1.प्रीति अग्रवाल
1.
ऐ दोस्त तेरे काँधे में कुछ ऐसी कशिश है
दिखते ही जी चाहे, मैं जी भर के रो लूँ!
2.
तुम तो ऐसे न थे, जो सताते मुझको
पर यादें तुम्हारी, बड़ी बैरी निकलीं!
3.
हमराज़ चुना है, हमने तुम्हीं को
ये राज़ किसी से कह तो न दोगे?
4.
गुमनामी से अभी तो यारी हुई थी
तुमने वो भी छीनी, मशहूर करके!
5.
आँखों में लाल डोरे, बोझिल- सा तन है
बीमार नहीं हूँ, बस रोने का मन है।
6.
ऐ टूटते तारे, तेरी खामोशी से याद आया
टूट था मेरा दिल भी, कुछ तेरी तरह ही!
7.
एक प्यार- भरा दिल, और वो भी टूटा हुआ,
अब गीत और ग़ज़लों के काफिले बढ़ेंगें!
8.
क़ुर्बानी सारी, औरत के हिस्से आईं
और शोहरत, 'कुर्बानी के बकरे' ने पाई!!
9.
खुद को समझा सुनार, और दाता को लुहार
अब देख! सौ सुनार की, सिर्फ एक लुहार की।
10.
आज़ादी पे कुछ दिन से पाबन्दी क्या लगी है
न चाहकर, परिंदों से, जलन हो रही है।
11.
बुझ चुकी थी आग, धुआँ तक नहीं था
अंगारे मनचले थे, सुलगने की ठानी!
12.
न जाने क्यों मंज़िल की परवाह नहीं है
हसीं है सफर, हम चले जा रहे हैं!
13.
ऐसा भी नहीं कि बिन तेरे, मर मिटेंगें
बस जीने की कोई खास, वजह न रहेगी।
14.
सोचती हूँ, बस हुआ, ये रूठना मनाना
मैं मना मना थकी, तुम रूठके न हारे।
15.
तू जानता है सब, फिर भी बुत बना खड़ा है
नाइंसाफ़ी करने वालों की, फिर ऐसी क्या ख़ता है
-०-
2-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1
दूर रहकर पास आने की उम्मीद में जिए
पास आए तो दूरियाँ और गहरी हो गईं।
2
हम क्या हैं, समझाने में उम्र गुज़र गई।
ना वे समझ पाए ,न हम ही समझा सके
1
प्यारा अम्बर
ये था इनका घर
हमने छीना।
1.
ऐ दोस्त तेरे काँधे में कुछ ऐसी कशिश है
दिखते ही जी चाहे, मैं जी भर के रो लूँ!
2.
तुम तो ऐसे न थे, जो सताते मुझको
पर यादें तुम्हारी, बड़ी बैरी निकलीं!
3.
हमराज़ चुना है, हमने तुम्हीं को
ये राज़ किसी से कह तो न दोगे?
4.
गुमनामी से अभी तो यारी हुई थी
तुमने वो भी छीनी, मशहूर करके!
5.
आँखों में लाल डोरे, बोझिल- सा तन है
बीमार नहीं हूँ, बस रोने का मन है।
6.
ऐ टूटते तारे, तेरी खामोशी से याद आया
टूट था मेरा दिल भी, कुछ तेरी तरह ही!
7.
एक प्यार- भरा दिल, और वो भी टूटा हुआ,
अब गीत और ग़ज़लों के काफिले बढ़ेंगें!
8.
क़ुर्बानी सारी, औरत के हिस्से आईं
और शोहरत, 'कुर्बानी के बकरे' ने पाई!!
9.
खुद को समझा सुनार, और दाता को लुहार
अब देख! सौ सुनार की, सिर्फ एक लुहार की।
10.
आज़ादी पे कुछ दिन से पाबन्दी क्या लगी है
न चाहकर, परिंदों से, जलन हो रही है।
11.
बुझ चुकी थी आग, धुआँ तक नहीं था
अंगारे मनचले थे, सुलगने की ठानी!
12.
न जाने क्यों मंज़िल की परवाह नहीं है
हसीं है सफर, हम चले जा रहे हैं!
13.
ऐसा भी नहीं कि बिन तेरे, मर मिटेंगें
बस जीने की कोई खास, वजह न रहेगी।
14.
सोचती हूँ, बस हुआ, ये रूठना मनाना
मैं मना मना थकी, तुम रूठके न हारे।
15.
तू जानता है सब, फिर भी बुत बना खड़ा है
नाइंसाफ़ी करने वालों की, फिर ऐसी क्या ख़ता है
-०-
2-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1
दूर रहकर पास आने की उम्मीद में जिए
पास आए तो दूरियाँ और गहरी हो गईं।
2
हम क्या हैं, समझाने में उम्र गुज़र गई।
ना वे समझ पाए ,न हम ही समझा सके
-0-
हाइकु1
प्यारा अम्बर
ये था इनका घर
हमने छीना।
'आज़ादी पे कुछ दिन से पाबन्दी क्या लगी है,
ReplyDeleteन चाहकर, परिंदों से, जलन हो रही है।'
- सामयिक संकट पर सुन्दर पंक्तियाँ!
'दूर रहकर पास आने की उम्मीद में जिए
पास आए तो दूरियाँ और गहरी हो गईं।'
- मानवीय संबंधों की विडम्बना को उकेरती सुन्दर पंक्तियाँ!
दोनों कवियों को हार्दिक बधाई!
डाॅ. कुँवर दिनेशसिंह
जी आपके प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार!
Deleteसुंदर समसामयिक दोहे , बधाई ।
ReplyDeleteरमेश कुमार सोनी , बसना
जी बहुत बहुत धन्यवाद!
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद जी !
Deleteएक से बढ़कर एक क्षणिकाएँ! लाजवाब प्रीति जी एवं आदरणीय भैया जी! हाइकु भी बहुत सुंदर!
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई आप दोनों को!
~सादर
अनिता ललित
बहुत बहुत आभार अनिता जी, मैं तो खुद आपकी लेखनी की बड़ी प्रशंसक हूँ!बेहद खुशी हुई कि आपको पसंद आईं!
Deleteआपके और प्रीति अग्रवाल के सुंदर अशआर और आपका हाइकु.. समस्त रचनाएँ विषय वैविध्य लिए अनेक अर्थो की व्यंजक है, आपके ही इस शेर से दोनों को बधाई दे रहा हूँ--
ReplyDeleteहम क्या हैं समझाने में उम्र गुजर गई।
ना वे समझ पाये, न हम ही समझा सके।।
आदरणीय शिव भैया, जैसे में पहले भी कह चुकी हूँ, आपकी प्रतिक्रिया अपने आप में एक सुंदर समीक्षा होती है, आप किसी के लिए भी लिखतें हैं, मुझे बहुत अच्छी लगती है,सो आप का डबल आभार!!
DeletePreeti Ji,
ReplyDeleteक्या कमाल कर दिया आपनी इतनी गहरी बातों से ,
आपकी शायरी को देखकर मन बाग़ -बाग़ हो गया |
इतनी सुंदर क्षणिकाओं के लिए हृदय से धन्यवाद |श्याम -हिन्दी चेतना
कम्बोज जी की तो हर बात दिल से निकलती है |
आदरणीय भाई साहब आपने इतने सुनहरे शब्दों में मेरी रचना की सराहना की है, मेरे लिए यह किसी मैडल से कम नहीं, आपका बहुत बहुत आभार!!
Deleteबहुत सुंदर अशआर एक एक शेर मन की गहराई से निकला है। बधाई प्रीति जी।
ReplyDeleteमैं आ.श्याम जी से सहमत हूँ कि काम्बोज जी की हर बात दिल से निकलती है” कमाल का लेखन
दिल से दिल को राह होती है, सो आप तक मेरी आवाज़ पहुँची! बहुत बहुत धन्यवाद सुदर्शन जी।
Deleteबहुत सुंदर सृजन। बेहतरीन प्रस्तुति... प्रीति एवं भाई काम्बोज जी आप दोनों को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteधन्यवाद कृष्णा जी, मुझे खुशी है कि आपको पसंद आईं!!
Deleteआदरणीय काम्बोज भाई साहब को मेरा नमन एवं आभार, आपके साथ एक पृष्ठ पर होना ही मेरे लिए बहुत सम्मान की बात है!!
ReplyDeleteप्रीति क्या बात है | अति सुन्दर भाव में रची रचनाएं हैं हार्दिक बधाई | काम्बोज जी को सुन्दर प्रस्तुति और हाइकु के लिए बधाई |उनका तो जवाब नहीं है |
ReplyDeleteसविता जी आपके स्नेह भरे प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार!!
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ReplyDeleteप्रीति जी का सुन्दर सृजन , ग़ज़ल - क्षणिकाएं दोनों ।खूब बधाई लें ।
ReplyDeleteआ.हिमांशु भाई का सदा से,सधा हुआ संजीदा सृजन ।खूब दिली बधाई भाई जी स्वीकारें ।
विभा जी आपका हार्दिक धन्यवाद!
Deleteअति सुन्दर सृजन.... आद.भैया जी एवँ प्रीति जी को हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार ज्योत्स्ना जी!
ReplyDeleteप्रीति जी ,ऐसा लगता है आपने सबके मन के भाव शब्दों में पिरो दिये हैं । भावों को बखूबी शब्दों में उतारना आपको खूब आता है । आदरणीय भैया जी हमेशा ही सुकोमल लिखते हैं ।
ReplyDeleteधन्यवाद सुरँगमा जी, यकीनन यह आप सब बेहतरीन लेखकों की सोबत का असर है !!
ReplyDeleteबहुत उम्दा अभिव्यक्ति. उत्कृष्ट लेखन के लिए प्रीति जी और काम्बोज भाई को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार जेन्नी जी, आपके स्नेह भरे शब्द मेंरे लिए बहुत मायनें रखतें हैं!
ReplyDeleteबहुत आनंद आया , मेरी हार्दिक बधाई
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