साँझ रंगीली आई है
डॉ.कविता भट्ट(हे न ब गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखंड)
साँझ रंगीली आई है नवपोषित यौवन शृंगार लिये
मुक्त छंद के गीतों का सृजन कुसुमित प्रसार लिये
अपरिचित अनछुआ व्योम भी आज सुपरिचित लगता है
तम में दीप शिखाओ का विजयगान सुनिश्चित लगता है
मंद श्वास की वृद्ध गति में यौवन का संचार लिये
जीवन से मिले प्रहारों के आशान्वित उपचार लिये
चंद्र-आलोक तिमिर को चीर निशा का मौन समर्पण है
कोई खड़ा कपाट खोलकर रश्मियों का आलिंगन क्षण है
नर्म उष्ण लालिमामय अधरों पर झंकृत स्वर उद्गार लिये
बिना पदचाप ऋतुओं का परिवर्तित स्वप्नमय संसार लिये
ये कौन मूक निमंत्रण पाकर संवेदन-प्रणय-अभिसार लिये
साँझ रंगीली आई है नवपोषित यौवन शृंगार लिये ।
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बहुत ही बेहतरीन और उम्दा सृजन के लिए हार्दिक बधाई कविता जी
ReplyDeleteआभार, आदरणीया।
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ReplyDeleteबेहतरीन रचना! बस शब्द शृंगार को श्रृंगार कर दें।
ReplyDeleteआभार, सखी, फॉन्ट परिवर्तित होने से त्रुटि हुई। ठीक कर दी जाएगी, आभार, सुझाव हेतु भी।
Deleteबहुत सुंदर और सही लिखा है कविता जी ...बधाई 👌👍💐
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर रचना कविता जी ..हार्दिक बधाई
ReplyDeleteआभार, आपका।
Deleteखूबसूरत साँझ
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना कविता जी बधाई
ReplyDeleteउम्दा रचना कविता जी बधाई।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा सृजन के लिए हार्दिक बधाई कविता जी !!
ReplyDeleteहार्दिक आभार, आप सभी का
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