[दिल्ली
के स्वरूप के बारे में राजनैतिक सोच से हटकर इसे एक अच्छी कविता के तौर पर पढ़िएगा तो
आनन्द आएगा ]
श्याम सखा ‘श्याम’
1-अभी तो
दूर है दिल्ली, बहुत
ही दूर है दिल्ली
बड़ी नाजुक बड़ी दिलकश ,मगर
मगरूर है दिल्ली
2-न कौरव
ही समझ पाए न
पांडव थे भुला पाए
मरे दोनो थे लड़-लड़ के
बड़ी ही क्रूर है दिल्ली
3-जो आया
लूटने इसको ,लुटा
खुद हुस्न पर इसके
नवाबों की चहेती है कि मिस्ले हूर है दिल्ली
4-कभी
नादिर यहाँ आया इसी ने गज़नी भरमाया
सिकन्दर ने कहा थककर कि सचमुच दूर है दिल्ली
5-लगा है
खून मुँह इसके बड़ी चांडाल ठगनी है
जिसे ना वक्त भरपाया वही नासूर है दिल्ली
6- रखैली
थी रखैली है ,किसी
की ये न रानी है
खुद अपने दिल के हाथों रहती मजबूर है दिल्ली
8-लुटी सौ बार लेकिन फिर सँभल बैठी ,सँभल बैठी
कि द्रुपद की बेटी -सी नित नई इक हूर है दिल्ली
9-गुलामों
की ये रानी थी कि मुगलों की थी शहज़ादी
हुए बरबाद सब के सब, हुई काफ़ूर है दिल्ली
10-यहाँ
हरिदास के चेले ने छेड़ा राग मल्हारी
बजाया बैजू ने जो था, वही सन्तूर है दिल्ली
10-कभी
हेमू कभी सूरी बने थे शाह दिल्ली के
करे यूँ ख्वाब सबके यार चकनाचूर है दिल्ली
11-मिली
दो गज जमीं ना जब बहादुरशाह को यारो
कहा गालिब ने रो- रो कर - हुई बेनूर है दिल्ली
12-रहे
प्यासे मराठे थे, लड़े थे बाप बेटे भी
कि मारा भाई ने भाई , हुई रन्जूर है
दिल्ली-
13-नहीं
सूरज छुपा करता तुम उनका हश्र भी देखो
गये पिटकर निहत्थे-से हुई मशहूर है दिल्ली
14- मरे गाँधी यहीं पर थे अमन की राह पर चलकर
कि नेहरू खानदाँ को तो बनी लाटूर है दिल्ली
15-कि
राजा हों कि रजवाड़े, गरीबों
के भी पिछवाड़े
करे पूरे न पर दे ख्वाब भरपूर है दिल्ली-
16 -सभी धरमों
सभी जातों ,सभी
रंगो को भाती है
सभी नेता कहें इसको कि चश्मेनूर है दिल्ली
17-कि
लन्दन हो कि पेरिस हो ,भले ही हो वो अमरीका
किसी से कम नहीं यारो कि कोहेनूर है दिल्ली
18-बुरा
देखो बुरा बोलो सुनो भी मत बुरा तुम यार
भुला बातें सयानी अब हुई लंगूर है दिल्ली
19-तमिल
आये बिहारी भी कि बंगला और कश्मीरी
सभी को काम यूँ देती बना मजदूर है दिल्ली
20-यहाँ
पर स्टोव फटते हैं ,दुशासन
चीर हैं हरते
लुटे बस में कभी इज्जत, कभी तन्दूर है दिल्ली
21-यहाँ
पर घात होते है ,अजी
दिन रात होते हैं
मगर सुनती है कब किसकी, नशे में चूर है दिल्ली
22-कभी वी.पी ,कभी चन्दर ,कभी गुजराल आया था
रहे गुलजारी भी कुछ दिन घुमन्तू टूर है दिल्ली
23-चरण के पाँव कब जम पाये, थे मोरारजी हारे
जो पचता देवगोड़ा को क्या मोतीचूर है दिल्ली
24-बिना
ही ताज करती राज वो इटली की बेटी है
सुनो दीदी न कलकत्ता न कोयम्बतूर है दिल्ली
25-तड़पता
है मुलायम सिंह रटे लालू जपे माया
कि अडवानी को लगती खट्टा इक अंगूर है दिल्ली
26-हैं
कुछ तो धूप में कुछ छाँव में
कुछ दाव में बैठे
कि मोदी और राहुल को रही अब घूर है दिल्ली
27-सुनो
अन्ना,सुनो जी रामदेवा, केजरी, बेदी
जरा सोने दो इसको अब ,कि थककर चूर है दिल्ली
28-परायों
से न घबराई सदा उठके चली आई
कि लूटा जब भी अपनों ने हुई माजूर है दिल्ली
29-नहीं
खाली गया कोई सवाली बन के जो आया
मिली शुहरत किसी को धन करण सी शूर है दिल्ली
30-यहाँ
खानाबदोश आए कई
दरवेश भी आए
लुटाती जान सब पर है बनी मन्सूर है दिल्ली
31-यहाँ
तो जो भी आता है शरण फौरन ही पाता है
दलाईलाम की खातिर तो कोहेतूर है दिल्ली
32-मिटा
पाया न कोई था कभी इसकी रिवायत को
कि छाए जबसे
पंजाबी बनी संगरूर है दिल्ली
33-गड़ी
किल्ली यहीं पर है मगर ढीली वही तो है
सदा झूमे है मस्ती में बड़ी मखमूर है दिल्ली
34-इसे
पाने के लालच में सखा सीखें सभी हिन्दी
सियासत की ये मजबूरी बनी दस्तूर है दिल्ली
-0-
बहुत खूब कहा ........
ReplyDeleteसभी धरमों सभी जातों ,सभी रंगो को भाती है
सभी नेता कहें इसको कि चश्मेनूर है दिल्ली
-कि लन्दन हो कि पेरिस हो ,भले ही हो वो अमरीका
किसी से कम नहीं यारो कि कोहेनूर है दिल्लीl
डॉ सरस्वती माथुर
shyam ji...aapne pracheen samay se aaj ke yug tak ke itihaas ko jis khoobsoorti se is kavita mein sameta hai vah bada hi adbhud v sunder hai...delhi ke har ras ko chalkati ek alag hi kavita......badhai
ReplyDeleteदिल्ली के इतिहास का बहुत सुन्दर वर्णन करती बढ़िया रचना....बधाई !
ReplyDeleteदिल्ली का बेहतरीन इतिहास.... मुबारक
ReplyDeleteBahut mehant ki hai pura itihas nikalne men meri hardik badhai...
ReplyDeleteबेहद प्रभावी प्रस्तुति आदरणीय ....बस यही कहूँगी ...
ReplyDeleteयहीं से जान ली दिल्ली कि हमने मान ली दिल ली !!
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
मानो दिल्ली का पूरा इतिहास इन चंद पंक्तियों में बयान कर दिया गया हो...और वो भी बड़ी खूबसूरती से...| एक अच्छी रचना के लिए हार्दिक बधाई...|
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