पथ के साथी

Saturday, November 25, 2017

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धर लिये थे गोद में
मेहँदी रचे दो पाँव
नीर नयनों से बहा
और मन पावन  हो गया।
धुल गए
अवसाद सारे
धूल जीवन की धुली,
खिड़कियाँ बरसों से
बन्द थीं,
वे अचानक जब खुलीं,
परस दो पल जो मिला
सहरा में सावन हो गया ।
अधर -पुट ने छू लिया
चाँद जैसे भाल को,
जीत लेती साधना
जैसे घुमड़ते काल को;
एक पल मुझको मिला
जो,मन-भावन हो गया।
चमक बिछुए की मिली
कि भाव दर्पण था सजा ,
इस एकाकी हृदय में
गीत गन्धर्व का बजा ,
इस जनम में तुम मिले
मन वृन्दावन हो गया।

-0-[चित्र गूगल से साभार]

14 comments:

  1. वाह, बहुत खूब, मन वृन्दावन हो गया | सुरेन्द्र वर्मा |

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  2. परस दो पल जो मिला
    सहरा में सावन हो गया ।
    अति सुंदर नवगीत।

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  3. बहुत ही सुंदर नवगीत भैया .... मन वृंदावन हो गया ....
    मन पावन हो गया....

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  4. बहुत ही सुंदर नवगीत भैया .... मन वृंदावन हो गया ....
    मन पावन हो गया....

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  5. बहुत सुंदर नवगीत भैया जी ,हर शब्द मोती ।
    सादर नमन भैया जी, हार्दिक बधाई ।

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  6. वाह! बेहद सुंदर नवगीत भाईसाहब
    इस जनम में तुम मिले
    मन वृन्दावन हो गया।

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  7. बहुत सुंदर ,सरस नवगीत भैया जी 👌
    हार्दिक बधाई ..सादर नमन 💐🙏

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  8. बहुत सुंदर नवगीत,भावों को नमन|

    पुष्पा मेहरा

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  9. भावों की बरखा हो रही है । बार-बार नवगीत को पढ़ने को मन चाहता है । बधाई आदरणीय भैया

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  10. वाह बहुत सुन्दर भाव |हार्दिक बधाई भाई काम्बोज |

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  11. वाह, बहुत सुन्दर

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  12. बहुत सुंदर गीत सर, हार्दिक बधाई स्वीकारें

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  13. सभी स्नेही साथियों का बहुत-बहुत आभार ।

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  14. प्रेम की सरसता और पवित्रता को मन तक बेहद खूबसूरती से पहुँचा दिया है आपने अपनी इन पंक्तियों के माध्यम से...।
    मेरी हार्दिक बधाई...।

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