जन्म दिवस पर ही प्रश्न है
डॉ. कविता भट्ट
श्रीनगर (गढ़वाल) उत्तराखंड
आज फिर से बधाई-शुभकामनाओं का शोर चला है
घोषणा, भाषण,भीड़ और पुष्पगुच्छ का दौर
चला है ।
जन्म दिवस पर खड़ा प्रश्न हैं
विकल सत्ता के घर जश्न हैं
केवल झुनझुनों
में घिरा है
कब सँभला ,जो आज गिरा है
तार-तार उत्तर का आँचल, कहाँ इसका छोर चला है
चोट और झटकों पर झटके, हर आँसू झकझोर चला है ।
पहाड़ियों के दुखी नगर को
चढ़ती उतरती इस डगर को
अब कुछ समझ आता नहीं है
कोई सपन भाता नहीं है
पोथी-रोटी-दवा न मिली, ये जाने किस ओर चला है
नशे के अँधियारे में,
छोड़ ये उजली भोर चला है ।
कई प्रश्न उठाती हुई सुंदर कविता।
ReplyDeleteसुंदर सटीक रचना। बहुत बधाई कविता जी।
ReplyDeleteवाह, सुंदर रचा !!
ReplyDeleteउत्तरांचल के जिस्म पर कई घाव पीरते हैं ।प्रकृतिक आपदा भी आई ।उसका दोहन भी हुआ । नशे की चपेट में रहा । अंधेरों से निकल भोर की ओर चलें । कविता अपनी धरती के दुख- सुख से जुड़ी है । बहुत संवेदनशील कविता । बधाई ।
ReplyDeleteबिलकुल सटीक और उम्दा रचना
ReplyDeleteहार्दिक बधाई कविता जी
बहुत सार्थक मसला उठाया है आपने अपनी रचना के माध्यम से...। बहुत बधाई इस रचना के लिए
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद, सभी शुभेच्छुओं का।
ReplyDeleteकविता जी बहुत ही विचारणीय कविता है उत्तराखण्ड के दर्द को जताते हुये । शासक जाने कब उसकी पीड़ा समझेंगे ।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिये ।
बहुत बहुत बधाई हो Ma'am
ReplyDeleteउत्कृष्ट सृजन के लिए हार्दिक बधाई प्रिय सखी ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर तरीके से उत्तराखंड की पीड़ा को दर्शाया है आपनें
ReplyDeleteकविता जी ...ये पीड़ा दूर होगी ही इसी आशा के साथ तहे दिल से शुभकामनाएँ आपको उत्तराखंड के सुन्दर भावी भविष्य के लिए !!
विचारणीय कविता
ReplyDeleteविचारणीय कविता जन्म एवं कर्म भूमि को समर्पित,आपकी लेखनी की महक महकती रहे यही मेरी तरफ से आपको शुभकामनाएं
ReplyDeleteसुन्दर ,सामयिक , सशक्त रचना ..हार्दिक बधाई कविता जी !
ReplyDeleteआप सभी आत्मीय जनों का हार्दिक आभार
ReplyDeleteकविता जी आज आपकी रचना पढ़ी, सुन्दर और सशक्त रचना है हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteहार्दिक आभार
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