पथ के साथी

Thursday, May 29, 2025

1467-नौतपा ये आ गया है

 गुंजन अग्रवाल अनहद

 


नौतपा ये आ गया है।

सनसनाती लू चली है।
ताप से जलती गली है।
वैद्य कोई तो बुलाओ।
औषधी इसकी कराओ।
ताप ज्यादा छा गया है।
नौतपा ये आ गया है......

 

सूर्य ऐसे आग उगले।
विह्वल हो उड़ते बगुले।
वृक्ष पंछी प्राण व्याकुल।
हो गई शीतल हवा गुल।
शूल उर में ज्यों गया है। नौतपा ये आ गया है....

-0-

2 comments:

  1. Gunjan Agarwal30 May, 2025 07:32

    सहज साहित्य में रचना को स्थान देने हेतु आदरणीय कंबोज भैया का हृदय से आभार , 🙏🙏

    ReplyDelete
  2. सुंदर प्रस्तुति

    ReplyDelete