मेहँदी रचे दो पाँव
नीर नयनों से बहा
और मन पावन हो गया।
धुल गए
अवसाद सारे
धूल जीवन की धुली,
खिड़कियाँ बरसों से
बन्द थीं,
वे अचानक जब खुलीं,
परस दो पल जो मिला
सहरा में सावन हो गया ।
अधर -पुट ने छू लिया
चाँद जैसे भाल को,
जीत लेती साधना
जैसे घुमड़ते काल को;
एक पल मुझको मिला
जो,मन-भावन हो गया।
चमक बिछुए की मिली
कि भाव दर्पण था सजा ,
इस एकाकी हृदय में
गीत गन्धर्व का बजा ,
इस जनम में तुम मिले
मन वृन्दावन हो गया।
वाह, बहुत खूब, मन वृन्दावन हो गया | सुरेन्द्र वर्मा |
ReplyDeleteपरस दो पल जो मिला
ReplyDeleteसहरा में सावन हो गया ।
अति सुंदर नवगीत।
बहुत ही सुंदर नवगीत भैया .... मन वृंदावन हो गया ....
ReplyDeleteमन पावन हो गया....
बहुत ही सुंदर नवगीत भैया .... मन वृंदावन हो गया ....
ReplyDeleteमन पावन हो गया....
बहुत सुंदर नवगीत भैया जी ,हर शब्द मोती ।
ReplyDeleteसादर नमन भैया जी, हार्दिक बधाई ।
वाह! बेहद सुंदर नवगीत भाईसाहब
ReplyDeleteइस जनम में तुम मिले
मन वृन्दावन हो गया।
बहुत सुंदर ,सरस नवगीत भैया जी 👌
ReplyDeleteहार्दिक बधाई ..सादर नमन 💐🙏
बहुत सुंदर नवगीत,भावों को नमन|
ReplyDeleteपुष्पा मेहरा
भावों की बरखा हो रही है । बार-बार नवगीत को पढ़ने को मन चाहता है । बधाई आदरणीय भैया
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर भाव |हार्दिक बधाई भाई काम्बोज |
ReplyDeleteवाह, बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत सर, हार्दिक बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteसभी स्नेही साथियों का बहुत-बहुत आभार ।
ReplyDeleteप्रेम की सरसता और पवित्रता को मन तक बेहद खूबसूरती से पहुँचा दिया है आपने अपनी इन पंक्तियों के माध्यम से...।
ReplyDeleteमेरी हार्दिक बधाई...।