पथ के साथी

Sunday, March 3, 2013

उम्र के पड़ाव



अनिता ललित
1
भारी बस्ते लिएदौड़ लगाते बच्चों को देखा,
फिर पढ़ाई ख़त्म करने के बाद....
ज़िंदगी की दौड़ में भागते युवाओं को देखा...
तो ये सवाल अक्सर मन में कुलबुलाया....

"नन्हें काँधे जब उठाएँ ...किताबों का बोझ...

काँधे रहते चुस्त... ज़हन होते ख्वाब गाह... !
ज़हन उठा ले जब... किताबों का वो बोझ....
क्यूँ... काँधे झुके ...ज़हन वीराना हो जाये...???"
2
उम्र के उस 'नाज़ुक दौर'...

यानी 'किशोरावस्थासे... गुज़रते बच्चों को देखा...
जब दिल सिर्फ़ अपनी सुनता है,
उसकी दुनिया सिर्फ़ उसके ख्वाब होते हैं...~
तो उनके इस ख़याल पर प्यार आया.....~

"चलो आज नींद से सुलह कर के देखें,

अपनी पलकों को ज़रा बंद कर के  देखें,
सुना है...बेघर हो गये हैं कुछ ख्वाब..,
आओ... आज उन्हें पनाह दे कर देखें...!"
3
उम्र का वो दौर... 

जब हम घर-गृहस्थी में उलझे हुए होते हैं,
अपने से ज़्यादा...अपने अपनों के लिए जीते हैं...~
तो अक्सर मन के किसी कोने में...ये तमन्ना बहुत है मचलती....~
"काश लौट आए वो बचपन सुहाना...
बिन बात खिलखिलानाहँसना....
हर चोट पे जी भर के रोना.... "
4
उम्र के उस पड़ाव पर...

जहाँ आँखें और दिल... सिर्फ़ और सिर्फ़ पीछे मुड़कर देखते हैं...
क्योंकि ...आगे देखने की नज़र शायद धुँधला चुकी होती है... 
और आस-पास बीमारियों के सिवा....या तो कोई दिखता नहीं...
या ज़्यादा देर टिकता नहीं...~
ये देखकर दिल के भीतर तक बस एक ही बात  है सालती ...~

"ज़िंदगी की सुबह...
जिनके हौसलों से आबाद हुई,
शाम ढले क्यों ज़िंदगी...
उनसे से ही बेज़ार हुई....???"
-0-

10 comments:

  1. बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ !
    अंतिम चार पंक्तियाँ तो वाह !

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  2. ज्योत्स्ना शर्मा03 March, 2013 15:13

    जीवन की सच्चाई से रूबरू कराती बहुत सशक्त प्रस्तुति है आपकी .....बहुत कुछ सोचने के लिए विवश करती हैं ....ये पंक्तियाँ ....

    "ज़िंदगी की सुबह...
    जिनके हौसलों से आबाद हुई,
    शाम ढले क्यों ज़िंदगी...
    उनसे से ही बेज़ार हुई....???".....बहुत शुभ कामनाएँ आपको |

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  3. "ज़िंदगी की सुबह...
    जिनके हौसलों से आबाद हुई,
    शाम ढले क्यों ज़िंदगी...
    उनसे से ही बेज़ार हुई....???"

    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! वाह!!

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  4. सम्पूर्ण जीवन...
    और अंत में यह यक्ष प्रश्न...

    "ज़िंदगी की सुबह...
    जिनके हौसलों से आबाद हुई,
    शाम ढले क्यों ज़िंदगी...
    उनसे से ही बेज़ार हुई....???"

    बहुत भावपूर्ण, बधाई.

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  5. सुन्दर क्षणिकाएं।
    "ज़िंदगी की सुबह...
    जिनके हौसलों से आबाद हुई,
    शाम ढले क्यों ज़िंदगी...
    उनसे से ही बेज़ार हुई....???
    बहुत भावात्मक...बधाई।

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  6. Ek kaduva sach...bahut sundarta se likha hai bahut2 badhai...

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  7. जीवन के विभिन्न पडावों का सुन्दर चित्रण...बधाई...|

    प्रियंका

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  8. सुशीला जी, ज्योत्स्ना शर्मा जी, सारिका मुकेश जी, डॉ जेन्नी शबनम जी, कृष्णा जी, डॉ भावना जी, कही अनकही जी ...
    क्षणिकाओं को पसंद करने का , इन्हें सराहने तथा मुझे प्रोत्साहन देने का ... हार्दिक धन्यवाद व दिल से आभार !:-)
    ~सादर!!!

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  9. जीवन के हर रंग का सुंदर चित्रण ,
    अनीता जी ,दिल को छू लेने वाली रचना .............
    साभार......

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  10. क्योंकि ...आगे देखने की नज़र शायद धुँधला चुकी होती है...
    और आस-पास बीमारियों के सिवा....या तो कोई दिखता नहीं...
    या ज़्यादा देर टिकता नहीं...~
    ये देखकर दिल के भीतर तक बस एक ही बात है सालती ...~

    bahut sunder
    badhai
    rachana

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