रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
आग द्वेष की जब-जब दहके
घर अपने ही जलते हैं ।
उनका बाल न बाँका होता
जो शोलों पर चलते हैं।
2
प्यार किया मैंने जग भर को
बदले में उपहार मिला ।
खुशबू मिली, चाँदनी मुझको
झोली भर-भर प्यार मिला ॥
जिसने नफ़रत रोज़ उगाई,
सींची थी विषबेल सदा ।
केवल काँटे हाथ लगे थे
पछतावा हर बार मिला ।।
3
सुख-दु:ख सारे भोगे मैंने
अब जो सुख मैं पाऊँगा ।
सच कहता हूँ –जाते-जाते
तुझको सब दे जाऊँगा ।
-0-
प्यार किया मैंने जग भर को
ReplyDeleteबदले में उपहार मिला ।
खुशबू मिली, चाँदनी मुझको
झोली भर-भर प्यार मिला ॥
भाई हिमांशु जी ये पंक्तियाँ विशेष हैं , प्यार से सभी जुड़ जाते हैं . यथार्थवादी चिंतन , सकारात्मक सोच .गागर में सागर भर दिया . उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ने को मिली .
बधाई
बहुत सुंदर विचारों से युक्त सार्थक रचना ...!!
ReplyDeleteक्या कहें...किस पंक्ति को चुने...किसे छोड़े...| बहुत सुन्दर...दिल की गहराई तक जाती हैं ये कविताएँ...| आपकी रचनाएँ हमेशा यूँ ही जादू-सा करती है मन-आत्मा पर...|
ReplyDeleteआभार और बधाई...|
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (04-05-2014) को "संसार अनोखा लेखन का" (चर्चा मंच-1602) पर भी होगी!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ जी, इतनी सुंदर रचना के लिये आपको बहुत - बहुत बधाई !
ReplyDeleteमैं इस कविता को पढ़ने के बाद एक निवेदन कर रहा हूँ; आशा है
आप उस पर जरूर ध्यान देंगे :
" जाने की हम बात करें न, अभी तो मीलों चलना है;
प्यार बाँटने वाले राही, अभी बहुत कुछ कहना है ;
शूल मिलें या फूल मिलें, इसकी क्यों परवाह करें ?
स्नेह लुटाते रहें सभी पर, बेमतलब का कलुष हरें। "
---------------------------------------------------
- सुभाष लखेड़ा
bahut sundar ..__/\__
ReplyDeleteसुन्दर दृष्टिकोण, अर्थपूर्ण रचना आपको हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteप्यार के बदले प्यार पाना बहुत अच्छा दृष्टिकोण.
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना !
ReplyDeleteNew post ऐ जिंदगी !
pyar kiya maine jag bhar ko, badale mein upahar mila. khushabu mili , chandani mujhko, jholi bhar- bhar pyar mila.............satya hai jis
ReplyDeleteprakar beej bone se vrex ugata hai phir phool, khushabu ,phal aur usase mili mithas jeevan mein madhurata gholati hai usi prakar
pyar ka vrex jevan mein pyar ka phal hi lautata hai.nisvarth jeevan jeete hue nafarat ki rahon se bachane mein hi jeevan ki sarthakata hai. bhai ji is sandeshpurn rachana ke liye apako hardik badhai.
pushpa mehra.
सुन्दर भावों का रचा ,अति सुन्दर संसार |
ReplyDeleteसरस सृजन यह आपका ,हमें मधुर उपहार ...ऐसे उपहार आप खूब पाएँ और सबको बाँटते जाएँ !!
हार्दिक बधाई ...शुभ कामनाएँ भैया जी
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
आग द्वेष की जब-जब दहके
ReplyDeleteघर अपने ही जलते हैं । खूब सुन्दर प्रेरक भाव को अभिव्यक्त करती रचना .बधाई
'नेह आपका जब-जब छलका
ReplyDeleteहम सबको अपार मिला,
शब्दों में न बंध सके वो
आशीषों का भण्डार मिला।'
बहुत-बहुत-बहुत... सुन्दर, सरस, पावनता से ओतप्रोत कविताएँ.. भैया जी। यूँ ही अपने कोमल भावों से शब्दों को महकाते रहिये, लेखनी से बरसाते रहिये।
हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ !!!
~सादर
अनिता ललित
सुख-दु:ख सारे भोगे मैंने
ReplyDeleteअब जो सुख मैं पाऊँगा ।
सच कहता हूँ –जाते-जाते
तुझको सब दे जाऊँगा ।
==
जिन्दगी ने जो दिया लौटा रहे हैं हम
खाली हाथ आये थे, खाली जा रहे हैं हम
आप सबके इस आत्मिक स्नेह के लिए हृदय से कृतज्ञ हूँ
ReplyDeletehimanshu ji aap jaisa man is jag mein milna bada mushkil hai.....aap hamesha hi sabko sneh dete hai...jo sabse bada sukh hota hai.......ye udaar man aapki rachnao ko atulya banata hai satvik bhaavo
ReplyDeleteki kavita ko saadar naman
आपके अमूल्य शब्दों के लिए अनुगृहीत हूँ ज्योत्स्ना जी
ReplyDeleteआपके व्यक्तितव का यतार्थ चित्रण है ये कविता सर..........
ReplyDelete