गुंजन अग्रवाल ‘अनहद’
नौतपा ये आ गया है।
सनसनाती लू चली है।
ताप से जलती गली है।
वैद्य कोई तो बुलाओ।
औषधी इसकी कराओ।
ताप ज्यादा छा गया है।
नौतपा ये आ गया है......
सूर्य ऐसे आग उगले।
विह्वल हो उड़ते बगुले।
वृक्ष पंछी प्राण व्याकुल।
हो गई शीतल हवा गुल।
शूल उर में ज्यों गया है। नौतपा ये आ गया है....
-0-
सहज साहित्य में रचना को स्थान देने हेतु आदरणीय कंबोज भैया का हृदय से आभार , 🙏🙏
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDelete