1-ओ
फूल बेचने वाली स्त्री!
अनिता मंडा
ओ फूल बेचने वाली स्त्री!
मुझे नहीं पता
कब से कर रही हो प्रतीक्षा
फूलों की टोकरी उठाए
होने लगी होगी पीड़ा
तुम्हारी एड़ियों में
तुम्हारे उठे हुए कंधे
कितना सुंदर बना रहे हैं
तुम्हें!
ओ फूल बेचने वाली स्त्री!
मुझे नहीं पता
फूल चुनते हुए
तुम्हारी उँगलियों को
छुआ होगा काँटों ने
तुम्हारे गोदनों को
चूम लिया होगा
तुम्हारे प्रेमी ने
मुद्रा गिनते तुम्हारे हाथ
कितना सुंदर बना रहे हैं तुम्हें!
ओ फूल बेचने वाली स्त्री!
मुझे नहीं पता
तुम गई हो कभी देवालय
इन मालाओं को पहनने को
महादेव हो रहे होंगे आकुल
एक-एक अर्क-पुष्प को
धर लेंगे शीश
यह श्रद्धा का संसार
कितना सुंदर बना रहा है तुम्हें!
ओ फूल बेचने वाली स्त्री!
तुम्हें नहीं पता
तुम्हारे फूलों में
मुस्कुराते हैं महादेव
तुम्हारे परिश्रम में
आश्रय पाता है सुख
दारुण दुःख भरे संसार को
कितना सुंदर बना रही हो तुम!
-0-
2-दुःख नहीं घटता
अनिता मंडा
बहुत रो लेने के बाद भी
दुःख नहीं घटता
न पुराना पड़ता है
सोते-सोते अचानक
नींद के परखच्चे उड़ते हैं
स्मृति के बारूद
रह रहकर सुलगते हैं
बहुत रो लेने के बाद भी
हृदय की दाह नहीं बुझती
शब्दों के रुमाल सब गीले हो
गए
घाव हरे रिस जाते हैं
चोट जब गहरी लगी हो
रूदन हृदय चीरकर निकलता है
सौ सूरज उगकर भी
अँधेरे की थाह नहीं पाते
गले में ठहरी रुलाई
खींच रही है गर्दन की नसें
मृत्यु का दिल
एक कलेजे से नहीं भरता
वो रोज़ ही मेरा
लहू खींच रही है
-0-
3-मंजु मिश्रा
-0-
अपनी संवेदनाओं को अच्छी तरह उकेरा है- आप दोनों को बधाई।
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
सुन्दर कविताएँ, हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDelete- भीकम सिंह
ओ फूल बेचने वाली स्त्री!
ReplyDeleteतुम्हें नहीं पता
तुम्हारे फूलों में
मुस्कुराते हैं महादेव
तुम्हारे परिश्रम में
आश्रय पाता है सुख....... सुन्दर बिम्ब, श्रम में ही ईश्वर के दर्शन कराती सुन्दर कविता, वहीं दूसरी कविता में वेदना की सघन अभिव्यक्ति है। दोनों कवयित्रीयों को बधाई.
प्रभावशाली सृजन के लिए अनिता मंडा एवं मंजु मिश्रा जी को हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteओ फूल बेचने वाली स्त्री!
ReplyDeleteतुम्हें नहीं पता
तुम्हारे फूलों में
मुस्कुराते हैं महादेव
कितना सुंदर रचा है! बहुत-बहुत बधाई अनिता जी 💐
सौ सूरज उगकर भी
अँधेरे की थाह नहीं पाते
अत्यंत मार्मिक, सुंदर सृजन के लिए बधाई आपको।
सुशीला शील स्वयंसिद्धा
दोनों रचनाएं बहुत ही सुन्दर हैं।
ReplyDeleteआप दोनों को हार्दिक बधाई।
अंतर्मन को छूती हुई कविताएं! बहुत बधाई ❤️
ReplyDeleteओ फूल बेचने वाली स्त्री
ReplyDeleteकविता बहुत ही अच्छी लगी
आपकी लेखनी बहुत
सुंदर काम करती है ।
बधाई 🌷
ओ फूल बेचने वाली स्त्री ....बहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteदूसरी कविता भी भावपूर्ण है।हार्दिक बधाई आपको।