ओस है ये जिंदगी
स्वाति वल्लभा राज
ओस की बूँदों की तरह ये जिंदगी,
रात की कोशिशों में बनती और
सूरज की पहली किरण में बिखर जाती
अगले पल से फिर वही नाकाम कोशिश,
खुद को बनाने की
बनने के बाद कुछ वक़्त ठहरने की|
ठहराव के बाद कुछ पल जीने की
पर जीने से पहले ही एक डर गुम जाने का
फिर डर के सच्चाई का सामना
ओस की तरह दूब पे बिखर कर
चमकना चाहे ये ज़िन्दगी
पल भर को ही निडर हो,
जी जाना चाहे ये जिंदगी।
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बहुत सुंदर मन के भाव ...
ReplyDeleteप्रभावित करती रचना ...
सब को रहकर उड़ जाना है।
ReplyDeletebahut khoob.
ReplyDeleteपल भर को ही निडर हो,
ReplyDeleteजी जाना चाहे ये जिंदगी।sachchi bat.
ओस की तरह दूब पे बिखर कर
ReplyDeleteचमकना चाहे ये ज़िन्दगी
पल भर को ही निडर हो,
जी जाना चाहे ये जिंदगी। इशी आशा के साथ तो हम जिन्दगी जी जाते है..... प्रेरक और खुबसूरत रचना.....
क्षणजीवी होकर जी मगर एक कहानी लिख दे ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव
ओस की तरह ज़िंदगी ...बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteओस और जिन्दगी.... वाह!! सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसादर...
bahut sundar wa bhavpoorna prastuti
ReplyDeleteएक पल ही जियो, ओस बन कर जियो, शूल बनकर ठहरना नहीं जिंदगी।
ReplyDeleteपल भर को ही निडर हो,
ReplyDeleteजी जाना चाहे ये जिंदगी।
बहुत सुन्दर भाव
aap sab ke pyaar ke liye dhanyawaad.....
ReplyDeleteओस की बूँदों की तरह ये जिंदगी,
ReplyDeleteरात की कोशिशों में बनती और
सूरज की पहली किरण में बिखर जाती...
kitni sachhai hai in paktiyon men...yahi hai jindagi bas koshsh karte rahna manjil mile na mile..