झरना बहाएँगे (ताँका)
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
ये दिन भी आएँगे
अपने सभी
पाषाण हो जाएँगे
चोट पहुँचाएँगे।
2
जीवन भर
रस ही पीते रहे
वे तो जिए
हम तो मर-मर
घाव ही सीते रहे।
3
वे दर्द बाँटें
बोते रहे हैं काँटे
हम क्या करें?
बिखेरेंगे मुस्कान
गाएँ फूलों के गान।
4
काटें पहाड़
झरना बहाएँगे
भोर लालिमा
चेहरे पे लाएँगे
सूरज उगाएँगे ।
5
उदासी -द्वारे
भौंरे गुनगुनाएँ
मन्त्र सुनाएँ-
जब तक है जीना
सरगम सुनाएँ।
6
ओ मेरे मन !
तू सभी से प्यार की
आशा न रख
पाहन पर दूब
कभी जमती नहीं ।
7
मन के पास
होते वही हैं खास
बाकी जो बचे
वे ठेस पहुँचाते
तरस नहीं खाते
8
ये सुख साथी
कब रहा किसी का
ये हरजाई
थोड़ा अपना दु:ख
तुम मुझको दे दो।
9
पीर घटेगी
जो तनिक तुम्हारी
मैं हरषाऊँ
तेरे सुख के लिए
दु:ख गले लगाऊँ ।
-0-
ओ मेरे मन !
ReplyDeleteतू सभी से प्यार की
आशा न रख
पाहन पर दूब
कभी जमती नहीं ।........jivan ki ye sachhai jitni jaldi samajh aaye,man utna hi kam dukhega.....bahut sundar aur jeevan-satya......
थोड़ा अपना दु:ख
ReplyDeleteतुम मुझको दे दो।
इस भाव से बढ़कर विशिष्ट कुछ और हो नहीं सकता.. ये बात और है कि किसी का दर्द हम बाँट भले सकते हैं ले नहीं सकते...
आपकी इस पोस्ट से गुजरना बेहद सुखद रहा!
अतिसुन्दर प्रस्तुति!
बहुत ही खुबसूरत और कोमल भावो की अभिवयक्ति......
ReplyDeleteहम सदा ही मुस्कान बिखेरते रहेंगे।
ReplyDelete1
ReplyDeleteकिसे था पता-
ये दिन भी आएँगे
अपने सभी
पाषाण हो जाएँगे
चोट पहुँचाएँगे।
2
जीवन भर
रस ही पीते रहे
वे तो जिए
हम तो मर -मर
घाव ही सीते रहे।
Pura hi dard or sachchhai simat kar aa gayi hai in panktiyon men yahi jeevan ka satay hai.
1
ReplyDeleteकिसे था पता-
ये दिन भी आएँगे
अपने सभी
पाषाण हो जाएँगे
चोट पहुँचाएँगे।
2
जीवन भर
रस ही पीते रहे
वे तो जिए
हम तो मर -मर
घाव ही सीते रहे।
बहुत दर्द भरे हैं इन पंक्तियों में
आदरणीय सर,आपने अपने ब्लौग पर लिखा है कि
जब सोचना है तो सकारात्मक ही सोचें।
यहाँ भी आपने सकारात्मक ही सोचा है|
सादर
सभी ताँका बहुत ही भावपूर्ण हैं ..........मुझे सबसे अच्छा ये लगा ..........
ReplyDeleteये सुख साथी
कब रहा किसी का
ये हरजाई
थोड़ा अपना दु:ख
तुम मुझको दे दो।
ये वही कह सकता है या कर सकता है जो दूसरों के दुःख को अपना समझे !
हरदीप
himanshu ji
ReplyDeleteis vidha ki taknik ke karan kavita sahaj ban gayee hai
मन के पास
होते वही हैं खास
बाकी जो बचे
वे ठेस पहुँचाते
तरस नहीं खाते
madhu MM
पीर घटेगी
ReplyDeleteजो तनिक तुम्हारी
मैं हरषाऊँ
तेरे सुख के लिए
दु:ख गले लगाऊँ । kavita ki antim paktiya dil ko chhooti hai
madhu MM
भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteकिसे था पता-
ReplyDeleteये दिन भी आएँगे
अपने सभी
पाषाण हो जाएँगे
चोट पहुँचाएँगे।
2
जीवन भर
रस ही पीते रहे
वे तो जिए
हम तो मर -मर
घाव ही सीते रहे।
6
ओ मेरे मन !
तू सभी से प्यार की
आशा न रख
पाहन पर दूब
कभी जमती नहीं ।
7
मन के पास
होते वही हैं खास
बाकी जो बचे
वे ठेस पहुँचाते
तरस नहीं खाते
भाईसाहब बहुत सुंदर तांका हैं यह चार तो मन को छू गए. बधाई.............
सादर,
अमिता कौंडल
bahut khub sirji
ReplyDeleteसर आप के द्वारा लिखी हर पंक्ति भावो भरी होती हैं । बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteहर शब्द भावों भरा होता है।
बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteकल 14/12/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, मसीहा बनने का संस्कार लिए ....
ओ मेरे मन !
ReplyDeleteतू सभी से प्यार की
आशा न रख
पाहन पर दूब
कभी जमती नहीं ।
सभी रचनाएँ सुन्दर हैं ...हम जैसे नौसिखियों के लिए एक पाठशाला है आपका ब्लॉग
sabhi taanka,sabhi rachnaayen bahut pasand aai.
ReplyDeleteसभी तांका गहन बात को लिए हुए ...
ReplyDeleteसोचा कि कुछ पंक्तियों को select कर के कुछ लिखूं
ReplyDeleteलेकिन आपने असमर्थ कर दिया हर जगह..किसी एक को चुनुं तो दूसरी के साथ नाइंसाफी होगी...
सारी ही क्षणिकाएं अपने आप में सुन्दर हैं
सुन्दर रचना के लिए बधाई...!!
बहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
Ek se badhke ek hain sabhee kshanikayen! Kamaal ka lekhan hai!
ReplyDeleteअद्भुत रचनाएं हैं सर...
ReplyDeleteसादर...
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
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