पथ के साथी

Saturday, December 3, 2011

ओस है ये जिंदगी


ओस है ये जिंदगी
स्वाति वल्लभा राज

ओस की बूँदों की तरह ये जिंदगी,
रात की कोशिशों में बनती और
सूरज की पहली किरण में बिखर जाती

अगले पल से फिर वही नाकाम कोशिश,
खुद को बनाने की
बनने के बाद कुछ वक़्त ठहरने की|
ठहराव के बाद कुछ पल जीने की
पर जीने से पहले ही एक डर गुम जाने का
फिर डर  के सच्चाई का सामना

ओस की तरह दूब पे बिखर कर
चमकना चाहे ये ज़िन्दगी
पल भर को ही निडर हो,
जी जाना चाहे ये जिंदगी।
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13 comments:

  1. बहुत सुंदर मन के भाव ...
    प्रभावित करती रचना ...

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  2. सब को रहकर उड़ जाना है।

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  3. पल भर को ही निडर हो,
    जी जाना चाहे ये जिंदगी।sachchi bat.

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  4. ओस की तरह दूब पे बिखर कर
    चमकना चाहे ये ज़िन्दगी
    पल भर को ही निडर हो,
    जी जाना चाहे ये जिंदगी। इशी आशा के साथ तो हम जिन्दगी जी जाते है..... प्रेरक और खुबसूरत रचना.....

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  5. क्षणजीवी होकर जी मगर एक कहानी लिख दे ....
    बहुत सुन्दर भाव

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  6. ओस की तरह ज़िंदगी ...बहुत सुंदर ।

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  7. ओस और जिन्दगी.... वाह!! सुन्दर अभिव्यक्ति...
    सादर...

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  8. bahut sundar wa bhavpoorna prastuti

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  9. एक पल ही जियो, ओस बन कर जियो, शूल बनकर ठहरना नहीं जिंदगी।

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  10. पल भर को ही निडर हो,
    जी जाना चाहे ये जिंदगी।
    बहुत सुन्दर भाव

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  11. aap sab ke pyaar ke liye dhanyawaad.....

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  12. ओस की बूँदों की तरह ये जिंदगी,
    रात की कोशिशों में बनती और
    सूरज की पहली किरण में बिखर जाती...
    kitni sachhai hai in paktiyon men...yahi hai jindagi bas koshsh karte rahna manjil mile na mile..

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