दो ग़ज़लें : डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
1
चोट पर चोट देकर रुलाया गया
जब न रोए तो पत्थर बताया गया ।
हिचकियाँ कह रही हैं कि तुमसे हमें
अब तलक भी न साथी ! भुलाया गया ।
लम्हे तर को तरसती रही ज़िंदगी
वक़्ते रूखसत पे दरिया बहाया गया ।
ऐसे छोड़ा कि ताज़िंदगी चाहकर
फिर न आवाज़ देकर बुलाया गया।
आदतें इस क़दर पक गईं देखिए
आँख रोने लगीं जब हँसाया गया ।
यूँ निखर आई मैं ओ मेरे संगज़र !
मुझको इतनी दफ़ा आज़माया गया।
कहाँ मुमकिन हमेशा रोक कर रखना बहारों को
बनाया बाग़ में रब ने गुलों के संग
ख़ारों को ।
दबी रहने दे ऐसे छेड़ मत चिनगारियाँ हमदम
कहीं ये बात हो जाए न भड़काना शरारों
को ।
किसी ने चाँद टाँका है जबीं पे आज
देखो तो
निगाहें छू न पाईं थीं अभी मेरी सितारों को ।
तुम्हें सँभाल कर रखने
हैं रिश्ते ,नींव
,दीवारें
बड़ा मुश्किल है फिर भरना बहुत
गहरी दरारों को ।
दिया था इल्म उसने तो बसर हो ज़िंदगी
कैसे
समझ पाए न हम देखो खुदी उसके इशारों
को ।
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किसी ने चाँद टाँका है जबीं पे आज देखो तो
ReplyDeleteनिगाहें छू न पाईं थीं अभी मेरी सितारों को ।
बहुत ख़ूब !!
वआआह, छा गयी ज्योत्स्ना दीदी। बधाई ।
ReplyDeleteकमाल लाजवाब
ReplyDeleteकमाल लाजवाब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ,,,
ReplyDeleteBahut khub likha hai bahut bahut badhai.
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार २० नवंबर २०१७ को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
ReplyDeleteवाह बहुत उम्दा, लाजवाब ग़ज़लें कहीं हैं सखी , आत्मिक बधाई ।
ReplyDelete1
ReplyDeleteऐसे छोड़ा कि ताज़िंदगी चाहकर
फिर न आवाज़ देकर बुलाया गया।
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तुम्हें सँभाल कर रखने हैं रिश्ते ,नींव ,दीवारें
बड़ा मुश्किल है फिर भरना बहुत गहरी दरारों को ।
रिश्तों पर नाज़ुक ग़ज़लें । बधाई ज्योत्स्ना जी ।
वाह बहुत शानदार हरिक अशआर.... बधाई आपको
ReplyDeleteबहुत बहुत ही सुंदर ग़ज़ल ज्योत्स्ना जी बधाई |
ReplyDeleteपुष्पा मेहरा
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आपका !
Deleteआपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया मेरे लेखन की ऊर्जा है साथ ही मैं आ. काम्बोज भैया जी ,अनिता मंडा जी ,
कविता भट्ट जी , डॉ. सुषमा जी , कविता रावत जी , डॉ. भावना जी , सुनीता काम्बोज जी , विभा जी ,
गुंजन जी , पुष्पा जी का भी हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ !
आशा करती हूँ आपका यह स्नेह ,आशीर्वाद मेरी रचनाओं पर , मुझ पर सदैव बना रहेगा |
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
वाह! खूबसूरत अंदाज ए बयां। हर शेर का मुकम्मल आसमान। बधाई एवं शुभकामनाएं।
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद आपका !
Deleteसादर
बहुत ही सुन्दर....लाजवाब..
ReplyDeleteवाह!!!!
बहुत-बहुत आभार आपका !
Deleteसादर
शुभ संध्या ज्योत्सना बहन
ReplyDeleteएक बेहतरीन ग़ज़लों को जोड़ा
और एक उम्दा श़ेर
दिया था इल्म उसने तो बसर हो ज़िंदगी कैसे
समझ पाए न हम देखो खुदी उसके इशारों को ।
दाद कबूल फ़माइए
सादर
प्रेरक उपस्थिति के लिए हृदय से आभार आ. यशोदा जी !
Deleteवाह! लाज़वाब ग़ज़लें... ज्योत्स्ना जी हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत आभार दीदी !
Deleteसादर
बहुत उम्दा ग़ज़लें...ढेरों बधाई...।
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया प्रियंका जी !
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