पथ के साथी

Monday, November 1, 2021

1149- याद

 

भीकम सिंह 

 

भूली-सी याद 

1


सुन मेरे
 

अवकाश- प्राप्त मित्र

अनछुएँ ना रह जाए 

वो मनचाहे इत्र

जिन्हें पुरवा 

लेकर आती 

और पछुवा 

उड़ा जाती 

तैर जाते स्मृति में 

उन रिश्तों के चित्र 

 

अब उम्र की दीवार 

खटकती 

आँखों में चाँदनी 

पैर पटकती 

उर की तड़पन 

ज्यों की त्यों 

फिर बहानों की

बारिश क्यों 

ईर्ष्या से मर जाने दो 

जो हैं लोग विचित्र 

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2

 

आज

मेरा मन

और उदास भाव

कर रहे याद 

तेरे नयनों की प्यास 

 

हर पल

वो ही डगर

और कहकहे

अब खामोशी मगर

आ रही है रास ।

 

सुखद स्मृति 

भेंटपत्र

और सूखा गुलाब 

फिर ताज़ादम होकर

जगाते झूठी आस ।

 

छूट गया 

दुनिया भर का

याद रहा

नून-तेल भर का

खोई शुगर ने मिठास ।

 

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7 comments:

  1. अब उम्र की दीवार खटकती....बढ़ती वयस में बदलती भावनाओ की सशक्त भावाभिव्यक्ति।भीकम सिंह जी के हाइकुओं की तरह उनकी कविताएँ भी बेहद प्रभावी हैं।हार्दिक बधाई।

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  2. बहुत बढ़िया आदरणीय कविवर 👌👌👌 उम्र की फांस से कोई अछूता कब रह पाया है । देर सवेर सबको सालती है। भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🙏🙏

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  3. बहुत ही सुन्दर, भावपूर्ण कविता।

    हार्दिक बधाई आदरणीय।

    सादर 🙏🏻

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  4. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति... हार्दिक बधाई।

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  5. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचनाएँ

    हार्दिक बधाइयाँ

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  6. भीकम जी सुंदर कविताएँ हैं हार्दिक बधाई।वो मन चाहे इत्र जिन्हें पुरवा लेकर आती… बेहद खूबसूरत।

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  7. मेरी कविता प्रकाशित करने के लिए सम्पादक जी का धन्यवाद, और आप सभी का आभार, दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ।

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