ज्योत्स्ना प्रदीप
1-शैलपुत्री
शैलपुत्री के रूप में
पूजित
वृषभ हुई सवार।
कमल विराजे ,पापनाशिनी
सुन लो ना पुकार।।
अपमान पति का सह न पाईं
किया खुद का दाह।
शिव की प्रिया बनीं तुम
फिर से
यही थी चिर चाह।।
पार्वती बनकर तुम आईं
दुहिता शैलराज।
शिव को पाया जप- तप से
माँ
करो पूर्ण काज।
माँ की महिमा बड़ी अनोखी
सागर-सा हिलोर।
माता की करूणा का लोगों
कहीं ओर न छोर।
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2-ब्रह्मचारिणी
ब्रह्मचारिणी माँ का
मिलकर
करें हम आह्वान।
जीवन में संयम आता माँ
करें हम प्रणाम।।
सूखे पात खाकर शंकरी
सुखाई थी देह।
तुमसे बुद्धि का दान मिले हैं
प्यारी देह -नेह।।
शिव की साध बनी थी माता
जगत -मूलाधार।
पल -पल को कर देती पावन
जगत- पालनहार।
वरद -हाथ हो सर पर शिविका
जले तेरी ज्योत।
जगमग करती माता जग को
फैलाती खद्योत।।
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3-चंद्रघंटा
चंद्रघंटा-साधना पूजन
शरद ऋतु शृंगार।
नवरात्रि के तृतीय दिवस
में
करती हो उद्धार।
अस्त्रों - शस्त्रों से
हो विभूषित
दृगों में अंगार।
असुरों की संहारक आद्या
भू का हरे भार।।
देवी माँ से हो साधक को
अलौकिक अहसास।
हर दुख में होती बालक
के
सदा माता पास।
माँ -उपासना से साधक का
सधे चक्र मणिपूर।
हर पल मन में वास करे
ये
माँ न होए दूर ।।
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4- कूष्मांडा
हे माता तुम अब आ जाओ
तुम्हीं मेरी आस ।।
सूरज सा है तेज
तुम्हारा
रवि लोक है वास।।
करती शेर सवारी माता
सुनें जयजयकार।।
जग से बैर हटे रे माई
सभी में हो प्यार।।
वर दे दो तेजोमय माता
बनें सबके काम।
नौ निधियों को
देनेंवाली
जन्मों-जन्मों प्रणाम ।
।
कंज,कमंडल ,गदा ,धनुष ले
देती अमिय -धार।।
तम बंधन से तुम्हीं
निकालो
वंदन बारम्बार।।
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5-स्कंदमाता
वरमुद्रा में शुभ्र
वर्ण वाली,
करें सभी प्रणाम।
स्कंदमाता शाम्भवी हो तुम,
करती हो कल्याण।।
तेरी साधना -आराधना
भर दे घर- भण्डार।
नैनों से करुणा की बहती
तेरे दृगों- धार।।
अनगिन किरणें काया
-निकसे,
चमक रहा ललाट।
दीन- हीन हैं हम पापी
हैं,
जगत - बंधन काट।।
माँ के मानस आओ लोगों ,
होते हैं तल्लीन ।
इस माया से विलग पड़ी थी,
बिन जल तृषित मीन।।
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6-माँ
कात्यायनी
माँ कात्यायनी कमलालया
करूँ तेरा जाप।
श्री अंगों की आभा
प्यारी
दूर हो संताप ।।
महिषासुर-कलुषित तन-
मनका
तुमने अंत किया।
क्रोध- शोक से भटके थे जो
मन को संत किया।।
सब शत्रु - नाशिनी
हो माता
तुम्हें है नमस्कार ।
शुभ छवि जो हृदय में
विराजे
भागे अहंकार।।
हेम -कलेवर लोहित साड़ी
हाथों में कटार।
पोर-पोर से बहती
आभा
घनप्रिया की धार ।
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7-कालरात्रि
हे कालरात्रि काली माता,
काल तेरा ग्रास।
काया काली पर दीपित है,
हृदय में मधुमास।।
क्रिया हीन हूँ ,तेरे वर से
करें कर्म महान।
बुद्धिहीन, यश हीन हूँ माता
दे दो अमिय - दान ।।
विजयशालिनी ,मोक्षप्रदा माँ
तेरे अंशभूत।
शत्रु नाशकर परम गति पाते
तेरे ही कपूत।।
रौद्रमुखी हो भद्रकाली
माँ
कंठ माल -कपाल।
खुले केशों में विकट
रातें
जीभ लोहित ,लाल।।
रौद्री, घुमोरना ,कपालिनी
करे जयजयकार।
वरद करों को सर पर रख
दो,
दया
अपरंपार।।
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8-महागौरी
हे शिवप्रिया कल्याण
शोभना
परमपद का भार।
सब शत्रु नाशिनी पापों
का
करें माँ संहार।।
तेरे पूजन से माता हम
रहें सब नीरोग।
तुम ही देती पल में
माता
इस जगत के भोग।।
कैलाश रहती महागौरी
वर-मुख है गम्भीर।
इस जग के हर प्राणी की माँ
तुम्हीं जानों पीर।।।
गौरवर्ण में रजत देह ये
विधु करे शृंगार।
हर पोर सुगंध निकलती है
पावन है अपार।।
माँ गौरी की शुभ छवि से
ही
श्रद्धा का संचार।।
माँ शुभ्र ओजस कर देती हैं
सभी मलिन विचार।।
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9-सिद्धिदात्री
जो मीठा फ़ल दे देती हो
सिद्धिदात्री कहाय ।
साधक तप को करते-करते
दया इनकी पाय।।
चार भुजाओं वाली माता
शिव भी करें साध ।
अपनें बालक से ये माता
करें प्रेम अगाध ।।
शंख ,चक्र ,गदा कर में ले कर
कमल विराजमान।
ऐसी मोहक छवि का मन में
करते सभी ध्यान।।
ओज तुम्हारा बड़ा निराला
मिटा विषय -विकार।
ऐसी मोहक छवि को मनवा
पूजें बारम्बार।।
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Very nice thoughts
ReplyDeleteवाह ! ज्योत्स्ना जी बहुत ही मन को पावन करने वाले भाव.... हर देवी का अलग-अलग चित्रण मन को मोह गया।
ReplyDeleteमाँ के सभी रूपों की सुंदर स्तुति सखी... हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteमहिषासुर-कलुषित तन- मनका
ReplyDeleteतुमने अंत किया।
क्रोध- शोक से भटके थे जो
मन को संत किया।।
बहुत सुन्दर रचना, बधाई स्वीकारें ज्योत्स्ना जी
माँ जगदम्बिका के नौ स्वरूपों के वंदन अर्चन में आपकी इस साधना को सादर नमन ज्योत्स्ना जी 💐🙏💐
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति 👌👍हार्दिक बधाई !!
आद. भैया जी का साथ ही आप सभी का हृदय से आभार !!
ReplyDeleteवाह ज्योत्सना जी मां के नौ रूपों का बहुत सुंदर वर्णन और स्तुति। मां को और आपकी लेखनी को सादर नमन।
ReplyDeleteवाह ! माँ के रूपों के इस पावन वन्दन के लिए आपको बधाई
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