है. इस महत्वपूर्ण लेख के लिए हार्दिक बधाई.

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    1. कमलेश्वर जी पर सारगर्भित आलेख । बधाई ।

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    2. हार्दिक धन्यवाद डॉ. जेन्नी जी।

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  8. हार्दिक धन्यवाद विभा रश्मि जी।

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  9. एक सार्थक आलेख के लिए बहुत बधाई आदरणीय शिव जी को

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