पथ के साथी

Friday, June 19, 2015

तुम और मैं



कमला घटाऔरा

तुम और मैं
तुम भीतर थे;
छुपे आत्मा में सूर्य से
फूलों में सुगंध से,
हवा में स्पर्श से
जल में बसे जीवन से
मैं ढूँढ़ती रही
गिरीं कंदराओं में
तुझे पा सकूँ
तेरी- सी बन कर
तुझे अपना सकूँ -
मैं लड़ती रही
विकारों के अँधेरों से
विचारों की भीड़ से
तर्कों की तलवारों से
होती लहू लुहान रही
निराकार -साकार के
भेद को जानूँ  कैसे
उलझी रही धर्म ग्रंथों में।
यह भी चाहा कि-
गूँजते जो आकाश में स्वर ध्वनि के
उनमें सुनूँ संदेश तुम्हारा
सब अफल।
उपा और भी किये-
पूजने पत्थर,
मंदिर- मंदिर ,
मिले न तुम कहीं ।
राह दिखा कोई
पाया न गुरु ऐसा
असफल हो बैठ गई शून्य -सी।
झाँका मन में तब
पाया तुम्हें  भीतर
इन्द्रधनुषी रंगों से
सागर की लहरों से
जल में बसे जीवन से
साँसों में सरगम से
तुम्ही आते, तुम्ही ही जाते
सिखाते रहे ,कहो  - अहं ब्रह्मास्मि
तुम साकार, मैं निराका
मेरी उपस्थिति का एक आभास
हँसाओ औरों को,
देखो मुझे हँसता
हरकर पीड़ा किसी की
मेरा ही दर्द मिटता।
डूबते को दे सहारा

मुझे पार उतरता।
लक्ष्य हो कण -कण में मुझे देखना।
फिर भेद नहीं तुझ में मुझ में।
है अमिट यह रिश्ता युगों युगों से।
-0-

20 comments:

  1. सत्य का मर्म! बहुत सुन्दर!

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  2. आत्मा से परमात्मा तक ले जाती बहुत सुन्दर रचना ...नमन !

    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  3. naman hai aapki sundar rachna ko kamla ji .

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  4. सच ! आत्मा से परमात्मा की ओर... सुंदर रचना !
    हार्दिक बधाई आदरणीया कमला जी !

    ~सादर
    अनिता ललित

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  5. सुन्दर सहृदय रचना......कमला जी बहुत बधाई!

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  6. कमला जी आत्मा और परमात्मा के मिलन और एक दूजे में निवास की सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई |

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  7. dvait se advait ki disha dikhane vala bhav shreshhth hai . kamla ji apako badhai.
    pushpa mehra.

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  8. एक दार्शनिक अभिव्यक्ति के लिए बधाई कमला जी |

    सस्नेह,
    शशि पाधा

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  9. रामेश्वर हिमांशु जी आप ने इस धार्मिक रचना को सहज साहित्य में स्थान देकर मुझे बहुत प्रोत्साहन दिया। आप पाठकों का भी बहुत बहुत धन्यवाद। जिन्होनों इसे रूची से पढ़ा।



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  10. आपकी इस पोस्ट को शनिवार, २० जून, २०१५ की बुलेटिन - "प्यार, साथ और अपनापन" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।

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  11. बहुत अच्छू कविता है

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  12. आध्यात्मिकता की ओर लेजाती बहुत सुन्दर रचना
    तुम्हारी याद !

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  13. बहुत अच्छी कविता है कमला जी आपको बधाई ।
    रेणु चंद्रा

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  14. This comment has been removed by the author.

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  15. बहुत ही सुन्दर कविता...
    कुलदेवी

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  16. अलौकिक अनुभूति लिए आनन्दानुभूति करने वाली कविता।
    बहुत बहुत बधाई।

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  17. एक दार्शनिक अभिव्यक्ति के लिए बधाई कमला जी |

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  18. बहुत ही सुन्दर कविता...

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  19. अपने में बहुत गहराई समेटे हुए है यह कविता...| इस अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई...|

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