पथ के साथी

Sunday, April 19, 2020

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मेशराज की रचनाएँ
1-जनक छन्द  की तेवरी
1
क्या घबराना धूप से
ताप-भरे लू-रूप से, आगे सुख की झील है।
दुःख ने घेरा, क्यों डरें
घना अँधेरा, क्यों डरें, हिम्मत है-कंदील है।
भले पाँव में घाव हैं
कदम नहीं रुक पायँगे, क्या कर लेगी कील है।
खुशियों के अध्याय को 
तरसेगा सच न्याय को, ये छल की तहसील है।
है बस्ती इन्सान की
हर कोई लेकिन यहाँ बाज गिद्ध वक चील है।
पीड़ा का उपचार कर
भाग लिखें की’ आज सुन, चलनी नहीं दलील है। 
-0-
2-*गीतिका छंद में ग़ज़ल* 

सादगी पै, दिल्लगी पै, इक कली पै, मर मिटे 
दोस्ती की रोशनी पै, हम खुशी पै, मर मिटे।

फूल-सा अनुकूल मौसम और हमदम ला इधर 
 प्यार की इकरार की हम चाँदनी पै मर मिटे।

हम मिलेंगे तो खिलेंगे प्यार के मौसम नये
हम वफा  की, हर अदा की, वन्दगी पै मर मिटे।

रूप की इस धूप को जो पी रहे तो जी रहे
नूर के दस्तूर वाली हम हँसी पै मर मिटे।

फिर  उसी अंदाज में तू ‘राज’ को आवाज दे
नैन की, मधु  बैन की हम बाँसुरी पै मर मिटे।
-0-
3- हाइकु विन्यास में ग़ज़ल     

भूल चुके हैं / प्रियतम को जब / बेचैनी कैसी ?
माना सुख-सा / हर ग़म को जब / बेचैनी कैसी ?

उसके लब की / इक जलधर की / रंगीं रातों की 
प्यास नहीं है / अब हमको जब / बेचैनी कैसी ?

आज प्रीति का / भोग न रुचिकर / प्राणों को लागे 
माना नीरस / मधुसम को जब / बेचैनी कैसी ?

बेगानों हित / सहज प्रफुल्लित / रातों-बातों में 
हमने देखा / हमदम को जब / बेचैनी कैसी ?

दूर-दूर हैं / हम उपवन की / हूकों-कूकों से 
आज न चाहें / छम-छम को जब / बेचैनी कैसी ?
-0-
3- तेवरी

तभी बिखेरे बाती नूर, ये दस्तूर
मोम सरीखा गल प्यारे । 

दुःखदर्दों से किसकी मुक्ति? कोई युक्ति??
क्या होना है कल प्यारे

अब तू जिस संकट के बीच, भारी कीच
थोड़ा-बहुत निकल प्यारे । 

रैंग, हुआ जो पाँव विहीन, बनकर दीन
सर्प सरीखा चल प्यारे । 

जग में उल्टे-सीधे  काम, ओ बदनाम
क्यों करता है छल प्यारे ।
-0-
4- नम हैं बहुत वतन की आँखें 

हिन्दू-मुस्लिम बनना छोड़ो
बन जाओ तुम हिन्दुस्तानी,
अपना भारत महाकाव्य है
टुकड़ो में मत लिखो कहानी।

क्यों होते हो सिख-ईसाई
साथ जियो बन भाई-भाई,
धर्म  नहीं वह जिसने सब पर
हिंसा के बल धाक जमा

रक्तपात यह हल देता है
बस हिंसक जंगल देता है,
जातिवाद का मीठा सपना
मानवता को छल देता है।

जब मजहब उन्मादी होता
बस लाशों का आदी होता,
चीत्कार ही दे सकता है 
अमन देश का ले सकता है।

अतः धर्म  का मतलब जानो
मानवता सर्वोपरि मानो,
नम हैं बहुत वतन की आंखें
इसके मन का दुःख पहचानो।
-0-

10 comments:

  1. पटल के सफलतापूर्वक 13 वर्ष पूर्ण होने की बधाई , शुभकामनाएं । आदरणीय रमेश राज की विविध विधाओं की सुंदर रचनाओं के लिए बधाई । हाइकु ग़ज़ल बहुत दिनों बाद पढा , अच्छे हैं ।

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  2. सहज सहित्य के तेरह वर्ष पूरे होने हेतु आदरणीय भैया जी एवं इससे जुड़े रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ!
    आ. रमेशराज जी की सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक, लाजवाब! बहुत बधाई आपको!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  3. विविध विधाओं की सुंदर,उत्कृष्ट रचनाएँ।रमेश राज जी को हार्दिक बधाई ।
    सहज साहित्य के तेरह वर्ष पूरे होने की बधाई ।

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  4. सहज साहित्य की तेरह वर्ष अविरल बहती धारा को पाठकों तक लाने और समय समय पर उनकी रचनाओं में गोते लगवाने का यह काम जो भाई काम्बोज जी ने किया है यह अद्भुत है आपको और सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई| रमेश जी की सभी रचनाएं एक से एक बढ़कर हैं भिन्न भिन्न विधाओं में पढ़कर मन में ज्ञान ऊर्जा की वृद्धि हुई मेरी और से उन्हें हार्दिक बधाई |

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  5. हमें सहज साहित्य का मंच प्रदान करने के लिए भाई साहब आपको अनेकों धन्यवाद और शुभकामनाएं!
    बेहतरीन रचनाओं के लिए रमेश जी को बधाई, विशेषतः तेवरी!

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  6. ऊर्जा भर देने वाली रचनाएँ , सभी रचनाएँ बहुत सुंदर... रमेश जी हार्दिक शुभकामनाएँ ।

    साहित्य के तेरह वर्ष पूर्ण होने पर गुरुवर को एवं सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाइयाँ । इसी तरह सहज साहित्य पर साहित्य का रसास्वादन करने का अवसर प्राप्त होता रहे....यही कामना करते हैं ।

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  7. सभी रचनाएँ बहुत अद्भुत. हाइकु विन्यास की ग़ज़ल तो बहुत कमाल की है. सुन्दर सृजन के लिए रमेशराज जी को बहुत बहुत बधाई.

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  8. सहज साहित्य के तेरह वर्ष पूर्ण होने पर काम्बोज भैया को बहुत-बहुत बधाई ।नये-पुराने कितने ही रचनाकारों को साथ लेकर आप चले ,सभी को अवसर दिया इसके आपको साधुवाद ।
    रमेश राज जी की सभी रचनाएँ बहुत सुन्दर हैं, विशेष रूप से हाइकु गजल बहुत अच्छी लगी।

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  9. धन्यवाद बहन अनिता ललित

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  10. बहुत प्यारी रचनाएँ...हार्दिक बधाई...|

    चौदहवे वर्ष में भी सहज साहित्य पहले से भी चौगुनी ऊँचाई पर पहुँचे, ऐसी ही शुभकामनाएँ...|

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