कमला घटाऔरा
तुम और मैं
तुम भीतर थे;
छुपे आत्मा में सूर्य से
फूलों में सुगंध से,
हवा में स्पर्श से
जल में बसे जीवन से
मैं ढूँढ़ती रही
गिरीं कंदराओं में
तुझे पा सकूँ
तेरी- सी बन कर
तुझे अपना सकूँ -
मैं लड़ती रही
विकारों के अँधेरों से
विचारों की भीड़ से
तर्कों की तलवारों से
होती लहू लुहान रही
निराकार -साकार के
भेद को जानूँ कैसे
उलझी रही धर्म ग्रंथों में।
यह भी चाहा कि-
गूँजते जो आकाश में स्वर ध्वनि के
उनमें सुनूँ संदेश तुम्हारा
सब अफल।
उपाय और भी किये-
पूजने पत्थर,
गई मंदिर- मंदिर ,
मिले न तुम कहीं ।
राह दिखाए कोई
पाया न गुरु ऐसा
असफल हो बैठ गई शून्य -सी।
झाँका मन में तब
पाया तुम्हें भीतर
इन्द्रधनुषी रंगों से
सागर की लहरों से
जल में बसे जीवन से
साँसों में सरगम से
तुम्ही आते, तुम्ही ही जाते
सिखाते रहे ,कहो
- ‘अहं ब्रह्मास्मि’
तुम साकार, मैं निराकार
मेरी उपस्थिति का एक आभास
हँसाओ औरों को,
देखो मुझे हँसता
हरकर पीड़ा किसी की
मेरा ही दर्द मिटता।
डूबते को दे सहारा
मुझे पार उतरता।
लक्ष्य हो कण -कण में मुझे देखना।
फिर भेद नहीं तुझ में मुझ में।
है अमिट यह रिश्ता युगों युगों से।
-0-
सत्य का मर्म! बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteआत्मा से परमात्मा तक ले जाती बहुत सुन्दर रचना ...नमन !
ReplyDeleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
naman hai aapki sundar rachna ko kamla ji .
ReplyDeleteसच ! आत्मा से परमात्मा की ओर... सुंदर रचना !
ReplyDeleteहार्दिक बधाई आदरणीया कमला जी !
~सादर
अनिता ललित
सुन्दर सहृदय रचना......कमला जी बहुत बधाई!
ReplyDeleteकमला जी आत्मा और परमात्मा के मिलन और एक दूजे में निवास की सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई |
ReplyDeletedvait se advait ki disha dikhane vala bhav shreshhth hai . kamla ji apako badhai.
ReplyDeletepushpa mehra.
एक दार्शनिक अभिव्यक्ति के लिए बधाई कमला जी |
ReplyDeleteसस्नेह,
शशि पाधा
रामेश्वर हिमांशु जी आप ने इस धार्मिक रचना को सहज साहित्य में स्थान देकर मुझे बहुत प्रोत्साहन दिया। आप पाठकों का भी बहुत बहुत धन्यवाद। जिन्होनों इसे रूची से पढ़ा।
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को शनिवार, २० जून, २०१५ की बुलेटिन - "प्यार, साथ और अपनापन" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।
ReplyDeleteबहुत अच्छू कविता है
ReplyDeleteआध्यात्मिकता की ओर लेजाती बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteतुम्हारी याद !
सुंदर रचना ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता है कमला जी आपको बधाई ।
ReplyDeleteरेणु चंद्रा
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता...
ReplyDeleteकुलदेवी
अलौकिक अनुभूति लिए आनन्दानुभूति करने वाली कविता।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई।
एक दार्शनिक अभिव्यक्ति के लिए बधाई कमला जी |
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता...
ReplyDeleteअपने में बहुत गहराई समेटे हुए है यह कविता...| इस अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई...|
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